एक वोटर का इंटरव्यू

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किशनगंज से पूर्णिया के रास्ते में बायसी ब्लॉक के मोहम्मद रफीक मिलते हैं। 52-53 साल की उम्र में भी पॉलिटिक्स के बारे में या तो कम जानते हैं या बोलना नहीं चाहते।
इन्हें इतना पता है कि 7 नवंबर को वोट देना है। किसे देना है, इसके जवाब में कहते हैं, ‘सब तो उसी को देगा।’
बटाई खेती करने वाले मोहम्मद रफीक कहते हैं कि खेती तो महानन्दा में डूब गई। मैंने उन्हें सड़क की बायीं तरफ लहलहाती धान की फसल दिखाई तो कहने लगे अभी महानन्दा आएगी तो देखिएगा। सारी फसल उधर की डूब गई है।
मैं उनसे पूछता हूँ कि बाढ़ से नुकसान की भरपाई के लिए सरकार की तरफ से कुछ नहीं मिला? वह मेरी तरफ इस तरह देखते हैं जैसे पूछ रहे हों कि सरकारी मदद क्या होती है। फिर कहते हैं, कुछ नहीं मिला। किसी को कुछ नहीं।
लुंगी कुर्ता और गमछा लपेटे मोहम्मद रफीक ने कोरोना से बचाव के लिए मास्क नहीं लगा रखा है। हकीकत यह है कि बहुत ही कम लोगों ने मास्क लगाए हैं। ऐसे में जब ये वोट देने जाएंगे तो क्या करेंगे। उनका जवाब था- गमछा है न।

मोहम्मद रफीक

मोहम्मद रफीक ने कोई पढ़ाई नहीं की है। उनके बेटे बाहर रहते हैं। मैंने जब उनकी तस्वीर ली और ज्यादा पूछताछ की तो जरा कम बोलने लगे।
मैंने उनसे पूछा कि बाढ़ के बाद कोई मदद नहीं मिलने से लोग खफा हैं? तो उन्होंने कहा कि हम सबका नहीं जानते लेकिन परेशानी तो सबको है।
जब उनसे यह पूछा कि क्या इसका असर वोट पर होगा तो वह बिल्कुल चैकन्ना हो गए और अनमने ढंग से कहा- नय पता।
किशनगंज से पूर्णिया जाने के रास्ते में बस वदालखोला में रुकती है। यहां चुनाव की कोई चर्चा नहीं क्योंकि यह बंगाल का हिस्सा है। बांग्ला में इसे डालखोला बोलते हैं क्योंकि यहां द को ड पढ़ा जाता है।
दालखोला से बायसी के लिए बस खुली तो मेरी बगल की सीट खाली थी।
मेरे ज्यादा सवाल पर शायद उन्होंने अपनी सीट बदल ली है।

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