शहाबुद्दीन, अनंत सिंह, आनंद मोहन: धर्म देखकर तय किया गया बाहुबलियों का अंजाम

सैयद जावेद हसन, बिहार लोक संवाद
जो लोग नीतीश कुमार की फितरत को समझते हैं, वो ये अच्छी तरह जानते हैं कि अनंत सिंह पेरोल पर क्यों रिहा किए गए। जेल मैनुअल में बदलाव करके आनंद मोहन को क्यों जेल से बाहर लाया गया। और किन परिस्थितियों में मोहम्मद शहाबुद्दीन की मौत सजा के दौरान अस्पताल में हो गई। अपराधी, गैगस्टर और नेता का लेबल तीनों पर लगा है, लेकिन सवाल ये है कि तीनों के साथ सत्ता के बरबाव में इतना फर्क क्यों है? इस सवाल का जवाब हासिल करने से पहले नीतीश कुमार के उस भाषण को सुनिये जो उन्होंने अपने बेहद करीबी और मुंगेर लोकसभा क्षेत्र से जेडीयू उम्मीदवार ललन सिंह के समर्थन में वोट मांगने के दौरान दिया था। अपने चुनाव प्रचार पर नीतीश कुमार को शायद खुद ही भरोसा नहीं है। इसीलिए उन्होंने अनंत सिंह को 15 दिनों के लिए पेरोल पर जेल से निकलवाया है। पेरोल पर रिहा करने की मंजूरी गृह विभाग ने दी थी जो नीतीश कुमार के जिम्मे है। 5 मई को जेल से बाहर निकलते ही पूरे लाव लशकर के साथ अनंत सिंह ने दावा किया कि ललन सिंह तीन लाख से ज्यादा वोटों से जीतेंगे। ललन सिंह और अनंत सिंह दोनों भूमिहार हैं। दिलचस्प बात ये है कि अनंत सिंह को पेरोल पारंपरिक संपत्ति के बंटवारे के लिए मिली है जबकि मुंगेर में 13 मई को मतदान होना है। ललन सिंह का मुकाबला राष्ट्रीय जनता दल की अनीता देवी महतो से है जो कंविक्टेड बाहुबली अशोक महतो की पत्नी हैं।

अशोक महतो कुर्मी हैं और नवादा-शेखपुरा बेल्ट में डेªडेट हिस्ट्रीशीटर हैं। वो 2001 में नवादा जेल के गार्ड की हत्या करके अपने चार साथियों के साथ भाग निकलने के लिए मशहूर हैं। इस मामले में 17 साल जेल की सजा काटने के बाद 2023 में वो रिहा हुए थे और लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अनीता महतो से 58 साल की उम्र में शादी की थी जो ललन सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं। समझा जाता है कि ललन सिंह के लिए समर्थन जुटाने के मकसद से ही नीतीश कुमार ने अनंत सिंह को पेरोल पर जेल से बाहर निकलवाया है।

सियासत का खेल देखिये कि मोकामा से पांच बार विधायक रहे अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मुंगेर से ललन सिंह के खिलाफ खड़ी हुई थीं लेकिन हार गई थीं। 2020 में उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर मोकामा विधान सभा चुनाव में जीत हासिल की थी। लेकिन पिछले विधानसभा सत्र के दौरान बहुमत परीक्षण के समय वो नीतीश सरकार के पाले में चली गईं।

21 जुलाई, 2022 को जब अनंत सिंह को 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी तब लगा था कि उनका सियासी केरियर खत्म हो गया। उन्हें यह सजा 2015 में उनके सरकारी आवास से बरामद हुए बुलेट प्रूफ जैकेट और छह मैग्जीन के मामले में हुई थी। अनंत सिंह के खिलाफ 38 आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें सात हत्या, ग्यारह हत्या की कोशिश और अपहरण के चार मामले शामिल हैं।
इस तरह देखा जाए तो अनंत सिंह जैसे सवर्ण जाति के अपराधी और बाहुबली को जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस तीनों पार्टियों का साथ मिला।

अब बात करते हैं, गैंगस्टर और पॉलिटिशियन आनंद मोहन की। 5 जून, 1994 को मुजफ्फरपुर में एक प्रोटेस्ट मार्च के दौरान डिस्ट्रिक्ट मजिस्टेªट जी कृष्णैया की हत्या कर दी गई थी। आनंद मोहन पर डीएम की हत्या के लिए भीड़ को उकसाने का आरोप लगा था। इस आरोप में 2008 में पटना हाई कोर्ट ने आनंद मोहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। लेकिन ठीक एक साल पहले, अप्रील 2023 में नीतीश सरकार ने जेल मैनुअल में संशोधन करके आनंद मोहन को जेल से रिहा करा दिया।

आनंद मोहन राजपूत हैं और कोसी और आसपास के इलाके में गहरी पैठ रखते हैं। नीतीश कुमार के काफी करीबी और उनकी पूर्ववर्ती समतापार्टी के मेम्बर रहे हैं। शिवहर लोकसभा क्षेत्र से मेम्बर पार्लियामेंट रहे हैं। इस चुनाव में उनकी पत्नी लवली आनंद जेडीयू के टिकट पर शिवहर वे खड़ी हैं। उनका मुकाबला आरजेडी की रितु जायसवाल से है। पिछले फ्लोर टेस्ट के दौरान आनंद और लवली के बेटे चेतन आनंद कांग्रेस को दगा देकर एनडीए के पाले में चले गए थे। इस तरह सवर्ण जाति के माफिया और पॉलिटिश्यिन आनंद मोहन परिवार को जेडीयू और कांग्रेस दोनों का संरक्षण प्राप्त रहा।

अब बात करते हैं मोहम्मद शहाबुद्दीन की। शहाबुद्दीन के नाम के साथ भी अपराधी और जनप्रतिनिधि जैसे शब्द जुड़े हुए हैं। लालू और राबड़ी देवी के शासनकाल में सीवान में शहाबुद्दीन की धमक थी। 1990 से 1996 तक जीरादेई विधानसभा क्षेत्र से वो एमएलए रहे। 1996 से 2009 तक आरजेडी से सीवान के एमपी रहे। उनके खिलाफ चालीस से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज थे जिनमें, हत्या, हत्या की कोशिश, फिरौती और अपहरण शामिल हैं।

9 दिसंबर, 2015 को सीवान के एक स्पेशल जज ने 2004 में हुए दोहरे कत्ल के मामल में शहाबुद्दीन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इस सजा को पटना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था। 15 फरवरी, 2018 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शहाबुद्दीन को सीवान जेल से दिल्ली के तिहाड़ जेल में शिफ्ट कर दिया गया था। कोविड पॉजिटिव होने के बाद 1 मई 2021 को उनकी मौत दिल्ली के डीडीयू अस्पताल में हो गई।
शहाबुद्दीन की मौत के बाद वेबसाइट द प्रिंट में दीपक मिश्रा का एक आलेख प्रकाशित हुआ था जिसमें उन्होंने शहाबुद्दीन के साथ के अनुभवों को शेयर किया था। वो लिखते हैं- ‘शहाबुद्दीन ने कहा था, मैं कोई टेªडीशनल पॉलिटिशियन नहीं हूं। क्या आप बिहार के किसी हिस्से में रात 10 बजे के बाद किसी औरत को सड़क पर चलते हुए देख सकते हैं? ऐसा आप सिर्फ सीवान में ही देख सकते हैं। यहां कोई अपराध नहीं होता।’

लालू प्रसाद मोहम्मद शहाबुद्दीन को छोटा भाई कहते थे। लेकिन शहाबुद्दीन की मौत के बाद सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर काफी हंगामा हुआ था कि राजद का कोई भी बड़ा लीडर उनकी आखिरी रसूम में हिस्सा लेने नहीं गया था। आज उनकी पत्नी हिना शहाब सीवान से निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं। उनके सामने आरजेडी के अवध बिहारी चौधरी और जेडीयू उम्मीदवार विजय लक्ष्मी देवी हैं। यह अलग बात है कि नीतीश और लालू मिलकर कभी सरकार चलाते हैं कभी एक दूसरे के लिए विपक्ष का रोल निभाते हैं। वैसे मोहम्मद शहाबुद्दीन के बुरे दिन तब ही शुरू हो गए थे जब 2015 में भागलपुर जेल से निकलने के बाद उन्होंने नीतीश कुमार को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री कहा था। वैसे कितने लोग हैं, जो शहाद्दीन के इस डॉयलॉग में छिपी सच्चाई से इंकार करेंग?

 

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