छपी-अनछपी: मुफ्त दवाओं का एलान लेकिन पीएमसीएच में सूई-धागा भी ‘बाहर से लाइए’, ब्राज़ील में उत्पात
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। बिहार सरकार ने एक बार फिर कुछ और दवाओं को मुफ्त देने का ऐलान किया है लेकिन अखबारों में इस खबर के साथ यह खबर भी है कि पीएमसीएच जैसे अस्पताल में सिजेरियन के लिए आई महिलाओं को सूई-धागे तक बाहर से मंगाने के लिए कहा जाता है। ब्राजील की संसद में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समर्थकों जैसे उत्पात मचाये जाने की खबर भी आज प्रमुखता से ली गई है।
भास्कर की सबसे बड़ी खबर है: बिहार में सरकारी अस्पतालों में अब मुफ्त में मिलेंगी 611 तरह की दवाएं। हिन्दुस्तान की लीड भी यही है: अब कैंसर-किडनी की दवाएं अस्पतालों में मुफ्त मिलेंगी। अबतक 311 तरह की दवाएं मिलती थीं। सूबे के सरकारी अस्पतालों के ओपीडी में 1.91 लाख मरीज औसतन रोज आते हैं । 12.7 फीसदी महिलाएं और 16.2 फीसदी शुगर की बीमारी की चपेट में पाए गए हैं। 18.4 फीसदी पुरुष और 15.9 फीसदी महिलाएं हैं बीपी की मरीज हैं। खबरों के अनुसार मरीजों को कैंसर, किडनी-मानसिक रोग व डायलिसिस जैसी गंभीर बीमारियों की दवाएं अब निशुल्क मिलेंगी। वहीं, मधुमेह, उच्च रक्तचाप (बीपी), हृदयरोग, दमा, मिर्गी आदि की दवाओं के प्रकार के भी बढ़ाए गए हैं। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार कई और बीमारियों की भी दवाएं मुफ्त मिलेंगी।
मुफ्त दवा, मगर मिलती नहीं
जागरण की एक सुर्खी है: पीएमसीएच में सिजेरियन मुफ्त, सूई-धागा व दवा सात हजार की। इसमें लखीसराय की एक महिला की खबर दी गई है जिन्हें सिजेरियन की सलाह दी गई थी। अब पीएमसीएच में भर्ती हुई तो सब ठीक चल रहा था लेकिन 4 जनवरी को सिजेरियन के पहले उन्हें बाजार से दवा लाने की जो पर्ची थमाई वह ₹5967 की थी। इसमें ₹2067 तो सिर्फ सर्जरी के बाद पेट सिलने वाले धागे का मूल्य था। इसके अलावा ₹500 की नीडेड एंटीबायोटिक पेट सुन्न करने के लिए जाइलोकेन और गैस के इंजेक्शन वगैरा का था। इसके बाद 8 जनवरी तक उनसे करीब ₹9000 की दवाई मंगवाई गई।
ब्राज़ील में ट्रंप समर्थकों जैसा उत्पात
भास्कर की दूसरी सबसे बड़ी खबर है: ब्राजील में भी ट्रंप समर्थकों जैसा उत्पात, संसद और राष्ट्रपति भवन में 6 घंटे हंगामा तोड़फोड़। ब्राज़ील में पूर्व राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो के 3000 से ज्यादा समर्थक रविवार को अचानक पुलिस बैरिकेड्स तोड़कर संसद, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति भवन में घुस गए और तोड़फोड़ की और करीब 6 घंटे तक हंगामा किया। पुलिस ने उनपर आंसू गैस के गोले छोड़े और सुरक्षा घेरा बनाकर उन्हें खदेड़ दिया। 1200 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार भी किया गया। समर्थकों की हिंसा को तख्तापलट की साजिश माना जा रहा है। ब्राज़ील में वामपंथी नेता लुईस पिछले साल अक्टूबर में चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बने थे, लेकिन बोलसोनारो और उनके समर्थक हार मानने को तैयार नहीं है।
कंकड़बाग में लगी आग
जागरण की सबसे बड़ी खबर है: आज़ाद नगर में लगी भीषण आग, दहशत। पटना के कंकड़बाग टेंपो स्टैंड के पास आजाद नगर रोड नंबर 11 में सोमवार की रात करीब 11 बजे कबाड़ दुकान में आग लग गई जिसने बगल के राजा उत्सव कम्युनिटी हॉल को अपनी चपेट में ले लिया। इस दौरान तीन छोटे सिलेंडर भी धमाके से फट गए। इससे आसपास के मकानों को भी नुकसान पहुंचा। कबाड़ दुकान में लकड़ी के सामान और कोयला होने के कारण मिनटों में आग धधक उठी। आसपास के घरों में धुआं घुसने से लोगों का दम घुटने लगा और वह मकानों से निकलकर सड़क पर आ गए।
धर्मांतरण पर राजनीति
धर्मांतरण पर राजनीति न करें सर्वोच्च न्यायालय, यह खबर हिन्दुस्तान और जागरण में प्रमुखता से छपी है। उच्चतम न्यायालय ने धर्मांतरण को गंभीर मुद्दा बताते हुए सोमवार को कहा कि इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। न्यायालय ने जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए केंद्र और राज्यों को कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश देने का आग्रह करने वाली याचिका पर अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की मदद मांगी। मामले में अगली सुनवाई सात फरवरी को होगी। तमिलनाडु की ओर से वकील पी विल्सन ने याचिका को राजनीतिक रूप से प्रेरित जनहित याचिका बताया। उन्होंने कहा, राज्य में इस तरह धर्मांतरण का कोई सवाल ही नहीं है। पीठ ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि आपके इस तरह उत्तेजित होने के अलग कारण हो सकते हैं।
समान नागरिक संहिता पर सुप्रीम कोर्ट
जागरण की दूसरी सबसे बड़ी सुर्खी है: देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए खुला सुप्रीम रास्ता। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तराखंड गुजरात सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता यानी कॉमन सिविल कोड लागू करने के लिए कमेटी गठित करने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 162 राज्य सरकार को ऐसा अधिकार देता है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ सिंह की पीठ ने अनूप वर्णवाल की याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि याचिका विचार करने योग्य नहीं है।
फ्लाइट में शराब पीने वाले 5 हज़ार देकर छूटे
जागरण की एक प्रमुख खबर है फ्लाइट में शराब पीकर बवाल काटने वाले पांच-पांच जुर्माना भरकर छूटे। शराब पीकर इंडिगो की दिल्ली पटना फ्लाइट में बवाल काटने वाले रोहित और नीतीश को हवाई अड्डा थाना की पुलिस ने सोमवार को पटना सिविल कोर्ट की विशेष अदालत में पेश कराया जहां से दोनों को पांच-पांच जुर्माना भर आने के बाद रिहा कर दिया गया। उन पर बिहार एक्साइज एक्ट की धारा 37 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी हालांकि शुरुआती खबर में एयर होस्टेस से छेड़खानी की खबर भी आई थी।
कुछ अन्य सुर्खियां
- कटिहार: स्टेशन आ रहे ऑटो को हाइवा ने मारी टक्कर, एक ही परिवार के पांच समेत सात मरे
- सुबह में कड़ाके की ठंड से 10 जिले बेहाल, कल तक राहत के आसार नहीं
- पटना में इस सीजन का सबसे ठंडा दिन रहा सोमवार, कोल्ड डे जारी
- आधी रात को पटना से खुली तेजस राजधानी, 21 ट्रेनें लेट
- बोले नीतीश 6 महीने में तैयार हो जाएगा छपरा का सरकारी मेडिकल कॉलेज, चार लेन से जुड़ेगा
- महाराष्ट्र से स्प्रिट मंगा बिहार में बनाई जा रही थी नकली शराब
अनछपी: दिल्ली से पटना आ रही फ्लाइट में शराब पीकर हंगामा और बदतमीजी करने वाले दो लोगों को पुलिस द्वारा सिर्फ जुर्माना लेकर छोड़ने का मामला बेहद गंभीर है। ऐसा लगता है कि पुलिस ने जानबूझकर इस केस को कमजोर बनाया और सिर्फ बिहार एक्साइज एक्ट के तहत कार्रवाई की जबकि यह मामला बदतमीजी और छेड़खानी से जुड़ा हुआ था। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी बराबर यह आरोप लगाते रहे हैं कि बिहार के शराबबंदी का सबसे बड़ा नुकसान गरीब गुरबा लोगों को हुआ है। इसकी वजह शायद यही है कि गरीब लोगों को शराब पीकर पकड़े जाने पर लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है जबकि पैसे वाले लोग पैसा देकर छूट जाते हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि किसी केस को कमजोर धारा में दर्ज करना और किसी को गंभीर धाराओं में दर्ज करना पुलिस के हाथ में रहता है और पुलिस हमेशा इसमें ईमानदार नहीं होती है। पुलिस विभाग के आला अधिकारियों को इस केस को गंभीरता से देखना चाहिए और यह तय करना चाहिए कि जिन आरोपों की शिकायत की गई थी वह एफआईआर से कैसे गायब हो गई। इसमें पुलिस की मिलीभगत से इनकार नहीं किया जा सकता और यह बात भी विचारणीय है कि अगर पुलिस ने मिलीभगत नहीं की है तो ऐसा क्यों है कि पैसे वाले शराब पीकर थाने से ही छूट जाते हैं और गरीब लंबे समय तक अदालती कार्रवाइयों के बाद ही छूट पाते हैं।
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