छपी-अनछपी: जातीय गिनती जुलाई तक अदालती पेच में फंसी, राबड़ी देवी से 3.5 करोड़ की ज़मीन पर ईडी के सवाल

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। बिहार में जातीय गणना पर हाईकोर्ट की रोक को हटाने से सुप्रीम कोर्ट ने भी इंकार कर दिया है जिसकी खबर प्रमुखता से ली गई है। पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से इंफोर्समेंट डायरेक्टरेट यानी ईडी ने कथित तौर पर 3.5 करोड़ रुपए की जमीन के बारे में पूछताछ की है। इसकी खबर भी पहले पेज पर है। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (साथ लगी तस्वीर) का मंत्रालय बदलने की खबर भी प्रमुख है।

जागरण की सबसे बड़ी खबर है: जाति गणना पर लगी रोक हटाने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार। भास्कर ने लिखा है; जाति गणना पर हाईकोर्ट में जाएं, वहां पर बात न बने तो 14 जुलाई को हमारे पास आएं: सुप्रीम कोर्ट। न्यायमूर्ति अभय अशोका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने बिहार में जाति गणना पर हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई अंतरिम रोक के आदेश को बरकरार रखा। हाई कोर्ट का यह अंतरिम आदेश है और इस पर अगली सुनवाई 3 जुलाई को होनी है। कोर्ट का कहना था कि बिहार सरकार पहले 3 जुलाई को पटना हाईकोर्ट की सुनवाई में हाजिर हो। वहां अपने तर्क को रखें। अगर पटना हाईकोर्ट से बिहार सरकार संतुष्ट नहीं होती तो 14 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।

7.5 लाख की ज़मीन से 3.5 करोड़?

भास्कर की सबसे बड़ी सुर्खी है: ईडी ने राबड़ी से पूछा 7.5 लाख में खरीदी जमीन 3.5 करोड़ में बेची, इसमें तेजस्वी को कितने पैसे ट्रांसफर किए। कथित जमीन के बदले रेलवे में नौकरी मामले में गुरुवार को ईडी ने पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से दिल्ली मुख्यालय में 4 घंटे तक पूछताछ की। यह पूछताछ राजद विधायक किरण देवी और राज्यसभा सांसद प्रेमचंद गुप्ता के ठिकानों पर सीबीआई की छापेमारी के ठीक 2 दिन के बाद की गई है। ईडी ने राबड़ी देवी से यह भी पूछा कि क्या यह सही है कि ग्रुप डी के अभ्यर्थियों से 4 प्लॉट सिर्फ 7.5 लाख रुपये में खरीदे गए जिसे उन्होंने पूर्व विधायक सैयद अबू दुजाना को बेचकर 3.5 करोड़ रुपये अर्जित किए? क्या यह भी सही है कि कैश का अधिकांश हिस्सा तेजस्वी यादव के खाते में गया? सूत्रों के अनुसार पूछताछ में राबड़ी देवी ने बार-बार यही कहा कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है।

सिद्धारमैया का शपथ कल

कर्नाटक में सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाए जाने के फैसले की खबर कल आ चुकी थी। सूत्रों के अनुसार सोनिया गांधी के कहने पर डीके शिवकुमार डिप्टी चीफ मिनिस्टर बनने को तैयार हो गए हैं। हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी खबर यही है: सिद्धरमैया सीएम, डिप्टी बनने को शिवकुमार राजी। सिद्धा को सिद्ध और सिद्द भी लिखा जा रहा है। तय फॉर्मूले के मुताबिक, सिद्धरमैया मुख्यमंत्री और डीके शिवकुमार उपमुख्यमंत्री होंगे। इस बीच, बेंगलुरु में गुरुवार शाम कांग्रेस विधायक दल की बैठक में सिद्धरमैया को नेता चुना गया। इसके बाद उन्होंने राज्यपाल थावरचंद गहलोत से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया। शपथ ग्रहण समारोह शनिवार दोपहर 12.30 बजे होगा।

रिजिजू से छिना क़ानून मंत्रालय

हिन्दुस्तान और जागरण की दूसरी सबसे बड़ी खबर है: कानून मंत्रालय से हटाए गए किरेन रिजिजू। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मंत्रिपरिषद में छोटा, लेकिन अहम बदलाव करते हुए किरेन रिजिजू को कानून मंत्री से हटाकर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का जिम्मा सौंप दिया। उनकी जगह संसदीय कार्य और संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल अब देश के विधि एवं न्याय (स्वतंत्र प्रभार) मंत्री बनाए गए हैं। साथ ही विधि व न्याय राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल को भी कानून मंत्रालय से हटाकर स्वास्थ्य मंत्रालय भेजा गया है। हाल ही में न्यायिक नियुक्तियों को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट में उभरे मतभेदों को देखते हुए इस बदलाव का काफी महत्व है।

‘जल्लीकट्टू’ को मंजूरी

हिन्दुस्तान की खबर है: ‘जल्लीकट्टू’ को मंजूरी देने वाले कानूनी वैधता बरकरार। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु के उस कानून की वैधता बरकरार रखी, जिसके तहत ‘जल्लीकट्टू’ को मंजूरी दी गई थी। शीर्ष कोर्ट के निर्णय के बाद ‘पेटा इंडिया’ ने कहा है वह सांडों की रक्षा के लिए कानूनी उपाय तलाश रहे हैं। दूसरी ओर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया। न्यायमूर्ति के एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। पीठ ने इसी के साथ बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति देने वाले महाराष्ट्र के कानून की वैधता भी बरकरार रखी। उल्लेखनीय है कि ‘जल्लीकट्टू’ तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में पोंगल के त्योहार के दौरान आयोजित किया जाने वाला एक पारंपरिक खेल है। काफी समय से कई संगठन ‘जल्लीकट्टू’को जानवरों पर हिंसा करार देते हुए इसे रोकने की मांग करते आ रहे हैं।

कुछ और सुर्खियां

  • अरवल के मेहंदिया थाना क्षेत्र में ट्रक ने 4 छात्राओं समेत पांच को रौंदा, दो की मौत
  • सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में सरकार द्वारा द केरल स्टोरी पर लगाई रोक को हटाया
  • बीपीएससी 68 में मुख्य परीक्षा का रिजल्ट 3 महीने में
  • बाबा बागेश्वर ने नहीं लगाई थी सीट बेल्ट, चालान कटा
  • नया संसद बनकर तैयार, प्रधानमंत्री 28 को करेंगे उद्घाटन
  • बेंगलुरु में सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होंगे नीतीश कुमार
  • मणिपुर में कुकी के लिए अलग क्षेत्र की मांग, मिजोरम में बैठक

अनछपी: किरेन रिजिजू का कानून मंत्रालय से जाना कई अर्थों में महत्वपूर्ण है। श्री रिजिजू को पूरी न्यायपालिका को चुनौती देने के लिए जाना जाएगा। उन्होंने न्यायपालिका और न्यायाधीशों के बारे में ऐसी बातें कहीं जिससे सरकार के बारे में अच्छा संदेश नहीं जा रहा था। सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम पद्धति के खिलाफ भी उन्होंने खुलकर बयान दिए थे। उनके इस रवैया से यह संदेश जा रहा था कि सरकार न्यायपालिका को अपने दबाव में रखना चाहती है। ऐसा लगता है कि रिजिजू न्यायपालिका के लिए अब बिल्कुल अस्वीकार्य हो गए थे इसलिए और टकराव के बजाय सरकार ने उन को हटाना मुनासिब समझा। लेकिन क्या रिजिजू सरकार की सहमति के बिना न्यायपालिका से टक्कर ले रहे थे? ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है। इसीलिए यह मानना भी मुश्किल है कि आगे सरकार अब नए मंत्री के काल में न्यायपालिका से ऐसी कोई बात नहीं करेगी जिससे टकराव की आशंका हो। वास्तव में दुनिया भर की सरकारें चाहती हैं कि न्यायपालिका उनकी बात को माने और भारत इससे अलग नहीं है। इस समय पाकिस्तान में भी यही टक्कर चल रहा है लेकिन भारत में उसकी मर्यादा बरकरार है जबकि पाकिस्तान में यह खुला खेल फर्रुखाबादी हो चुका है। पाकिस्तान में तो सरकारी दलों के नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ धरना तक दिया है। सरकारें चाहती हैं कि ऐसे जज कोर्ट में आएं जो उनके मन के अनुसार फैसले दें। भारत में सुप्रीम कोर्ट ने अपना सख्त रवैया अपनाया है जिसके कारण सरकार मंत्री को बदलने पर मजबूर हुई है। लेकिन यह इस टकराव का अंतिम पड़ाव नहीं है।

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