छ्पी-अनछ्पी: इलेक्टोरल बॉन्ड से बीजेपी को मिले 60 अरब, एक देश-एक चुनाव की सिफारिश

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। सुप्रीम कोर्ट के फैसले और कड़ाई के बाद यह जानकारी आम की गई है के किस पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड से कितने का चंदा मिला। इस खबर को अच्छी कवरेज मिली है लेकिन यह बात अंडरप्ले की गई है कि सबसे ज्यादा चंदा भारतीय जनता पार्टी को मिला है। एक देश, एक चुनाव के नाम पर बनाई गई समिति ने इसकी सिफारिश कर राष्ट्रपति को इसका मसौदा सौंप दिया है। सभी अखबारों ने इसे पहले पेज पर जगह दी है। भास्कर की खास खबर है कि सीवान के माइनॉरिटी हॉस्टल में मवेशी बांधी जा रहे हैं और वहां छात्र रहने के लिए तैयार नहीं।

भास्कर की सबसे बड़ी सुर्खी है: नेताओं के चंदा ‘मामा’। प्रभात खबर की पहली सुर्खी है: चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट की डेडलाइन से एक दिन पहले सार्वजनिक किए चुनावी बॉन्ड के आंकड़े। हिन्दुस्तान की पहली खबर है: चुनावी चंदे के आंकड़े जारी। भारतीय निर्वाचन आयोग ने चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को चंदा देने वाली कंपनियों और लोगों के नाम गुरुवार को सार्वजनिक कर दिए। सबसे अधिक चंदा देने वालों में तमिलनाडु की लॉटरी फर्म और आंध्र प्रदेश की इंफ्रा कंपनी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख के बाद एसबीआई ने मंगलवार को चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों का विवरण भारतीय निर्वाचन आयोग को मुहैया कराया था।

किस पार्टी को कितना मिला चंदा

चुनावी चंदा पाने वालों में भाजपा, कांग्रेस, एआईएडीएमके, बीआरएस, शिवसेना, टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस, डीएमके, जेडी-एस, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस, जेडीयू, आप, राजद, समाजवादी पार्टी, जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, बीजेडी, गोवा फॉरवर्ड पार्टी, महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, जेएमएम, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट और अन्य पार्टियां शामिल हैं। इसमें भारतीय जनता पार्टी को 6060 करोड़, तृणमूल कांग्रेस को 1609 करोड़, कांग्रेस को 1421 करोड़, बीआरएस को 1214 करोड़, बीजू जनता दल को 775 करोड़, डीएमके को 639 करोड़, वाईएसआर कांग्रेस को 237 करोड़, तेलुगू देशम पार्टी को 218 करोड़, शिवसेना को 158 करोड़ और राजद को 72 करोड़ रुपए मिले हैं।

एक देश, एक चुनाव की सिफारिश

भास्कर की खबर है: एक देश एक चुनाव- जिस साल से लागू होगा राज्य सरकारों का बचा कार्यकाल तभी तक चलेगा। एक देश एक चुनाव यानी देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ करने की तैयारी है। 32 राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन तो 15 दलों ने विरोध किया। समिति ने पहले चरण में लोकसभा, विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने की सिफारिश की है। इसके 100 दिनों में दूसरे चरण में नगरपालिका और पंचायत चुनाव की सिफारिश की है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने इस बाबत रिपोर्ट गुरुवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी। करीब 7 महीने की कवायद के बाद तैयार इस रिपोर्ट में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने का रास्ता और उसके लिए संविधान संशोधन की क़ानूनी जरूरत का ब्लूप्रिंट दिया गया है। असर यह होगा कि इन सिफारिशों को जिस साल से लागू किया जाएगा, राज्य सरकारों का बचा कार्यकाल भी उसी साल तक चलेगा।

सीवान के माइनॉरिटी हॉस्टल में मवेशी

भास्कर की सुर्खी है: 2 करोड़ रुपए के अल्पसंख्यक छात्रावास में मवेशी बांधे जा रहे, गोइठा ठोका जा रहा। 2 करोड़ के अल्पसंख्यक छात्रावास में मवेशी बांधे जा रहे हैं। गोइठा ठोक जा रहा है। यह छात्रावास सीवान जिले के हसनपुर प्रखंड के पब्लिक उच्च विद्यालय सह इंटर कॉलेज सहुली के कैंपस में 14 साल पहले बना था। पर इतने वर्षों में इसमें एक छात्र को भी ठिकाना मयस्सर नहीं हुआ। इस बारे में प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी राजकुमारी का कहना है कि चारदिवारी नहीं है और सुरक्षा गार्ड नहीं है इसलिए इसमें छात्र रहना नहीं चाहते हैं।

भाजपा 17 सीटों पर लड़ सकती है

जागरण की सबसे बड़ी खबर है भाजपा 17, जदयू 16 व लोजपा (रा) चार सीटों पर लड़ सकते लोकसभा चुनाव। बिहार के लिए एनडीए में सीट शेयरिंग पर मुहर लग गई है। शुक्रवार को इसकी घोषणा संभव है। विधान परिषद के 2 वर्षीय चुनाव में चुने जाने के बाद अपना प्रमाण पत्र लेकर लौटने के क्रम में गुरुवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि इस पर काम हो रहा है, आज रात ही सब कुछ तय हो जाएगा। सीट शेयरिंग के फार्मूला के बारे में मिली जानकारी के अनुसार जदयू 16 और भाजपा 17 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरेगी। लोजपा (रामविलास) को चार सीटें देने पर पूर्व से सहमति है। वहीं तीन सीटों का विभाजन हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा के बीच होगा।

जमाबंदी की शर्त से रजिस्ट्री घटी

जागरण की खबर है की जमीन की खरीद बिक्री में जमाबंदी की अनिवार्यता की शर्त जोड़ने के बाद से निबंध में 60 से 70% की कमी आई है। पहले राज्य में औसतन 5000 दस्तावेजों का हर दिन निबंधन होता था जो आज औसतन 1500 तक रह गया है। इसका प्रभाव निबंधन विभाग के राजस्व लक्ष्य पर भी पड़ा है।

नए चुनाव आयुक्त भाजपा नीतियों के करीबी

लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से पहले, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारियों ज्ञानेश कुमार और सुखबीर संधू को गुरुवार को निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया गया। विधि एवं न्याय मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर इसकी घोषणा की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने उनके नामों की सिफारिश करने के लिए आज बैठक की। कुमार और संधू दोनों वर्ष 1988 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। कुमार केरल और संधू उत्तराखंड कैडर से आते थे। दोनों के शुक्रवार को पदभार संभालने की उम्मीद है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव सुखबीर संधू ने राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने के विचार की देखरेख की थी। संविधान के अनुच्छेद-370 के कई प्रावधानों को जब निरस्त किया गया था तब ज्ञानेश कुमार गृह मंत्रालय में पदस्थापित थे।

कुछ और सुर्खियां

  • पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी घर में गिरीं, अस्पताल में टांके लगाने के बाद घर लौटीं
  • दिल्ली में घर के अंदर लगी आग, दरभंगा के चार लोगों की मौत
  • पटना सहित बिहार के 167 सीडीपीओ व डीएसपी का तबादला
  • चुनाव से पहले पेट्रोल और डीजल की कीमत में ₹2 की कटौती
  • अश्लील सामग्री पर 18 ओटीटी प्लेटफॉर्मों समेत 19 वेबसाइट ब्लॉक
  • पटना सिविल कोर्ट में ट्रांसफार्मर ब्लास्ट में झुलसे मुंशी ने भी दम तोड़ा

अनछ्पी: इलेक्टोरल बॉन्ड से किस पार्टी को कितना चंदा मिला इसकी जानकारी सामने आने के बाद दो सवाल उठते हैं। पहला सवाल तो यह है कि जिस जानकारी को देने के लिए स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया जून तक का समय मांग रहा था आखिर वह जानकारी सुप्रीम कोर्ट की कड़ाई के बाद इतनी जल्दी कैसे दे पाया? स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के अफसरों को इस मामले में छूट नहीं मिलनी चाहिए और यह देखा जाना चाहिए कि क्या सरकार के दबाव में एसबीआई ने जून तक का समय मांगा था। एसबीआई इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने में जिन पेचीदगियों के बारे में बात कर रहा था वह कैसे इतनी जल्दी दूर हो गईं? दूसरी बात यह है कि जो जानकारी एसबीआई ने दी है उससे यह तो पता चलता है कि किस कंपनी ने कितना चंदा दिया और किस पार्टी को कितना चंदा मिला लेकिन यह पता नहीं चलता कि किस कंपनी ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया। क्या एसबीआई ने यह जानकारी नहीं दी है या चुनाव आयोग ने यह जानकारी सार्वजनिक नहीं की है? क्या यह जानकारी हासिल करना मुमकिन है कि किस कंपनी ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया है? अगर यह मुमकिन है तो सुप्रीम को को इस मामले में ध्यान देना चाहिए और आम लोगों को यह जानकारी मिलनी चाहिए कि किस कंपनी ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया। यह जानकारी इसलिए जरूरी है कि ऐसे इल्जाम लगते हैं कि कंपनियां चंदे देकर पार्टियों को नीतियां बदलने के लिए दबाव डालती हैं। हैरत की बात यह है कि किसी अखबार ने यह हेडिंग नहीं लगाई कि भारतीय जनता पार्टी को 6060 करोड़ रुपए का चंदा मिला। दूसरे नंबर पर चंदा पानी वाली पार्टी तृणमूल कांग्रेस है जिसे 1609 करोड़ रुपए मिले लेकिन भारतीय जनता पार्टी को इससे लगभग पांच हज़ार करोड़ ज्यादा मिले। भारतीय जनता पार्टी पर यह इल्जाम लगता है कि उसकी सरकार कॉर्पोरेट घरानों के लिए काम करती है और इस आरोप को उसे मिले चंदे के कारण बल मिलता है। भारतीय जनता पार्टी कह सकती है कि कंपनियां उसकी लोकप्रियता के वजह से उसे चंदा देती हैं लेकिन विपक्ष का यह कहना है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार से लाभ लेने के लिए कंपनियों ने उसे चंदा दिया है। आने वाले दिनों में इसके बारे में और जानकारी मिलेगी कि भारतीय जनता पार्टी को इतना अधिक चंदा मिलने की वजह क्या है।

 

 

 

 

 

 

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