छपी-अनछपी: इंडिया ने मुंबई में बनाई अपनी टीम, एक देश-एक चुनाव का खेला

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। मुंबई में हुई विपक्षी गठबंधन इंडिया ने 2024 के चुनाव के मद्देनजर अपनी टीम गठित कर ली है। इसकी खबर सभी जगह प्रमुखता से ली गई है। संसद का विशेष सत्र 18 सितंबर से बुलाए जाने की घोषणा के एक दिन के बाद एक कमेटी गठित की गई जो वन नेशन-वन इलेक्शन के बारे में चर्चा करेगी। इससे जुड़ी खबर भी पहले पेज पर है।

हिन्दुस्तान की मेन हेडलाइन है: इंडिया ने बनाई ‘टीम 14’। जागरण ने लिखा है: आईएनडीआईए में शामिल दलों ने लिया मिलकर चुनाव लड़ने का संकल्प। भास्कर की सबसे बड़ी सुर्खी है: एकजुट रहेंगे तो जीतेंगे। मध्यावधि चुनावों की चर्चा के बीच विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की तीसरी बैठक शुक्रवार को ‘जुड़ेगा भारत, जीतेगा इंडिया’ थीम के साथ संपन्न हुई। बैठक में गठबंधन की सर्वोच्च इकाई के रूप में 14 सदस्यीय एक महत्वपूर्ण समन्वय समिति गठित की गई, जिसमें बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह समेत कई दलों के प्रमुख नेता शामिल हैं। इस दौरान घटक दलों के नेताओं ने संकल्प लिया कि वे अगला लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ेंगे। साथ ही सीटों का बंटवारा बहुत जल्द कर लिया जाएगा। विपक्षी गठबंधन ने संकेत दिया कि वह एनडीए के खिलाफ किसी चेहरे पर दांव लगाने की बजाय मुद्दों को आगे करके जनता के बीच जाएगा।

क्या करेगा ‘इंडिया’

  • राज्यों में सीट बंटवारे की व्यवस्था तुरंत शुरू होगी
  • इंडिया गठबंधन देश भर में जल्द ही सार्वजनिक रैलियों का आयोजन करेगा
  • न्यूनतम साझा कार्यक्रम के जरिए चुनाव में मुकाबला करेगा इंडिया
  • कई भाषाओं में ‘जुड़ेगा इंडिया, जीतेगा इंडिया’ थीम के साथ अभियान चलेगा
  • इंडिया गठबंधन की अगली बैठक दिल्ली में होगी

कौन क्या बोला

  • अपना नुकसान करके भी मोदी को अब हटाएंगे देश को बचाएंगे: लालू
  • अभी जो केंद्र में है विपक्ष की एकजुटता से वह हारेंगे और जाएंगे: नीतीश
  • विपक्षी गठबंधन में शामिल घटक दल देश की 60% आबादी के प्रतिनिधि: राहुल गांधी
  • गठबंधन इंडिया को घमंडिया कहने से सत्तारूढ़ दल के अहंकार की बू आती है: शरद पवार
  • यह सबसे भ्रष्ट और अहंकारी सरकार है: अरविंद केजरीवाल
  • छापेमारी तथा गिरफ्तारी के लिए तैयार रहे विपक्षी गठबंधन: मल्लिकार्जुन खड़गे

वन नेशन, वन इलेक्शन का नारा

जागरण की सबसे बड़ी खबर है: एक देश, एक चुनाव पर आगे बढ़ा केंद्र। देश में पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा तक के सभी चुनाव एक साथ करने को लेकर लंबे समय से चल रही चर्चा शुक्रवार को नए सिरे से तेज हो गई जब केंद्र सरकार ने उसको लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगवाई में एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर दिया। हालांकि अभी आधिकारिक रूप से इसकी घोषणा नहीं हुई है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि इसका स्वरूप क्या होगा और उसमें कौन-कौन लोग शामिल होंगे। इसके बावजूद यह तय हो गया है कि केंद्र इस विषय को अंजाम तक ले जाना चाहता है।

सियासत गर्म

विपक्ष के कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने शुक्रवार को एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर केंद्र पर निशाना साधा। विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह देश के संघीय ढांचे के लिए खतरा पैदा करेगा। भाकपा महासचिव डी. राजा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी हमेशा भारत के लोकतंत्र की जननी होने की बात करते हैं। फिर सरकार अन्य राजनीतिक दलों से चर्चा किए बिना एकतरफा फैसला कैसे ले सकती है। द्रमुक ने कहा कि एक राष्ट्र, एक चुनाव देश के हितों के खिलाफ है। उधर, केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने शुक्रवार को कहा कि विकसित होते लोकतंत्र में नए मुद्दों पर चर्चा की जानी चाहिए। प्रह्लाद जोशी ने जयपुर हवाईअड्डे पर पत्रकारों से कहा कि समिति इस पर एक रिपोर्ट लेकर आएगी और संसद में चर्चा की जाएगी। समुद्र मंथन में निकले अमृत की तरह इस मुद्दे पर भी मंथन में अमृत ही निकलेगा। उन्होंने यह भी सवाल किया कि विपक्षी दल इस पर चिंतित क्यों हैं।

प्रभुनाथ को उम्रकैद

सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को करीब 28 साल पुराने हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए राजद नेता एवं पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई है। हिन्दुस्तान के अनुसार शीर्ष न्यायालय ने राजद नेता को बरी किए जाने के पटना हाईकोर्ट और निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए हत्या के जुर्म में दोषी ठहराया था। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ ने प्रभुनाथ सिंह और बिहार सरकार को आदेश दिया है कि वे मृतक दारोगा राय और राजेंद्र राय के परिजनों को अलग-अलग 10-10 लाख रुपये और घायल एक महिला को पांच लाख रुपये मुआवजा दें। अभियोजन पक्ष के अनुसार, सारण के मसरख में 25 मार्च, 1995 को दारोगा राय और राजेंद्र राय की हत्या की गई थी। आरोप प्रभुनाथ पर लगा था। वजह थी पक्ष में वोट न करना। उस वक्त वे बिहार पीपुल्स पार्टी से विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे।

राजभवन व विभाग में फिर तकरार

राजभवन और शिक्षा विभाग के बीच मतभेद खत्म होने के बजाय और गहराता नजर आ रहा है। गुरुवार को राजभवन ने सभी कुलपतियों को आदेश दिया था कि उन्हें सिर्फ राजभवन का ही आदेश मानना है। किसी अन्य अधिकारी का नहीं। अब शिक्षा विभाग ने इसका करारा जवाब दिया है। शुक्रवार को उसने राजभवन सचिवालय को पत्र भेजकर कहा है कि अगर ऐसा है तो आप विश्वविद्यालयों से संबंधित हजारों मुकदमे भी खुद क्यों नहीं लड़ लेते? शिक्षा विभाग ने राजभवन को जवाबी पत्र में स्पष्ट कहा है कि विश्वविद्यालयों के कार्यकलापों में हस्तक्षेप करना वह बंद नहीं करेगा। विश्वविद्यालयों पर राज्य सरकार सालाना चार हजार करोड़ खर्च करती है। साथ ही विभाग तीन हजार से अधिक केस उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में लड़ रहा है। अगर कुलाधिपति सचिवालय अपनी स्पष्ट शक्ति का उपयोग विश्वविद्यालय के कार्यकलापों में करने के लिए उत्सुक है तो सलाह दी जाती है कि इन अदालती मामलों को वह सीधे लड़े और हस्तक्षेप याचिका दायर करने पर विचार करे।

कुछ और सुर्खियां

  • ईडी ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट से महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और एनसीपी (नया गुट) नेता अजीत पवार का नाम हटाया
  • ₹2000 के 93% नोट बैंकों में वापस आए: आरबीआई
  • साले का दूसरा निकाह कराने में बुरे फंसे अररिया के पूर्व सांसद सरफराज आलम
  • चारा घोटाले में 35 अभियुक्त को चार-चार साल की सजा, एक करोड़ तक जुर्माना भी
  • एसटीईटी की आयु सीमा में 4 वर्ष की छूट, आज दोपहर 2:00 बजे तक आवेदन
  • आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत बोले- भारत हिंदू राष्ट्र, सभी भारतीय हिंदू
  • झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी ने भेजा तीसरा समन
  • रोहतास के डालमिया सीमेंट फैक्ट्री में आग लगने से तीन झुलसे, एक की मौत
  • दो चीनी विरोधियों को पछाड़कर सिंगापुर के राष्ट्रपति बने भारतवंशी शनमुगरत्नम

अनछपी: वन नेशन-वन इलेक्शन के नारे पर बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने तंज़ करते हुए पूछा है कि वन नेशन वन-इनकम क्यों नहीं। उनका यह तंज़ इसलिए आया है क्योंकि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी बनाकर केंद्र ने वन नेशन-वन इलेक्शन की अपनी पॉलिसी पर आगे बढ़ने का स्पष्ट संकेत दे दिया। अगर इस सवाल को दरकिनार कर भी दिया जाए कि एक पूर्व राष्ट्रपति को क्या ऐसी कमेटी का अध्यक्ष बनाना उनके सम्मान के अनुरूप है, तो भी कई सवाल खड़े होंगे और इस पर लंबी बहस चलेगी। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस देश के बारे में कहा जाता था कि यहां विविधताओं में एकता है वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी हर बात में भारत में एक ही चीज क्यों देखना चाहती है? इससे पहले एक देश-एक विधान का नारा भी लग चुका है जिसके तहत यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की बात कही जाती है। क्या आने वाले दिनों में भारत में वन नेशन-वन लैंग्वेज की बात भी की जाएगी? इस तरह तो वन नेशन-वन रिलिजन की भी बात कही जा सकती है। मजाक में यह बात भी कहीं जा सकती है कि एक देश-एक पकवान का नारा कैसा रहेगा। इसलिए सबसे जरूरी है कि चुनाव जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे को नारे का विषय ना बनाकर गंभीरता से सोचा जाए कि क्या एक साथ चुनाव करना समझदारी का काम है या यह महज़ एक नारे का हिस्सा हो सकता है। अगर अभी कुछ राज्यों के साथ लोकसभा चुनाव की घोषणा हो जाती है और चुनाव करा भी लिया जाता है तो इसकी क्या गारंटी है कि अगला चुनाव फिर एक साथ हो? इस दौरान अगर कहीं की सरकार गिर जाए तो क्या वहां अगले लोकसभा चुनाव तक इंतजार करना होगा? या अगर लोकसभा ही पहले भंग हो जाए तो क्या बाकी राज्यों में भी विधानसभा को भंग करनी होगी? यह ऐसे मोटे-मोटे सवाल हैं जिसका जवाब सरकार को देना चाहिए और फिर वन नेशन-वन इलेक्शन का नारा लगाना चाहिए।

 

 

 

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