छपी-अनछपीः 501 आधुनकि एंबुलेंस की सेवा मिली, वेतन के 23 लाख लौटाने वाले प्रोफेसर के खाते में महज 970 रुपये

बिहार लोक संवाद डाॅट नेट, पटना।
बिहार के सरकारी अस्पतालों में एंबुलेंस न मिलने की शिकायत तो मिलती रहती है। ऐसी वीडियो क्लिप भी वायरल हुई है जिसमें मां-बाप मरे हुए बच्चे को ठेला या पीठ पर ले जाते हुए दिखे हैं। आज के अखबारों में जो खबर छपी है उससे उम्मीद की जा सकती है कि ऐसी समस्या से खासकर गरीब लोगों की परेशानी खत्म होगी।
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की तबीयत में कुछ सुधार होने और उनके खिचड़ी खाने की खबर सभी अखबारों में प्रमुखता से छपी है।
हिन्दुस्तान की हेडलाइन हैः जिलों को भेजी गयी 501 आधुनिक एंबुलेंस। जागरण ने सुर्खी दी हैः महज 20 मिनट में मिलेगी एंबुलेंस सेवा।
प्रभात खबर की लीड हैः बिहार में अग्निवीरों की बहाली प्रक्रिया सात अक्टूबर से होगी शुरू।
भास्कर ने राजीव नगर में अतिक्रमण हटाने को लेकर चल रहे विवाद की खबर को आज फिर लीड की जगह दी है। इसका शीर्षक है- राजीवनगरः हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद जमीन माफिया पर नहीं लगाया सीसीए।
भास्कर की एक और महत्वपूर्ण खबर हैः दुनिया में भूख का संकट बढ़ा, भारत में घटा, फिर भी 22 करोड़ भारतीयों को भरपेट खाना नहीं।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जाॅनसन के अपने पद से इस्तीफा देने की खबर भी सभी अखबारों में पहले पेज पर है। बोरिस जाॅनसन की एक तस्वीर भारत में बहुत वायरल हुई थी जिसमें वे एक बुलडोजर पर खड़े थे। आज उसी तस्वीर के साथ यह लिखा जा रहा कि वक्त के बुलडोजर ने उन्हें सबक सिखा दिया।
जागरण ने खबर दी है कि दानापुर में जिस पूर्व पार्षद की हत्या हुई थी उसका आरोप उनके बेटा पर ही लगा है। हेडिंग है- बेटे पर ही पूर्व जिला पार्षद की हत्या का आरोप, तंग आ चुका था पिता के अवैध संबंध से।
अनछपीः प्रभात खबर ने उस प्रोफेसर के बारे में खोजपूर्ण रिपोर्ट छापी है जिन्होंने एक भी छात्र को नहीं पढ़ाने का हवाला देकर वेतन के 23 लाख 82 हजार रुपये भीमराव अंबेडकर मुजफ्फरपुर को लौटाने के लिए चेक देकर पूरे देश में सुर्खियां बटोरी थीं। ये हैं नीतीश्वर काॅलेज के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर डाॅ. ललन कुमार। लेकिन प्रभात खबर के अनुसार जिस बैंक का चेक उन्होंने विश्वविद्यालय को दिया है उसमें महज 970 रुपये हैं। ऐसे में यह सवाल पैदा हो रहा है कि जब उनके खाते में पैसे हैं ही नहीं तो इस चेक का क्या मतलब। यह बात पहले से कही जा रही थी कि उन्होंने ऐसा चेक कर मीडिया में स्टंट तो नहीं किया है। इस स्टंट के पीछे जो कारण बताया जा रहा है वह यह है कि वे इस काॅलेज से अपना ट्रांसफर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में कराना चाह रहे थे। इसमें नाकामी के बाद यह नौटंकी रची गयी।
सोचने की असल बात यह है कि ऐसी खबरें मीडिया में बिना पूरी जांच-पड़ताल के कैसे छा जाती हैं। बीबीसी हिन्दी जैसी संस्था ने भी इसे उसी रूप में कवर किया जैसा प्रोफेसर साहब चाहते थे। सोशल मीडिया में पहले तो यह कहा गया कि चूंकि जेएनयू से पढ़ कर आये हैं तो उन्होंने ऐसी नैतिकता दिखायी लेकिन अब यह बात कही जा रही है कि जेएनयू से पढ़ने वाले का हाल देखिए। इसी के साथ उन रिपोर्टरों के बारे में भी सोचिए जो ऐसी बनावटी खबरें नहीं लिखना चाहते लेकिन उनपर संपादक और प्रबंधन का दबाव रहता है। पिछले साल इसी तरह का एक दावा अखबारों में छाया था कि इमामगंज, गया के लौंगी भुइयां ने पूरी नहर अकेले दम पर खोदी थी लेकिन एक वरिष्ठ पत्रकार ने जब इसे फर्जी बताते हुए खबर लिखने से मना कर दिया तो उनपर इतना दबाव बना कि उन्होंने अखबार से इस्तीफा दे दिया।

 1,016 total views

Share Now

Leave a Reply