छपी-अनछपी: पीएफआई को केंद्र सरकार ने किया बैन, बिहार सरकार दे रही नौकरियां

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। यह खबर तो अखबारों में कल छपेगी लेकिन आज समय रहते मिल गई है इसलिए यहां साझा की जा रही है कि केंद्र सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई और कुछ अन्य संगठनों पर 5 साल के लिए पाबंदी लगा दी है। इस बात का अंदाजा पहले से लगाया जा रहा था और कल ही एनआईए ने पीएफआई पर फिर छापे डाले थे जिसमें उसके 255 कथित सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था। वैसे सभी अखबारों की प्रमुख खबर है कि बिहार सरकार अगले कुछ दिनों में कितनी नौकरियां देने वाली है।

हिन्दुस्तान में नीतीश कुमार का बयान सबसे पहली खबर है: बिहार में लाखों पदों पर जल्द होगी बहाली। यह बात उन्होंने पशु चिकित्सा पदाधिकारी एवं मत्स्य विकास पदाधिकारियों के नियुक्ति पत्र वितरण समारोह में कही। 

जागरण में भी सबसे बड़ी खबर यही है जिसकी सुर्खी है: नौकरियों पर सरकार ने पकड़ी रफ्तार।

प्रभात खबर ने लिखा है: आमीन के 6300 समेत 7823 पदों पर संविदा पर होगी बहाली। 

भास्कर की लीड है: 7823 नई नौकरी, पारा मेडिकल के छात्रों को हर माह ₹15000 छात्रवृत्ति।

बिहार मैं जातीय जनगणना की प्रक्रिया तेज हो रही है। इस बारे में हिंदुस्तान की खबर है: जातिगत आधारित गणना: पुल-पुलिया, नाले के किनारे वाले भी गिने जाएंगे।

जागरण अखबार में एक छोटी सी खबर शेरशाह के मकबरे के बारे में है। इसकी सुर्खी है: शेरशाह मकबरे के पास तालाब पर जवाब तलब। पटना हाईकोर्ट ने इस बारे में मकबरे के आसपास बड़े तालाब में साफ़ और ताजा पानी आने के लिए बनाए गए नाले के बंद होने पर सरकार से जवाब तलब किया है।

भास्कर ने एक खास खबर में महिला एवं बाल विकास निगम की मैनेजिंग डायरेक्टर हरजीत कौर का एक विवादास्पद बयान विस्तार से छापा है। इसने बताया गया है कि जब बच्चियों ने टूटे शौचालयों और उसमें भी लड़कों के घुसने की शिकायत की तो हरजीत कौर ने एक संवेदनहीन जवाब देते हुए कहा क्या घरों में इसके लिए अलग व्यवस्था होती है। यही नहीं जब बच्चियों ने कुछ और मांगें रखीं तो उन्होंने कहा कि कल को जींस और उसके बाद परिवार नियोजन के साधन की भी मांग करोगी। एक महिला अधिकारी द्वारा लड़कियों के बारे में इस तरह की टिप्पणी की संवेदनहीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है। भास्कर का कहना है कि इसके बारे में उसने हरजीत कौर से उनका पक्ष जानने की कोशिश की मगर उन्होंने फोन नहीं उठाया। भास्कर के पास इस मामले का वीडियो है।

बिहार की राजनीति में भाजपा और जदयू के बीच आरोप-प्रत्यारोप तेज होते जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अमित शाह के सवालों का पूर्णिया में ही जवाब देने की बात कही है। हालांकि श्री कुमार ने अमित शाह का नाम नहीं लिया लेकिन जब उनसे अमित शाह की बातों का उल्लेख किया गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें पूर्णिया में ही जवाब देंगे। नीतीश की तरह जदयू के अध्यक्ष ललन प्रसाद ने कहा है कि केंद्र की सत्ता में बैठे लोग धार्मिक उन्माद फैला रहे हैं। ये दोनों खबरें हिंदुस्तान में प्रमुखता से छपी है।

हिंदुस्तान में एक और खास खबर है जिसमें यह बताया गया है कि इंटर के नामांकन के लिए पटना में 83000 सीटें अभी खाली हैं। बताया गया है कि राज्य में कुल 2500000 सीटें हैं जिसमें 10 लाख 27 हजार पर ही नामांकन हो पाया है। फिलहाल कला विषयों में चार लाख, कॉमर्स में दो लाख और साइंस में तीन लाख सीटें खाली हैं। इसके अलावा वोकेशनल की 6756 और कृषि विषय की 384 सीटें खाली हैं।

राज्य के विधायकों को पहले हर महीने 2000 यूनिट मुफ्त बिजली मिलती थी अब नए कैबिनेट फैसले के अनुसार उन्हें सालाना 30000 यूनिट बिजली मुफ्त मिला करेगी। बहुत से लोग विधायकों को इस तरह मुफ्त बिजली दिए जाने पर सवाल उठाते हैं।

अनछपी: अब उस खबर की बात जिसकी आधी जानकारी आज छपी है और बाकी कल छपेगी। हिंदुस्तान में एक सुर्खी है: पीएफआई पर पुनः प्रभहार, 255 दबोचे। जागरण ने इससे भी बड़ी हेडलाइन लगाई है: पीएफआईन नेटवर्क पर फिर चोट, सात राज्यों में छापेमारी। पीएफआई पर बैन को लेकर देश में दो तरह की राय पाई जाती है। एक तो वो लोग हैं जो पीएफआई की नीतियों से अलग राय रखने के बावजूद उस पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में नहीं हैं। लेकिन दूसरी ओर हिंदुत्ववादी संगठनों और सरकार की समझ यह है कि पीएफआई पर बैन लगाना जरूरी है। पीएफआई पर जुलाई से अब तक एनआईए ने तीन राउंड में छापेमारी की है। तीसरे राउंड की छापेमारी की खास बात यह है कि इसमें उन लोगों को निशाना बनाया गया है या उन्हें गिरफ्तार किया गया है जिन्होंने सीएए के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई थी। यह बात भी ध्यान देने की है कि सरकार ने सीएए के खिलाफ आवाज उठाने वालों को अलग-अलग समय पर जेल में डाला है। इसके कारण इसका जोरदार संगठित विरोध नहीं हो पाया है। पटना में भी जिन लोगों को पीएफआई का सदस्य होने के नाम पर गिरफ्तार किया गया है उनके बारे में कई संगठनों का यह कहना है कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है। पीएफआई और अन्य संगठनों के पास अब अदालती उपाय ही बचा है हालांकि उसके कितने सदस्य इस काम में लगाए जा सकते हैं कहना मुश्किल है क्योंकि अधिकतर सदस्यों को जेल में डाला जा चुका है।

 

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