ब्लैक, व्हाइट, येलो…..और कितने रंगों में आएगा कोरोना?

बिहार लोक संवाद डाॅट नेट पटना

गिरगिट के रंग बदलने का मुहावरा तो हम बरसों से सुनते आए हैं। अब कोरोनाकाल में फ़ंगस के रंग बदल-बदल कर लोगों को मौत की नींद सुलाने का ज़माना देख रहे हैं। फ़ंगस को आम भाषा में फफूंद कहते हैं। खाने-पीने की चीज़ पर जब फफूंद लग जाती है तो वह उपयोग करने के लायक़ नहीं रह जाती। इसी तरह जब फफूंद यानी फं़गस शरीर के किसी अंग को संक्रमित कर देता है तो वह काम करना बंद कर देता है।

लगभग सवा साल के लंबे अंतराल से चली आ रही कोरोना महामारी और उससे हुई लाखों मौत से लोग परेशान थे ही कि अचानक ब्लैक फ़ंगस जैसी बीमारी पैदा हो गई। फिर जल्दी ही व्हाइट फ़ंगस आ गया। और अब येलो फ़ंगस भी आ गया है।

ब्लैक फ़ंगस के बारे में बिहार लोक संवाद डाॅट नेट से कई वीडियो तैयार होकर यूट्यूब पर अपलोड हो चुके हैं जिनमें बचाव के लिए एक्सपर्ट के इंटरव्यू भी शामिल हैं। संक्षेप में बताते चलें कि ब्लैक फ़ंगस दिल, नाक और आंख को ज़्यादा प्रभावित करता है। फेफड़ों पर भी इसका असर होता है। जबकि व्हाइट फंगस फेफड़ों को ब्लैक फंगस के मुक़ाबले ज़्यादा नुक़सान पहुंचाता है।

विशेषज्ञों के हवाले से एक अख़बार में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, व्हाइट फं़गस कोरोना से मिलते-जुलते लक्षणों वाली बीमारी है। यह फेफड़ों को प्रभावित करके उसे डैमेज कर देता है और सांस फूलने की वजह से मरीज़ कोरोना की जांच कराता रह जाता है। सीने की एचआसीटी और बलग़म के कल्चर से इस बीमारी का पता चलता है। विशेषज्ञों के अनुसार, ब्लैक और व्हाइट दोनों तरह के फं़गस का इलाज पूरी तरह मौजूद है।

दूसरी तरफ़, लखनऊ स्थित किंग जाॅर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में रेस्पीरेटरी डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डाॅ. ज्योति वाजपेयी ने कहा है कि, ‘फ़ंगस सिर्फ़ फ़ंगस होता है। न तो वह सफ़ेद होता है और न ही काला होता है। म्यूकरमाइकोसिस एक फ़ंगल इंफ़ेक्शन है। काला चकत्ता पड़ने से ही इसको ब्लैक फ़ंगस का नाम दे दिया गया। मेडिकल लिटरेचर में ब्लैक और व्हाइट फ़ंगस कुछ नहीं है। लोगों के समझने के लिए ब्लैक एंड व्हाइट का नाम दिया गया है।’ डाॅ. वाजपेयी ने कहा है कि, ‘व्हाइट फ़ंगस कैंडिडायसिस आंख, नाक और गला को कम प्रभावित करता है। ये सीधे फेफड़ों को प्रभावित करता है। फेफड़े में कोरोना की तरह धब्बे मिलते हैं।’
बिहार में ब्लैक और व्हाइट फं़गस के मामले सामने आए हैं। प्रदेश में ब्लैक फ़ंगस के मरीज़ों की संख्या 200 के पार हो गई है।

इस बीच, उत्तरप्रदेश में येलो फ़ंगस भी सामने आ गया है जिससे लोगों में दहशत फैल गई है। ग़ाज़ियाबाद निवासी कोरोना से संक्रमित एक 45 वर्षीय मरीज़ में येलो फ़ंगस के लक्षण मिले हैं। एक अख़बार को ग़ाज़ियाबाद के ईएनटी स्पेशलिस्ट डाॅक्टर बीपी त्यागी ने बताया कि, ’येलो फ़ंगस छिपकिली में पाया जाता है। इससे पहले इंसान में यह फ़ंगस मिलने का कोई रेकाॅर्ड नहीं है। पहली बार मैंने इसे इंसानों में देखा है। ब्लैक और व्हाइट फ़ंगस की तरह यह शरीर के हिस्सों को कमज़ोर करता है, बल्कि ज़ख़्म बना देता है जिसे भरने में काफ़ी समय लगता है। इसके मरीज़ को ऐम्फ़ोटेरिसिन इंजेक्शन दिया जाता है और सर्जरी की जाती है।’

बिहार में अब तक येलो फ़ंगस का को कोई मामला सामने नहीं आया है। लेकिन जिस तरह फ़ंगस रंग बदल-बदल कर आ रहा है, कब वह किसी और रंग में आ जाए, कोई ठिकाना नहीं। सोशल मी िडया पर इस बात को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है कि अगला संक्रमण पिंक फ़ंगस बन कर न आ जाए। सबको पता है, पिंक महिलाओं का पसंदीदा रंग है।

ब्यूरो इनपुट के साथ सैयद जावेद हसन, बिहार लोक संवाद डाॅट नेट, पटना

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