क्या ऐसे ही यूनीफॉर्म सिविल कोड से होगी भाजपा की ‘संतुष्टि’?

सैयद जावेद हसन
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अब ये साफ हो गया है कि अगले लोकसभा चुनाव में यूनीफॉर्म सिविल कोड भारतीय जनता पार्टी का अहम मुद्दा होगा। इसी के तहत 1 जुलाई को नई दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में पार्टी के सभी मोर्चों और महासचिवों की बैठक हुई। बैठक में फैसला किया गया कि यूसीसी पर समर्थन हासिल करने के लिए भाजपा तमाम लोकसभा सीटों के मतदाताओं तक पहुंचेगी। इसके अलावा, राष्ट्रीय और स्थानीय दलों के नेताओं से वन टू वन मुलाकात भी करेगी।
इस बीच भाजपा शासित उत्तराखंड के लिए यूनीफॉर्म सिविल कोड का ड्राफ्ट तैयार हो गया है। पांच सदस्यीय ड्राफ्ट कमिटी की अध्यक्ष रंजना प्रकाश देसाई ने कहा है कि ‘अगर यूसीसी ड्राफ्ट लागू होता है तो इससे देश का सेक्यूलर तानाबाना मजबूत होगा।’ लेकिन दिलचस्प बात ये है कि ड्राफ्ट समिति में एक भी मुसलमान नहीं है।
उत्तराखंड यूसीसी कमिटी से जुड़े एक अफसर के मुताबिक ड्राफ्ट में एक से ज्यादा शादी पर रोक लगाने की सिफाशि की गई है। इसके अलावा, लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल किए जाने की बात कही गई है। वहीं मुस्लिम लड़कियों के पैरेंटल प्रोपर्टी में बराबर की हिस्सेदारी का प्रस्ताव भी पेश किया गया है। बच्चों को गोद लेने के लिए यूनीफॉर्म चाइल्ड एडॉपशन लॉ की बात भी कही गई है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि ‘जल्द ही प्रदेश में यूसीसी को लागू किया जाएगा।’ समझा जाता है कि साल के आखिर में होने वाले मध्यप्रदेश विधान सभा चुनाव से पहले उत्तराखंड में यूसीसी को लागू कर दिया जाएगा। दूसरी तरफ 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर देशव्यापी यूसीसी की कवायद जारी है।
फिलहाल हिन्दूू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी जैसे धार्मिक समुदायों के लोग विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के मामलों में अपने-अपने पर्सनल लॉ का पालन करते हैं।
हिन्दुओं के लिए 1956 में संसद में हिन्दू कोड बिल पास किया गया था। यह कोड बिल हिन्दू समुदाय के साथ-साथ बौद्ध, जैन और सिख समुदाय पर भी लागूू होता है।
दूसरी तरफ, मुसलमान मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत विवाह, तलाक, उत्तराधिकार के मामले में शरीयत एप्लीकेशन एक्ट 1937 का पालन करते आ रहे हैं।
इस बीच, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास पर शनिवार को संसदीय समिति की हुई बैठक में यूसीसी पर चर्चा की गई। बैठक में यूसीसी को लेकर भाजपा की नीयत पर सवाल उठाया गया।
इधर, बिहार सरकार ने एक बार फिर यूसीसी का विरोध किया है। भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने एक बयान जारी कर कहा कि समान नागरिक संहिता से कहीं ज्यादा जरूरी जाति व्यवस्था के नाम पर बरसों से हो रहे भेद-भाव को समाप्त करना है।
दरअसल, भारतीय जानता पार्टी हिन्दू समाज की कुरीतियों पर न तो सवाल उठाती है और न ही उनमें सुधार लाने का प्रयास करती है। इसके बरक्स, वह मुस्लिम समाज की विशिष्टताओं को एक-एक कर खत्म कर देना चाहती है। इसी से उसकी ‘संतुष्टि’ होती है।

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