छ्पी-अनछ्पी: पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक के घर सीबीआई, रजिस्ट्री के लिए जमाबंदी ज़रूरी
बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ बोलने वाले पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक के घर सीबीआई के पहुंचने की खबर सभी जगह प्रमुखता से ली गई है। प्रभात खबर ने रजिस्ट्री के लिए जमाबंदी जरूरी किए जाने को अपनी पहली खबर बनाई है।
भास्कर में सुर्खी है: पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक पर सीबीआई छापे, बोले…मैं झुकूंगा नहीं। जागरण की दूसरी सबसे बड़ी खबर है: सत्यपाल मलिक के यहां सीबीआई के छापे। सीबीआई ने गुरुवार को बिहार और जम्मू कश्मीर के पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक के परिसरों पर छापेमारी की। यह छापेमारी जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ में चिनाब नदी पर प्रस्तावित किरू हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए 2019 में 2200 करोड़ रुपए का ठेका देने में भ्रष्टाचार से जुड़ी है। सीबीआई ने इस हाइड्रो प्रोजेक्ट से जुड़े चुनाव वाली पावर प्रोजेक्ट के पूर्व अफसर के ठिकानों पर भी छापे मारे। सत्यपाल मलिक ने अक्टूबर 2021 में आरोप लगाया था कि गवर्नर रहते किरू हाइड्रो प्रोजेक्ट की दो फाइलों को मंजूरी देने के लिए 300 करोड़ रुपए की रिश्वत की पेशकश की गई थी। कार्रवाई सत्यपाल मलिक के बागपत स्थित आरके पुरम, द्वारका और एशियाई गेम्स विलेज स्थित परिसर और दफ्तर के अलावा मुंबई, पटना, जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में भी की गई
सत्यपाल मलिक क्या कहते हैं?
इस बारे में सत्यपाल मलिक का कहना है कि पिछले वे तीन-चार दिनों से अस्पताल में भर्ती हैं। उन्होंने कहा कि तानाशाह सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग करके मुझे डराने की कोशिश कर रहा है। “मेरे ड्राइवर, मेरे सहायक पर भी छापेमारी कर उन्हें बेवजह परेशान किया जा रहा है। मैं किसान का बेटा हूं। इन छापों से घबराऊंगा नहीं। न में डरूंगा ना ही झुकूंगा। मैंने भ्रष्टाचार में लिप्त जिन व्यक्तियों की शिकायत की थी उनकी जांच ना करके मेरे आवास पर सीबीआई ने छापे मारे। मेरे पास चार पांच कुर्ते-पायजामे के सिवा कुछ नहीं मिलेगा।”
रजिस्ट्री के लिए जमाबंदी ज़रूरी
प्रभात खबर ने लिखा है कि राजस्व दस्तावेजों में जिनके नाम से जमाबंदी कायम होगी अब उनको ही उस संपत्ति की पुनः रजिस्ट्री करने का अधिकार मिलेगा। निबंधन कार्यालय को जमाबंदी कायम होने का सबूत देने पर ही आवेदक को संबंधित संपत्ति को बेचने की अनुमति मिलेगी। जमीन विवाद के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए हाईकोर्ट के आदेश पर निबंधन विभाग ने गुरुवार से ही यह निर्णय लागू कर दिया है। भास्कर के अनुसार राजस्व विभाग द्वारा एक दस्तावेज बनाया जाता है जिसे जमाबंदी या अधिकारों का रिकॉर्ड कहा जाता है। इस रिकॉर्ड में जमीन का मालिक कौन है, कितनी जमीन है सहित कई जानकारियां शामिल होती हैं। जांच के बाद राजस्व अधिकारी हर 5 साल में जमीन की जमाबंदी को अपडेट करते हैं। इसी के आधार पर जमीन की रसीद कटती है।
नीतीश चाचा से नहीं चलेगा बिहार: तेजस्वी
जन विश्वास यात्रा पर निकले नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने गुरुवार को एक ही दिन में अपने रतन में बस से सीवान सारण और भोजपुरी की दूरी नाप दी। तीनों जगह आयोजित जनसभा में तेजस्वी ने जोर देकर कहा कि नीतीश चाचा के पास विजन नहीं उनसे बिहार नहीं चलेगा। इसके पक्ष में उन्होंने युवावस्था का तर्क दिया। उन्होंने कहा कि हम लोग नई सोच वाले हैं और युवाओं की बेहतरीन के लिए हमारे पास विजन है।
एक्स के समर्थन में क्यों आई कांग्रेस?
जागरण के अनुसार कांग्रेस ने गुरुवार को एक का समर्थन करते हुए आरोप लगाया कि सरकार लोकतंत्र की हत्या कर रही है। एक्स ने पोस्ट कर दावा किया है कि सरकार ने किसानों के विरोध प्रदर्शन से जुड़े अकाउंट और पोस्ट को ब्लॉक करने का आदेश दिया है। एक्स ने पोस्ट किया, “हम इन कार्रवाइयों से असहमत हैं। हम केवल भारत में इन अकाउंट और पोस्ट पर रोक लगाएंगे।” एक्स ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी आह्वान किया। एक्स के इस बयान पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, भारत में लोकतंत्र की हत्या। राहुल गांधी ने कहा कि जनता जवाब देगी।
मैतेई को एसटी दर्जा वाला आदेश वापस
मणिपुर की राजधानी इंफाल से भास्कर की खबर है कि करीब 11 महीने पहले हाई कोर्ट के जिस फैसले के बाद 200 से ज्यादा लोगों की जान गई हजारों घायल हुए और 50000 से ज्यादा लोगों की जान बचाने के लिए अपना घर छोड़ना पड़ा, उसी फैसले को मणिपुर हाई कोर्ट ने संशोधित कर दिया है। जस्टिस गोलमेई गैफुलशिलु की बेंच ने पिछले आदेश से एक पैराग्राफ हटाया। उन्होंने कहा कि यह पैराग्राफ सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के रूप के खिलाफ था। 27 मार्च 2023 को अपने फैसले में जस्टिस एम मुरलीधरन ने एक पैराग्राफ लिखा था जिसमें उन्होंने मणिपुर सरकार से कहा था कि मैतेई समुदाय को एसटी में शामिल करने पर विचार करें। इसके बाद राज्य में 3 मई से हिंसा भड़की जो अब तक जारी है।
ग़ज़वा-ए-हिन्द: दारुल उलूम पर केस होगा
हिन्दुस्तान के अनुसार गजवा -ए-हिंद को लेकर दारुल उलूम का फतवा विवादों में आ गया है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने डीएमऔर एसएसपी को मुकदमा दर्ज कर जांच के आदेश दिए हैं। आयोग का पत्र मिलने के बाद डीएम ने एसएसपी से बातचीत कर मुकदमा दर्ज करने को कहा। वहीं, एसडीएम और सीओ देवबंद ने जांच शुरू कर दी। दारुल उलूम प्रबंधक (मोहतमिम) अबुल कासिम नोमानी ने कहा, हमें नोटिस नहीं मिला है। 2015 में फतवा हदीस के हवाले से दिया गया था, जो वेबसाइट पर है।
कुछ और सुर्खियां
- जदयू के पूर्व अध्यक्ष ललन सिंह ने आज तक और दैनिक जागरण पर मानहानि का केस किया
- दिल्ली में आम आदमी पार्टी चार और कांग्रेस तीन सीटों पर लड़ेगी, सहमति बनी
- इंटर का रिजल्ट होली से पहले घोषित होगा
- किसान की मौत के खिलाफ 26 फरवरी को देशभर में ट्रैक्टर मार्च
- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मंत्री जमा खान ने मनेर की दरगाह पर चादरपोशी की
- कर्नाटक में मंदिरों को 10 लाख से अधिक आय पर देना होगा टैक्स
- हिना शहाब पहल करें तो सीवान से एआईएमआईएम लोकसभा टिकट देगा: अख्तरुल इमान
अनछपी: सत्यपाल मलिक के घर सीबीआई का पहुंचना और एक्स(ट्विटर) को किसान आंदोलन से संबंधित पोस्ट को ब्लॉक करने का आदेश देना- यह दो ऐसी बातें हैं जिसे उदाहरण के तौर पर याद रखने की जरूरत है कि किस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अपने विरोधियों के खिलाफ एजेंसियों का दुरुपयोग करती है और लिखने बोलने की आजादी पर पाबंदी लगाती है। सत्यपाल मलिक किसी जमाने में भारतीय जनता पार्टी के काफी करीब थे और उसी की सरकार द्वारा बिहार व जम्मू कश्मीर में गवर्नर नियुक्त किए गए थे। मगर पिछले कई महीनों से वे लगातार भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल खड़े कर रहे थे। इसका अंदाजा उस पोस्ट से भी लगता है जो सत्यपाल मलिक ने अपने एक्स (ट्विटर) पर लिख रखा है: “अगर 2024 में #नरेंद्र_मोदी को नहीं हटाया तो ये #डेमोक्रेसी को खत्म कर देगा, चुनाव ही नहीं होगा फिर। मैं देश के लोगों को कहना चाहता हूं कि आखिरी मौका है ये इस बार #जाति #धर्म सब छोड़कर इनके खिलाफ वोट करो वरना आगे आपको वोट का भी मौका नहीं मिलेगा- #सत्यपाल_मलिक (पूर्व गवर्नर)”। इसके अलावा पुलवामा आतंकी हमले में भी वह नरेंद्र मोदी की सरकार को कटघरे में खड़ा कर चुके हैं। भ्रष्टाचार के आरोप अपनी जगह सही हो सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि भ्रष्टाचार के कथित मामलों में जिन लोगों पर कार्रवाई की जा रही है उसमें बड़ी संख्या विपक्ष के नेताओं की है। एक आम राय यह भी पाई जाती है कि जिस पर भी भाजपा भ्रष्टाचार का आरोप लगाती है अगर वह भाजपा में शामिल हो जाते हैं तो उसकी वाशिंग मशीन में जाकर वह पाक-साफ हो जाते हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मामले में तंज किया है- “पूर्व गवर्नर सच बोलें, तो उनके घर CBI भेज दो – ये है मदर ऑफ डेमोक्रेसी?” विपक्ष के नेताओं को यही बात जनता को समझाने की कोशिश करनी होगी, उनके बीच यह बातें ले जानी होंगी। दूसरी बात प्रेस की या बोलने लिखने की आजादी है। मीडिया को तो पहले ही गोदी मीडिया बनाया जा चुका है लेकिन कम से कम सोशल मीडिया पर यह गुंजाइश रहती थी कि सरकार के खिलाफ आवाज उठाई जाए। अब वहां भी सरकार पाबंदी लगा रही है। यह सब छिप-छिपाकर कर नहीं बल्कि खुल्लम खुल्ला हो रहा है। इन दोनों मामलों को याद रखने की जरूरत है ताकि समय आने पर सरकार से इसका हिसाब लिया जाए।
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