निहित स्वार्थ के लिए गुलाम सरवर की शख़्सीयत को किया जा रहा है सीमित

सैयद जावेद हसन, बिहार लोक संवाद डाॅट नेट

पटना, 11 जनवरी: गुलाम सरवर को उर्दू की लड़ाई ल़ड़ने वाले सिपहसालार के रूप में जाना जाता है। वो सियासतदां भी थे। बिहार के शिक्षा मंत्री, कृषि मंत्री और विभान सभा के स्पीकर रह चुके थे। इसके अलावा, सत्ता के खि़लाफ़ आवाज़ बुलंद करने वाले बेबाक पत्रकार के रूप में भी उन्हें जाना जाता है। उर्दू दैनिक हमारा नारा के संपादक अनवारुलहोदा कहते हैं कि गुलाम सरवार जैसा उर्दू पत्रकार आज की तारीख़ में मिलना मुश्किल है।

इन्हीं गुलाम सरवार की याद में हर साल 10 जनवरी को उनकी जयंती मनाई जाती जाती है। सरकारी स्तर से मनाए जाने वाली जयंती को छोड़ दें तो अधिकांश कार्यक्रम विशेष उद्देश्य के लिए होते हैं। इस उद्देश्य का अंदाज़ा आपको कार्यक्रम में किए जाने वाले भाषणों से आसानी से हो जाएगा।

लेकिन गुलाम सरवर के बहाने जिस तरह से अपनी एक विशेष प्रकार की राजनीति चमकाने की काशिश की जाती है और जो तौर-तरीक़े अपनाए जाते हैं, वो बेहद अफ़सोसनाक हैं। गुलाम सरवर के जयंती समारोह को बाक़ायदा राजनीतिक कार्यक्रम या चुनावी रैली बना दिया जाता है। पैसा और खाना का लालच देकर दूर-दूर से ग़रीबों को बुलाया जाता है। ऐसा ही रविवार को पटना में एक कार्यक्रम के दौरान हुआ।

अपने निहित स्वार्थ के लिए गुलाम सरवर की शख़्सीयत को इस्तेमाल करने के तौर-तरीक़े पर अनवारुलहोदा कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि गुलाम सरवर को एक ख़ास तबके़ का लीडर बनाया जा रहा है।

गुलाम सरवर के ऐसे कई जिगरी दोस्त थे, जो उनकी जाति के नहीं थे बल्कि सामाजिक रूप से उच्च वर्ग से ताल्लुक़ रखते थे। उनमें सैयद शाह मुश्ताक़ अहमद, सैयद ज़ेयाउद्दीन अहमद, बेताब सिद्दीक़ी, हुस्न अहमद क़ादरी, नेसार अहमद ख़ान, काॅमरेड तक़ी रहीम, मासूम शर्फ़ी असीर शामिल हैं। ऐसे में उनकी शख़्सीयत को सीमित करना किसी दुर्भाग्य से कम नहीं है।

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