छपी-अनछपी: घुसपैठ के मुद्दे पर राहुल-केंद्र में तकरार, पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने खुदा को क्यों बनाया गवाह?
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। भारत की जमीन पर चीन की घुसपैठ हुई है या नहीं, इस मुद्दे पर कांग्रेस नेता और केंद्र सरकार के बीच तकरार की खबर प्रमुखता से ली गई है। उधर पाकिस्तान से यह अजीबोगरीब खबर आई है कि वहां के राष्ट्रपति ने अपने ही स्टाफ पर धोखा देने की बात कही है और खुदा को गवाह बना कर कहा है कि उन्होंने बिलों पर दस्तखत नहीं किए, उसके बावजूद कानून बन गया। इस खबर को भास्कर ने प्रमुखता दी है।
हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी खबर है: राहुल ने घुसपैठ के मुद्दे पर घेरा, केंद्र का कड़ा जवाब। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने रविवार को दावा किया कि लद्दाख में चारागाह भूमि पर चीनी सेना का कब्जा है। इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा नेताओं ने कांग्रेस नेता के दावे को खारिज कर दिया। साथ ही आरोप लगाया कि राहुल ऐसे बयान देकर भारत का अपमान कर रहे हैं। लद्दाख के दौरे पर आए राहुल गांधी ने अपने पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद कहा, यहां सभी लोगों का कहना है कि चीनी सेना ने घुसपैठ की है और हमारी चारागाह भूमि पर कब्जा कर लिया है। वे लोग अब वहां नहीं जा सकते हैं। लोगों की एक और चिंता मोबाइल संपर्क की कमी है।
खुदा गवाह है…
भास्कर की खबर है: पाक राष्ट्रपति का यू टर्न, मुश्किल में सरकार। अख़बार लिखता है कि पाकिस्तान में राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने मास्टर स्ट्रोक चला। उन्होंने रविवार को कहा कि पाकिस्तान सेना सुधार विधेयक 2023 और ऑफिशियल सीक्रेट अमेंडमेंट बिल 2023 पर उन्होंने दस्तखत नहीं किए हैं। उन्होंने अपने कार्यालय के अधिकारियों पर आदेश के खिलाफ जाने का आरोप लगाया है। राष्ट्रपति ने दो बिलों पर सहमति के एक दिन बाद सोशल मीडिया में घोषणा से सभी को चौंका दिया है। उन्होंने कहा कि मेरा खुदा गवाह है मैं इन कानूनों से सहमत नहीं हूं। मैंने अपने स्टाफ से इन बिलों को निर्धारित अवधि में बिना हस्ताक्षर के वापस करने को कहा था। मैंने कई बार उनसे इस बारे में पूछा था कि इन बिलों को लौटाया गया है या नहीं। स्टाफ ने मुझे भरोसा दिलाया कि ऐसा ही किया गया। उन्होंने आगे कहा है आज मुझे पता चला कि मेरे स्टाफ ने मेरे निर्देश का पालन नहीं किया, अल्लाह सब जानता है, वह माफ करे लेकिन मैं उन लोगों से माफी मांगता हूं जो इससे प्रभावित होंगे। क्योंकि नेशनल असेंबली भंग हो चुकी है ऐसे में अगर राष्ट्रपति ने बिल लौटा दिया है तो मतलब उन्होंने उनको खत्म कर दिया है क्योंकि उन बिलों को पास करने के लिए कोई नेशनल असेंबली नहीं है। विशेषज्ञ कहते हैं कि राष्ट्रपति के फैसले से सरकार असमंजस की स्थिति में है।
अब सभी विश्वविद्यालयों में ऑडिट
भास्कर की सबसे बड़ी खबर है: राजभवन ने ऑडिट के अधिकार की याद दिलाई तो विभाग ने सभी विश्वविद्यालय को लपेटा। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के वित्तीय अधिकार को लेकर राजभवन और सरकार के बीच शुरू हुए शह-मात के खेल की जद में राज्य के सभी विश्वविद्यालय आ गए हैं। हालात बता रहे कि दोनों में अधिकारों के प्रयोग को लेकर टकराव अभी और चढ़ेगा। पिछले दिनों जब शिक्षा विभाग नेबीआरए बिहार विश्वविद्यालय के वित्तीय अधिकार पर रोक का आदेश जारी किया तो राजभवन ने इसे कुलाधिपति के क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण बताया और शिक्षा सचिव को आदेश वापस लेने के लिए कहा। तब राजभवन ने यह भी कहा था कि विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुसार शिक्षा विभाग को ऑडिट कराने का अधिकार है। राज भवन ने 17 अगस्त को यह बात कही, शिक्षा विभाग ने 18 अगस्त को ही ऑडिट करने का पत्र जारी कर दिया। अब एक नहीं सभी विश्वविद्यालयों की ऑडिट की तैयारी है।
स्कूलों के कंस्ट्रक्शन वर्क पर रोक
जागरण की सबसे बड़ी खबर है: विद्यालय में सभी निर्माण कार्यों पर रोक। अखबार लिखता है कि अनियोजित निर्माण से उपयोगिता खोते जा रहे प्रदेश के सरकारी विद्यालयों को लेकर शिक्षा परियोजना परिषद ने बड़ा निर्णय लिया है। तत्काल प्रभाव से विद्यालयों में सभी निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई है। सभी सहायक अभियंता और कनीय अभियंता को तत्काल प्रभाव से कार्य बंद करने का आदेश दिया गया है। अब विद्यालय परिसर की ड्रोन फुटेज के आधार पर कार्य स्थल चिन्हित किए जाएंगे, इसके बाद ही नियोजित तरीके से नव निर्माण कराया जाएगा। अवकाश के दिन रविवार को जारी पत्र में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के निरीक्षण के क्रम में विद्यालयों की संरचना में मिली खामियों का उल्लेख किया गया है।
कांग्रेस कार्य समिति में तारिक़ अनवर भी
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी नई कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) का रविवार को गठन किया। इसमें महिलाओं और युवाओं को तरजीह दी गई है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 79वीं जयंती के मौके पर गठित की गई कांग्रेस कार्यसमिति में पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ शशि थरूर और सचिन पायलट को भी जगह दी गई है। नई कार्यसमिति में बिहार से मीरा कुमार व तारिक अनवर को जगह दी गई है। वहीं कन्हैया कुमार को स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाया गया है।
कुछ और सुर्खियां
- विधान परिषद में सम्राट चौधरी की जगह भाजपा के नेता हरि सहनी होंगे
- उत्तरकाशी में बस हादसा गुजरात के 7 पर्यटकों की मौत
- चांद पर लैंडिंग से 25 किलोमीटर दूर चंद्रयान, रूस का लूना हुआ क्रैश
- एलन मस्क की एक्स (ट्विटर) ने 2014 से पहले की तस्वीरें और लिंक हटाए
- केंद्र सरकार इस साल 200000 टन प्याज और खरीदेगी
- ऑफलाइन मोड में 108 केंद्रों पर आयोजित हुई सीटीईटी
- बेगूसराय में पुत्र की हत्या के चश्मदीद गवाह शिक्षक पिता की गोली मारकर हत्या
- फिल्म अभिनेता सनी देओल के जुहू स्थित बंगला की नीलामी का इश्तिहार छपा
अनछपी: पाकिस्तान की सरकारी व्यवस्था मजाक बन चुकी है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को पद से हटाने में सेना का हाथ बताया जा रहा था और उसके बाद एक और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ ने देश की कमान संभाली थी। क्योंकि पाकिस्तान में नए चुनाव के लिए कार्यवाहक सरकार बनाने की व्यवस्था है इसलिए इस समय वहां एक कार्यवाहक सरकार है। यह बात जगजाहिर है कि सेना और इमरान खान एक दूसरे को बिल्कुल पसंद नहीं करते। इस समय सेना को थोड़ी बहुत चुनौती वहां के सुप्रीम कोर्ट से मिल रही है और राष्ट्रपति आरिफ अल्वी चूंकि इमरान खान के पक्षधर माने जाते हैं इसलिए उनसे भी सेना नाराज रहती है। यह भी माना जा रहा है कि कार्यवाहक सरकार या उससे पहले की सरकार में सेना की ही चलती थी। इमरान खान फिलहाल जेल में बंद है और एक ऐसा कानून लाने की बात चल रही है इसके लागू होने से उन्हें 5 साल तक की सजा हो सकती है। यह कानून सरकारी राज़ को उजागर करने से संबंधित है और इमरान खान पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने सरकारी गोपनीयता को सबके सामने लाया है। जिन दो बिलों को सरकार ने राष्ट्रपति आरिफ अल्वी के पास भेजा था उन पर राष्ट्रपति ने दस्तखत नहीं किए लेकिन इसके बावजूद दोनों बिल पर कानून बनने का दावा किया जा रहा है। राष्ट्रपति ने ट्वीट कर कहा कि वह खुदा को गवाह बना कर यह बात कह रहे हैं कि उन्होंने उन बिलों पर दस्तखत नहीं किए हैं। दूसरी ओर सरकार का कहना है कि राष्ट्रपति के पास 10 दिन से ज्यादा बिल को रोकने का अधिकार नहीं है और अगर उन्होंने बिना टिप्पणी के बिल वापस किए हैं तो उसे कानून माना जाएगा। सरकारी पक्ष का कहना है कि राष्ट्रपति अगर किसी टिप्पणी के साथ उसे बिल को वापस भेजने तो फिर संसद में उसे पर चर्चा करना जरूरी होता। अभी यह पता नहीं चल पाया है कि क्या उन बिलों पर राष्ट्रपति के फर्जी दस्तखत किए गए हैं या उनके दस्तखत के बिना ही बिलों को कानून बताया जा रहा है। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में जाएगा जहां के चीफ जस्टिस अगले 20 दिनों में रिटायर होने वाले हैं। पाकिस्तान में वैसे भी सेना ने सरकार चला रखी है और उसकी आदत आसानी से नहीं छूटने वाली है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती की सेना झूठ, फरेब और मक्कारी से अपनी बात सरकार से मनवाना चाहती है और इसमें कामयाब भी होती है। इसीलिए पाकिस्तान अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है।
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