सरकार की बखिया उधेड़ने वाली उर्दू शायरी बिहार में अब नहीं होती

उर्दू डायरेक्टोरेट की तरफ से पटना में सोमवार को यादगारी तकरीब का एहतेमाम किया गया। तकरीब में शकीला अखतर और वाकिफ अजीमाबादी की अदबी खिदमात पर रौशनी डाली गई। शकीला अखतर को बिहार की नामवर खातून अफसाना निगारों में शुमार किया जाता है। 16 अगस्त 1916 को अरवल में पैदा हुईं शकीला अखतर ने समाज के अलग-अलग मसाएल को अपने अफसानों का मौजू बनाया। बीआरबीए बिहार यूनीवर्सिटी के साबिक सद्र शोबाए उर्दू, प्रोफेसर हामिद अली खां ने बिहार लोक संवाद से शकीला अखतर के बारे में खास बातचीत की। 18 मार्च 1916 को जहानाबाद में पैदा हुए वाकिफ अजीमादी अपनी मुंफरिद शायरी के लिए मशहूर हैं। पटना यूनीवर्सिटी के साबिक सद्र शोबाए उर्दू, प्रोफेसर इसराईल रजा ने कहा कि अल्लामा की सबसे बड़ी देन ‘वाकिफ आर्ट’ है। 2003 में उर्दू डायरेक्टोरेट के तआवुन से वाकिफ अजीमाबादी पर एक किताब छपी थी। ‘लुत्फे सितम’ के नाम से शाया अल्लामा वाकिफ पर यह पहली किताब थी जिसमें उनकी हयात और अदबी खिदमात पर रौशनी डाली गई थी। इसमें उनके ऐसे कलाम भी शामिल थे जो सरकार और सिस्टम के खिलाफ थे।

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