छ्पी-अनछ्पी: जदयू एमएलसी राधाचरण की 26 करोड़ की संपत्ति जब्त, शरद पवार की नहीं रही एनसीपी
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। जदयू के विधान पार्षद राधाचरण सेठ की 26 करोड़ से अधिक की संपत्ति ईडी ने जब्त की है। शरद पवार की नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी अब उनकी नहीं रही और इस पर उनके भतीजे अजित पवार का अधिकार घोषित किया गया है। इन दो खबरों को सभी अखबारों में जगह मिली है। बिहार में तीसरे चरण की शिक्षक भर्ती परीक्षा के लिए 10 फरवरी से ऑनलाइन आवेदन शुरू होगा। इस खबर को सभी अखबारों में प्रमुखता दी गई है।
प्रभात खबर की दूसरी सबसे बड़ी खबर है: एमएलसी राधाचरण व दो सहयोगियों की 39 करोड़ की संपत्तियां की गईं जब्त। ईडी ने अवैध बालू खनन मामले में बड़ी कार्रवाई करते हुए जदयू विधान पार्षद राधाचरण सेठ की करीब 26 करोड़ और उनके सहयोगी जगनारायण सिंह व सतीश कुमार की 12.96 करोड़ की संपत्ति जप्त कर ली है। कुर्क की गई एक संपत्ति धनबाद और दूसरी कई अन्य जगह मौजूद हैं। इन संपत्तियों का बाजार मूल्यांकन इससे कहीं अधिक बताया जा रहा है।
शरद पवार की नहीं रही एनसीपी
हिन्दुस्तान की खबर है कि भारतीय निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को घोषणा की कि अजित पवार गुट ही असली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) है। यह फैसला पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार के लिए झटका है। शरद पवार अजित पवार के चाचा हैं। आयोग ने महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार को पार्टी के साथ एनसीपी का प्रतीक घड़ी भी आवंटित कर दिया। मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार, निर्वाचन आयुक्त अनूप चंद्र पांडेय और अरुण गोयल की पीठ ने कहा, निर्णय में ऐसी याचिका की रखरखाव के निर्धारित परीक्षणों का पालन किया गया, जिसमें पार्टी संविधान के लक्ष्यों और उद्देश्यों का परीक्षण, पार्टी संविधान का परीक्षण, संगठनात्मक और विधायी दोनों बहुमत के परीक्षण शामिल थे।
अदृश्य शक्ति की जीत: सुले
एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने मंगलवार को चुनाव आयोग के फैसले को अदृश्य शक्ति की जीत बताया। उन्होंने इसे महाराष्ट्र और मराठी लोगों के खिलाफ एक साजिश करार दिया। सुप्रिया ने कहा कि इस फैसले से बिल्कुल भी आश्चर्यचकित नहीं हूं। इस मामले पर शरद पवार गुट के वरिष्ठ नेता जयंत पाटिल ने मंगलवार को कहा कि वह फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
तीसरे चरण की शिक्षक भर्ती के लिए आवेदन 10 से
भास्कर, प्रभात खबर और हिन्दुस्तान की पहली खबर तीसरे चरण की शिक्षक भर्ती परीक्षा से जुड़ी है। बिहार में तीसरे चरण की शिक्षक नियुक्ति परीक्षा 7 से 17 मार्च के बीच होगी। यह परीक्षा करीब 90 हज़ार पदों पर नियुक्ति के लिए होगी। 10 फरवरी से आवेदन लिया जाएगा और इसकी आखिरी तारीख 23 फरवरी है। 25 मार्च तक रिजल्ट निकलेगा। बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अतुल प्रसाद ने कहा कि दूसरे चरण की परीक्षा की तरह इस परीक्षा में भी निगेटिव मार्किंग नहीं होगी। भाषा विषय के प्रश्न पहले से आसान होंगे। मेधा विषय का स्तर बढ़ेगा।
इंजीनियरिंग छात्रों के लिए 10 हज़ार की इंटर्नशिप
जागरण की खबर है: सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र-छात्राओं को 10 हज़ार की इंटर्नशिप। बिहार के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज के विद्यार्थियों को ₹10000 की इंटर्नशिप दी जाएगी। मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में प्रस्ताव को स्वीकृति दी गई। 38 सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को 4 वर्षीय बीटेक कोर्स के सातवें सेमेस्टर में 8 सप्ताह की इंटरशिप के लिए एकमुश्त ₹10000 दिए जाएंगे।
रामबली की विधान पार्षदी गयी
हिन्दुस्तान के अनुसार राजद एमएलसी रामबली सिंह की विधान परिषद की सदस्यता समाप्त कर दी गई है। सभापति देवेशचंद्र ठाकुर ने मंगलवार को सदस्यता समाप्त करने से संबंधित फैसले पर मुहर लगाई। इसके बाद विधान परिषद सचिवालय ने अधिसूचना जारी की। राजद एमएलसी सुनील सिंह द्वारा दो नवंबर को उनके खिलाफ दाखिल याचिका पर अंतिम सुनवाई 16 जनवरी को हुई थी। इसके बाद सभापति ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। रामबली सिंह पार्टी की विचारधारा के खिलाफ लगातार बयान दे रहे थे। लालू प्रसाद और तेजस्वी प्रसाद यादव को अतिपिछड़ा विरोधी बताया था। जातीय सर्वे का भी विरोध किया था।
केजरीवाल के करीबियों के यहां छापा
ईडी ने मंगलवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निजी सहायक बिभव कुमार, आप के राज्यसभा सांसद एनडी गुप्ता समेत अन्य लोगों के परिसरों पर छापे मारे। दिल्ली जल बोर्ड में कथित अनियमितताओं से जुड़ी धनशोधन की जांच मामले में यह कार्रवाई की गई।
कुछ और सुर्खियां
- मध्य प्रदेश के हरदा शहर की पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 11 लोगों की मौत
- बिहार में राहुल गांधी की यात्रा का दूसरा चरण 15-16 फरवरी को
- कृष्णैया हत्याकांड: आनंद मोहन को 15 दिनों पर थाने में हाजिरी लगाने व पासपोर्ट जमा करने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश
- आज से 20-40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलेगी पछुआ हवा, बढ़ेगी ठंड
- उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड का रास्ता साफ, विधेयक पेश
अनछपी: ईडी को राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की नीति का नतीजा यह हुआ है कि इसकी सही कार्रवाई को भी सही मानना मुश्किल लगता है। जदयू के एमएलसी राधाचरण सेठ के खिलाफ ईडी की कार्रवाई में उनकी 26 करोड़ से अधिक की संपत्ति जप्त की गई है। आने वाले दिनों में देखने की बात यह होगी कि राधाचरण सेठ के खिलाफ ईडी की कार्रवाई किस तरह आगे बढ़ती है। ध्यान रहे कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनाई थी तो उनके करीबी माने जाने वाले मंत्री विजय कुमार चौधरी और पूर्व जदयू अध्यक्ष ललन सिंह के करीबियों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई हुई थी। राजनीतिक हालात बदलने पर नीतीश कुमार ने दोबारा भारतीय जनता पार्टी के साथ हाथ मिलाया तो एक आरोप यह भी लगा कि उन पर सहयोगियों की ओर से इस बात के लिए दबाव था ताकि केंद्रीय एजेंसियों की जांच से उनके करीबी बच सकें। भारत में यह बात लगभग आम हो गई है कि केंद्र सरकार ईडी और इनकम टैक्स का इस्तेमाल अपने राजनीतिक विरोधियों को फसाने के लिए करती है। कई बार यह आरोप लगाया जाता है कि ईडी और इनकम टैक्स भारतीय जनता पार्टी के विस्तारित अंग के रूप में काम करती है। इसके लिए यह दलील दी जाती है कि इन कार्रवाइयों में 95% से अधिक विपक्ष के नेता होते हैं। ऐसे में बिहार में की गई ईडी और इनकम टैक्स की कार्रवाई पर ध्यान रखना जरूरी है। लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के खिलाफ ईडी की कार्रवाई जग जाहिर है। अब देखना यह होगा की जनता दल यूनाइटेड के पदाधिकारी के जिन करीबी लोगों के खिलाफ ईडी ने कार्रवाई शुरू की थी उस पर अमल जारी रहता है या उन्हें सरकार बदलने के बाद छूट दी जाती है। विपक्षी दल यह आरोप लगाते हैं कि भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने या उसका सहयोगी बनने पर ऐसे लोगों को ईडी से निजात मिल जाती है। ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जिहमें ईडी से आरोपित लोगों को भारतीय जनता पार्टी का सहयोगी बनने के बाद छूट दी गई है। इसका ताजा उदाहरण महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री बनाए गए अजीत पवार हैं जिन पर 70000 करोड़ रुपए की हेराफेरी का आरोप लगा था। कहा जाता है कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की वाशिंग मशीन में खुद को साफ कर लिया। इन बातों को आम लोगों के बीच ले जाने की जरूरत है ताकि उन्हें केंद्रीय एजेंसियों की भूमिका पर अपना फैसला करने में आसानी हो।
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