छ्पी-अनछ्पी: यूनिवर्सिटी को सैलरी के लिए 222 करोड़ मिले लेकिन निकासी पर रोक, प्रोफेसर साईबाबा 10 वर्षों बाद बरी

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। राजभवन और शिक्षा विभाग के टकराव के बीच विश्वविद्यालयों के शिक्षकों और कर्मचारियों की सैलरी के लिए 222 करोड़ रुपए जारी हो गए हैं लेकिन उसकी निकासी पर रोक लगी हुई है। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को नक्सलियों से संबंध रखने के आरोप से 10 वर्षों बाद बरी कर दिया गया है। कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश पद से त्यागपत्र देने वाले अभिजीत गंगोपाध्याय भाजपा में शामिल होंगे। हम आज के अखबारों से इन खबरों के अलावा अन्य खबरों की चर्चा भी करेंगे।

भास्कर की खबर है कि शिक्षा विभाग में विश्वविद्यालयों के शिक्षकों और कर्मचारियों को फरवरी माह के वेतन के लिए 221 करोड़ 79 लख रुपए जारी किए हैं। शिक्षा विभाग के ही आदेश पर विश्वविद्यालय के बैंक खाते फ्रीज हैं। जब तक शिक्षा विभाग का आदेश वापस नहीं होगा शिक्षकों और कर्मचारियों के खाते में वेतन नहीं जाएगा। ऐसे में विश्वविद्यालयों के 12500 शिक्षकों व कर्मियों और इतने ही पेंशनधारियों की होली बेरंग होने की आशंका है। पेंशनरों को भी बैंक शाखों में बताया जा रहा है कि राज्य सरकार के आदेश के बिना पैसे निकासी की कोई संभावना नहीं है।

विधानसभा सुरक्षा प्रहरी परीक्षा रद्द

प्रभात खबर की पहली खबर है: स्वास्थ्य, सड़क पीएचईडी के बाद विधानसभा सचिवालय पहुंची जांच की आंच। राजद्, कांग्रेस और वाम दलों की सहभागिता वाली पूर्व सरकार के तीन प्रमुख मंत्रियों से जुड़े विभागों के कामकाज की समीक्षा के बाद अब जांच की आंच के दायरे में विधानसभा सचिवालय भी आ गया है। हिन्दुस्तान की खबर है कि विधानसभा सुरक्षा प्रहरी (मार्शल) के लिए पिछले दिनों हुई परीक्षा को रद्द कर दिया गया है। अब इसके लिए नए सिरे से परीक्षा होगी। हालांकि, इसके लिए तिथि की घोषणा बाद में की जाएगी। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी के कार्यकाल में सुरक्षा प्रहरी (मार्शल) के 69 पदों के लिए 10 सितंबर को प्रारंभिक परीक्षा हुई थी। इसमें 27 हजार से अधिक अभ्यर्थी शामिल हुए थे। इसके बाद इसी साल 19 से 22 जनवरी तक अभ्यर्थियों की शारीरिक जांच व दक्षता परीक्षा हुई थी। दरअसल, विधानसभा सचिवालय को परीक्षा लेने में पारदर्शिता की कमी की शिकायत मिली थी।

प्रोफेसर साईबाबा बरी

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने मंगलवार को माओवादी संबंध मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बरी कर दिया। अदालत ने उनकी उम्रकैद रद्द कर दी। वहीं, इस फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति वाल्मीकि एस.ए. मेनेजेस की खंडपीठ ने मामले में पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया। पीठ ने कहा कि वह सभी आरोपियों को बरी कर रही है, क्योंकि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में विफल रहा। पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने साई बाबा के खिलाफ यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति बिना दिमाग लगाई दे दी। कोर्ट ने कहा कि नक्सली साहित्य रखना यूएपीए में अपराध का मामला नहीं है। उधर, साईंबाबा की पत्नी वसंता कुमारी ने कहा कि 10 वर्ष के संघर्ष के बाद न्याय मिला।

जस्टिस गंगोपाध्याय भाजपा में जाएंगे

भास्कर की खबर है: ममता सरकार से जुड़े 14 केस सीबीआई, ईडी को सौंपने वाले जज भाजपा में जाएंगे। कलकत्ता हाई कोर्ट के जज जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने मंगलवार को इस्तीफा दे दिया। उन्होंने राष्ट्रपति, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को इस्तीफा भेजा। जस्टिस गंगोपाध्याय ने बताया कि एक जज के तौर पर काम पूरा हो गया है। उन्होंने 7 मार्च को भाजपा में शामिल होने की बात कही। बताया जा रहा है कि भाजपा उन्हें लोकसभा चुनाव में पूर्व मेदिनीपुर की टालमुख सीट से उतार सकती है। यह सीट भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी के दबदबे वाली है। जस्टिस गंगोपाध्याय ने बीते 2 सालों में ममता बनर्जी सरकार से जुड़े 14 केस की जांच सीबीआई और ईडी को सौंपी है। तब तृणमूल कांग्रेस ने उन पर भाजपा के पक्ष में काम करने का आरोप लगाया था।

राहुल बोले- मोदी चाहते हैं…

जागरण ने राहुल गांधी का छपा है कि मोदी चाहते हैं आप दिन भर मोबाइल देखो, जय श्री राम बोलो और भूखे मर जाओ। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा मंगलवार को मध्य प्रदेश के शाहजहांपुर और उज्जैन पहुंची। शाहजहांपुर में एक सभा को संबोधित करते हुए राहुल ने बेरोजगारी का मुद्दा छेड़। कहा कि आज के युवा मोबाइल में व्यस्त हैं, रील देखते रहते हैं। उन्होंने कहा, “यह मोबाइल चीन में बने हैं। हिंदुस्तान के अरबपतियों ने चीन का माल यहां बेचा है। मोदी चाहते हैं कि आप दिनभर मोबाइल देखो, जय श्री राम बोलो और कोई काम धंधा ना करो। भूखे मर जाओ।”

जलवायु परिवर्तन: बिहार के 14 जिले संवेदनशील

हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी खबर है कि भारत में जलवायु परिवर्तन के 50 संवेदनशील जिलों में से 14 जिले बिहार के शामिल हैं। इतना ही नहीं जलवायु के हिसाब से देश के शीर्ष 25 प्रतिशत जोखिम वाले जिलों में सूबे के 31 जिले शामिल हैं। इसका खुलासा भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किए गए अध्ययन में हुआ। इसका जिक्र सोमवार को पटना के ज्ञान भवन में बिहार की जलवायु अनुकूल एवं न्यून कार्बन प्रारूप पर जारी रिपोर्ट में भी किया गया।

कुछ और सुर्खियां

  • मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज जाएंगे दिल्ली, वहां से इंग्लैंड रवाना होंगे
  • नीतीश कुमार, खालिद अनवर और संतोष सुमन ने विधान परिषद के लिए किया नामांकन
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज बेतिया में
  • भारत सहित कई देशों में फेसबुक ठप होने के 50 मिनट बाद सेवा शुरू
  • कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवाकुमार पर मनी लॉन्ड्रिंग का केस सुप्रीम कोर्ट में रद्द
  • गया में तकनीकी खराबी के कारण सेना के एयरक्राफ्ट की खेत में इमरजेंसी लैंडिंग
  • सोना ₹65000/10 ग्राम के नए रिकॉर्ड स्तर पर
  • एनआईए का दावा: लश्करे तैयबा कैदियों को आतंकी बनाने की कर रहा है साजिश

अनछपी: क्या गोदी मीडिया की तरह कोई गोदी जज भी हो सकता है? यह सवाल इसलिए खड़ा हुआ है कि कलकत्ता हाई कोर्ट के जज अभिजीत गंगोपाध्याय ने मंगलवार को इस्तीफा देने के साथ ही यह घोषणा कर दी कि वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल होंगे। इसे इक्का-दुक्का मामला कहकर खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि एक-दो जज के फैसले से भी काफी बड़ा प्रभाव हो सकता है। अभी वह जज के पद पर बने हुए थे ही कि उन्होंने इस बारे में भारतीय जनता पार्टी से बातचीत की। कोलकाता में प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर उन्होंने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को पूरी तरह भ्रष्ट पार्टी बताया। अब तृणमूल कांग्रेस पार्टी का कहना है कि जस्टिस गंगोपाध्याय के उन फ़ैसलों पर पुनर्विचार होना चाहिए जिसमें उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को दोषी ठहराया है। ध्यान रहे कि जस्टिस गंगोपाध्याय ने खुलकर तृणमूल कांग्रेस सरकार की आलोचना की है जिससे उन पर यह आरोप लग रहा है कि वह भारतीय जनता पार्टी के लिए काम कर रहे थे। ऐसा नहीं है कि जस्टिस गंगोपाध्याय किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल होने वाले पहले जज हैं। राजनीतिक पार्टी में शामिल होने के अलावा रिटायरमेंट के बाद सरकार चला रही पार्टी से पद लेने वाले जज भी रहे हैं। बाबरी मस्जिद मामले में फैसला देने वाले तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई को रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा सांसद बनने का मामला बहुत पुराना नहीं हुआ है। कुछ जज राज्यपाल भी बनाए गए हैं। मगर इसका मतलब यह भी नहीं कि किसी जज के राजनीतिक पार्टी से इतनी निकटता के बारे में सवाल खड़े न हों। आलोचकों का कहना है कि जज के पद से हटने के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होने के लिए एक लंबे समय का अंतराल होना चाहिए। किसी जज से निष्पक्षता की उम्मीद करना कोई खास बात नहीं लेकिन जब उस जज का खुल्लम खुल्ला झुकाव किसी राजनीतिक दल की तरफ हो तो उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठना लाजिमी है। यहां जस्टिस गंगोपाध्याय का राजनीतिक झुकाव साफ है और शायद यह उनके फैसलों में भी झलकता है। ऐसे में तृणमूल कांग्रेस की यह मांग विचारणीय लगती है कि जस्टिस गंगोपाध्याय के फैसलों की समीक्षा होनी चाहिए। यह सवाल भी उठेगा कि भारतीय जनता पार्टी जस्टिस गंगोपाध्याय को इतनी हड़बड़ी में पार्टी की सदस्यता क्यों दे रही है।

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