छ्पी-अनछ्पी: नोट फ़ॉर वोट में अब एमपी-एमएलए को छूट नहीं, परिवार के सवाल पर मोदी का पलटवार

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। पैसे लेकर वोट देने या सवाल पूछने के मामले में एमपी और एमएलए को मिली कानूनी छूट सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दी है। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के परिवार पर सवाल उठाने के बाद उन्होंने पलटवार किया है। विश्वविद्यालयों के खातों से रोक हटाने के राजभवन के फैसले को बैंक नहीं मान रहे हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने के लिए एसबीआई ने जून तक का समय मांगा है। आज के अखबारों की ये अहम खबरें हैं।

भास्कर की पहली सुर्खी है: नोट फ़ॉर वोट अब अपराध, माननीय के भ्रष्टाचार का ‘कवच’ कोर्ट ने छीना। प्रभात खबर की पहली हेडलाइन है: नोट लेकर एमएलए-एमपी ने दिया वोट या पूछे सवाल तो चलेगा मुकदमा: सुप्रीम कोर्ट। जागरण की सबसे बड़ी खबर है: रिश्वत लेकर सदन में वोट या भाषण देने वालों को केस से छूट नहीं: सुप्रीम कोर्ट। हिन्दुस्तान की पहली खबर है: माननीयों को घूसखोरी का विशेषाधिकार नहीं: कोर्ट। सुप्रीम कोर्ट ने संसद और विधानसभाओं में रिश्वत लेकर वोट या भाषण देने वाले सांसदों और विधायकों को आपराधिक मुकदमों से मिलने वाली छूट सोमवार को खत्म कर दी। अदालत ने कहा कि रिश्वतखोरी के मामलों में सांसदों को संसदीय विशेषाधिकारों के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है। भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से भारतीय संसदीय लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात जज की पीठ ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले में 1998 में पारित सुप्रीम कोर्ट के पांच जज के बहुमत से पारित फैसले को पलट दिया। उक्त फैसले में सांसदों और विधायकों को रिश्वत लेकर सदन में वोट करने पर आपराधिक मुकदमे से छूट थी।

झारखंड मुक्ति मोर्चा का मामला

झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन सहित पार्टी के 4 अन्य सांसदों पर पैसे लेकर वोट देने का आरोप लगाया। इसी मामले में 25 साल पहले सांसदों विधायकों को सदन में वोट देने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने पर आपराधिक मुकदमे से छूट मिली थी।

मोदी का पलटवार

प्रभात खबर की सुर्खी है: पीएम मोदी बोले- पूरा भारत मेरा परिवार, भाजपा बोली- हम हैं मोदी का परिवार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिवार न होने को लेकर विपक्ष के हमले पर पलटवार करते हुए सोमवार को कहा कि पूरा भारत मेरा परिवार है। उन्होंने कहा, “140 करोड़ देशवासी ही मेरा परिवार हैं। जिसका कोई नहीं है वह भी मोदी के हैं और मोदी उनका है।” मोदी द्वारा देश को अपना परिवार बताए जाने के कुछ देर बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने सोशल मीडिया मंच एक्स के प्रोफाइल पर अपने नाम के आगे ‘मोदी का परिवार’ लिखा और इस संबंध में अभियान शुरू कर दिया।

यूनिवर्सिटी के बैंक खातों पर अब भी रोक

भास्कर की खबर है; विश्वविद्यालयों के खातों से रोक नहीं हटी, बैंक नहीं मान रहे हैं राजभवन का आदेश। विश्वविद्यालयों के बैंक खातों पर लगी रोक नहीं हटी। कुलपतियों की गुहार-मनुहार के बाद भी शाखा प्रबंधकों ने राशि निकासी से इनकार कर दिया। उन पर राजभवन का आदेश भी बी असर रहा। रविवार को कुलपतियों की बैठक के बाद राजभवन के प्रधान सचिव रॉबर्ट चोंग्थू ने बैंक शाखा प्रबंधकों को पत्र लिखा था। बैंकों का कहना है कि खातों के संचालन से जुड़ी प्रक्रिया में राजभवन की कोई भूमिका नहीं है। इसलिए राजभवन के पत्र के आधार पर खातों के संचालक पर लगी रोक हटाने की कोई संभावना नहीं है।

इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी के लिए समय मांगा

जागरण की खबर है कि स्टेट बैंक आफ इंडिया यानी एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को देने के लिए 30 जून तक का समय देने का अनुरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड योजना रद्द करने के फैसले में एसबीआई को निर्देश दिया था कि वह जारी किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को दे दे। साथ ही चुनाव आयोग से कहा था कि वह 13 मार्च को जानकारी वेबसाइट पर सार्वजनिक कर दे। एसबीआई का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड में गोपनीयता बनाए रखने और पहचान उजागर न होने के लिए कड़े उपाय किए गए थे। ऐसे में इलेक्टोरल बॉन्ड की डिकोडिंग और उसका वास्तविक दानकर्ता से मिलान करना एक जटिल प्रक्रिया है।

सनातन विरोधी बयान पर मंत्री को फटकार

जागरण की खबर है कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म विरोधी बयान पर नाराज की जताते हुए कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि उन्होंने अभिव्यक्ति की आजादी और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग किया। कोर्ट ने कहा कि वह मंत्री हैं और उन्हें अपनी बात का परिणाम पता होना चाहिए। सोमवार को जस्टिस संजीव खन्ना और दीपंकर दत्ता की पीठ ने यह टिप्पणी उदयनिधि स्टालिन के ‘सनातन धर्म को मिटा देने’ वाले बयान पर उनके खिलाफ विभिन्न राज्यों में दर्ज मुकदमे को एक साथ सलंग्न करने की याचिका पर सुनवाई के दौरान की।

नेपाल में सियासी उलटफेर

प्रभात खबर की खबर है कि नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल ‘प्रचंड’ ने नेपाली कांग्रेस के साथ अपनी लगभग 15 महीने की साझेदारी को मतभेदों के कारण सोमवार को खत्म कर दिया और मंत्रिमंडल में फेरबदल किया। प्रचंड ने पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली वाली कम्यूनिस्ट पार्टी के साथ नया गठबंधन किया। हालांकि ओली को प्रचंड का आलोचक माना जाता है।

कुछ और सुर्खियां

  • जयप्रकाश विश्वविद्यालय व मगध विश्वविद्यालय के वीसी पर भी एफआईआर के लिए आवेदन
  • पटना में 108 करोड़ की लागत से बने राष्ट्रीय डॉल्फिन रिसर्च सेंटर का उद्घाटन
  • बिहार प्रशासनिक सेवा के 76 अफसरों का तबादला
  • झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन राजनीति में उतरीं
  • कलकत्ता हाई कोर्ट के जज अभिजीत गंगोपाध्याय आज देंगे इस्तीफा, भाजपा में जाने की चर्चा

अनछ्पी: इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को आदेश दिया था कि वह 6 मार्च तक इसकी जानकारी चुनाव आयोग को दे दे लेकिन अब एसबीआई का कहना है कि इसके लिए उसे जून तक का समय दिया जाए। ज़ाहिर है तब तक लोकसभा चुनाव खत्म हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार यह जानकारी 13 मार्च तक चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अपलोड की जानी थी ताकि हर आदमी यह जान सके के इलेक्टोरल बॉन्ड से किसने किस पार्टी को कितना चंदा दिया। एसबीआई को दो हफ्ते से ज्यादा समय यह समझने में लग गया कि उसे यह जानकारी उपलब्ध कराने में समय लगेगा। क्या एसबीआई का हिसाब किताब इतना कमजोर है कि उसे यह समझने में ही इतना वक्त लग गया? कंप्यूटर के इस जमाने में यह बात मानना मुश्किल है कि एसबीआई को यह जानकारी 6 मार्च तक उपलब्ध कराने में दिक्कत आ रही है। और क्या यह महज इत्तेफाक है कि वह यह जानकारी देने के लिए जून तक का समय मांग रहा है जब चुनाव खत्म हो जाएंगे और इस जानकारी का चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा। ऐसे में यह आरोप लगना स्वाभाविक है कि एसबीआई वास्तव में सरकार के कहने पर जानकारी देने में आनाकानी कर रही है। भारतीय जनता पार्टी पर सरकारी एजेंसियों के गलत इस्तेमाल का आरोप पहले भी लगता रहा है। विपक्षी दल यह आरोप लगा सकते हैं कि दरअसल भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं चाहते कि एसबीआई चुनाव से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी सार्वजनिक होने दें। जवाब में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह सकते हैं कि बैंक अपना काम करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन क्या आम लोग उनकी इस बात पर भरोसा करेंगे? देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट एसबीआई की और समय मांगने की अर्जी पर क्या फैसला सुनाता है। सुप्रीम कोर्ट को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि एसबीआई ने उसकी बात को हल्के में तो नहीं ले लिया। अगर सुप्रीम कोर्ट से और समय मिल भी जाए तो भारतीय जनता पार्टी के बारे में यह आरोप लगना बंद नहीं होगा कि चुनावी चंदा के नाम पर सबसे अधिक इलेक्टोरल बॉन्ड का फायदा उसे ही मिला है और वह जानबूझकर इसे सार्वजनिक होने नहीं देना चाहती।

 

 

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