रहमानी 30 से आईआईटीः 10 से शुरू सफर 13 साल में 400 के पार
बिहार लोक संवाद डाॅट नेट, पटना।
भारत की सबसे मुश्किल इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा आईआईटी के लिए मानी जाती है जिसका दुनिया भर में नाम है। आईआईटी में दाखिले के लिए अल्पसंख्यक मुस्लिम बच्चों को मुफ्त आवासीय तैयारी कराने में जुटे रहमानी 30 की कामयाबी की शुरुआत 2009 में 10 बच्चों के आईआईटी में दाखिले से हुई थी। तेरह साल के सफर में रहमानी 30 से आईआईटी में दाखिले की योग्यता पाने वाले उम्मीदवारों की संख्या करीब सवा चार सौ हो गयी है, इनमें 65 उम्मीदवार 2021 में कामयाब हुए हैं।
पटना के अनीसाबाद से शुरू रहमानी 30 वैसे आज पटना के साथ साथ मुंबई, हैदारबाद और बंगलोर में भी इंजीनियरिंग के अलावा मेडिकल, सीए और वकालत की पढ़ाई की तैयारी भी करा रहा है। रहमानी 30 का लक्ष्य था हर साल कम से कम 30 बच्चों को इस तरह तैयार कर देना कि आईआईटी में दाखिले का इम्तिहान पास कर लें। इन 30 बच्चों के लिए रहने-खाने और पढ़ने का सारा इंतजाम मुफ्त में होता है। इसके लिए हर साल प्रवेश परीक्षा होती है जिसकी खबर अखबार और अन्य माध्यमों से दी जाती है।
इस प्रवेश परीक्षा में सफलता के आधार पर 30 से अधिक बच्चों का दाखिला तो होता है लेकिन निशुल्क व्यवस्था उनके लिए होती है जो इंटरनल टेस्ट में पहले 30 स्थानों पर होते हैं। बाकी के लिए पढ़ाई का खर्च नहीं लगता हालांकि उन्हें रहने-खाने का शुल्क देना होता है।
2009 के बाद दो सालों में इसकी सफलता घटकर 6-6 हो गयी लेकिन 2012 और 2013 में रहमानी 30 से आईआईटी में दाखिले की योग्यता पाने वाले उम्मीदवारों की संख्या 10-10 रही। 2014 में यह कामयाबी बढ़कर 14 हो गयी और 2015 में 32 उम्मीदवार कामयाब हुए। अगले साल यानी 2016 में रहमानी 30 ने आईआईटी में कामयाबी की हाफ संेचुरी बनायी और अगले साल यानी 2017 में यह आंकड़ा बढ़कर 75 तक पहुंच गया जो अब तक किसी एक साल के लिए सबसे बड़ी कामयाबी है। 2018 और 2019 में कामयाबी 50 से नीचे क्रमशः 46 और 43 थी। 2020 में एक बार फिर यह आंकड़ा 50 पार कर 52 तक पहुंचा।
रहमानी 30 से तैयारी करने वाले बच्चों का कहना है कि यहां का अनुशासित माहौल पढ़ने में लक्ष्य से भटकने नहीं देता। यहां के शिक्षकों का हमेशा साथ मिलता है जिससे आत्मविश्वास बढ़ता है। इसके अलावा ग्रुप स्टडी यहां की खास बात है जिससे डाउट क्लीयरिंग में बहुत आसानी होती है। यहां के उम्मीदवारों ने बताया कि यहां का दीनी माहौल भी पढ़ने में मदद करता है।
रहमानी 30 की स्थापना खानकाह रहमानी के तत्कालीन सज्जादानशीं मौलाना वली रहमानी ने बिहार के पूर्व डीजीपी अभयनान्द के मार्गदर्शन में करवायी थी। मौलाना रहमानी बाद में इमारत-ए-शरिया के अमीर भी बने। इसी साल अप्रैल में उनका इंतकाल हो गया। मौलाना रहमानी का मानना था कि आज के दौर में मजहब की खिदमत यह है कि हम अपने बच्चों को अपने अकीदा पर कायम रखते हुए समसामयिक विषयों की शिक्षा दें। उनके मुताबिक बच्चों को ऐसी तालीम दी जाए कि वे कड़ी मेहनत की अहमियत समझें ताकि अपनी जिंदगी के फैसले पूरे भरोसे के साथ कर सकें।
रहमानी 30 के बारे में अभयानन्द ने मौलाना रहमानी के सामने एक ही शर्त रखी थी कि पढ़ाई के मामले में मौलानला दखल नहीं देंगे और वे खुद प्रबंधन में मामले में दखल नहीं देंगे। उनका मानना है कि मुस्लिम समुदाय में पढ़ने का रुझान बहुत अधिक नहीं था, इसलिए ’मुझे लगा कि यह देश के व्यापक हित में होगा कि उन्हें आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में दाखिले के लिए तैयार करने में मार्गदर्शन किया जाए’। वे खुद भी फिजिक्स की क्लास लेते हैं और बस यह देखते हैं कि संस्थान पढ़ाई के लिए पैसे न ले रहा हो।
मौलाना रहमानी के इंतकाल के बाद रहमानी 30 अब पूरी तरह से उनके छोटे बेटे फहद रहमानी की देखरेख में संचालित हो रहा है। वे कहते हैं कि मुस्लिम समुदाय को अपने बच्चों की तालीम के लिए निवेश करना चाहिए। रहमानी 30 भी ऐसे ही दाताओं के सहारे चलता है। यहां एक बच्चे पर करीब दो लाख रुपये खर्च होते है। उनकी योजना है कि रहमानी 30 में देश भर के कम से कम 15 हजार बच्चों की तैयारी करायी जाए। फिलहाल यह संख्या करीब 900 है। उनका कहना है कि इसके लिए मुस्लिम समुदाय और अन्य दानदाता आगे आकर सहयोग करें तो समुदाय और देश दोनों का भला होगा।
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