छपी-अनछपी: मोदी सरकार के 9 साल पर कांग्रेस के 9 सवाल, नीति आयोग की बैठक में नहीं जाएंगे नीतीश

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के 9 साल पूरे होने पर जहां भारतीय जनता पार्टी ने इसे बेमिसाल बताया है वहीं कांग्रेस ने इस मौके पर 9 सवाल दागे हैं। इससे संबंधित खबरें प्रमुखता से ली गई हैं। नीतीश कुमार समेत कई मुख्यमंत्री नीति आयोग की बैठक में नहीं जाएंगे। इसकी सूचना पहले पेज पर है। साथ मे उस अफसर की कहानी जिसने अपने डेढ़ लाख के मोबाइल फोन को खोजने के लिए बांध का पानी बहवा दिया।

हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी खबर है: दावा: 9 साल बेमिसाल। जागरण की दूसरी सबसे बड़ी सुर्खी है: भाजपा ने कहा, 9 साल बेमिसाल। जागरण लिखता है कि नरेंद्र मोदी सरकार के 9 वर्ष पूरे होने पर भारतीय जनता पार्टी ने विस्तार से इसकी उपलब्धियां गिनाईं और इन 9 वर्षों को बेमिसाल करार दिया। महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने पीपीटी प्रेजेंटेशन में बताया कि किस तरह मोदी सरकार के दौरान 2014 की तुलना में 2023 में देश के हर क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है। पार्टी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस के सवालों को झूठ करार देते हुए कहा कि मोदी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को कमज़ोर 5 से टॉप फाइव में पहुंचाने का काम किया है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ना सिर्फ विदेश में भारत का सम्मान बढ़ा है बल्कि देश के भीतर भी गरीब, वंचित, किसान और महिला समेत सभी वर्गों का विकास हुआ है।

कांग्रेस के 9 सवाल

कांग्रेस ने मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने पर नौ सवाल पूछे हैं। पार्टी का कहना है कि वह भारत जोड़ो यात्रा और उसके बाद लगातार यह प्रश्न कर रही है, पर सरकार ने उसके सवालों के जवाब नहीं दिए हैं। पार्टी का आरोप है कि सरकार ने जो वादे किए थे, वह काल्पनिक थे और चुनाव प्रचार के दौरान कोई वादा पूरा नहीं हुआ है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश, पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा और सुप्रिया श्रीनेत ने कांग्रेस मुख्यालय में सरकार के नौ साल पर पुस्तिका जारी की। इस पुस्तिका में पार्टी ने नौ सवाल उठाते हुए सरकार से चुप्पी तोड़ने की मांग की है।

सवाल:

  1. सार्वजनिक उपक्रमों को सरकार अपने पसंदीदा उद्योगपतियों को क्यों बेच रही है?
  2. एमएसपी की गारंटी की मांग पूरी क्यों नहीं की?
  3. एलआईसी-एसबीआई का पैसा दांव पर क्यों लगाया जा रहा है?
  4. जाति आधारित जनगणना पर चुप्पी क्यों?
  5. चीन को क्लीन चिट क्यों दी?
  6. चुनावी फायदे के लिए डर का माहौल क्यों पैदा किया जा रहा है?
  7. विपक्षी नेताओं पर बदले की भावना से कार्रवाई क्यों की जा रही है।
  8. विपक्ष शासित राज्य सरकारों को अस्थिर करने का प्रयास क्यों किया जा रहा है?
  9. क्या ऐसा नहीं है कि कुप्रबंधन से 40 लाख लोगों की मौत हुई और प्रभावित परिवारों को मुआवजा तक नहीं दिया?

नीति आयोग से दूरी

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत 5 सीएम ने नीति आयोग की बैठक से दूरी बना ली है। इस खबर को सबने जगह दी है। नीति आयोग की शनिवार को होने वाली बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत पांच मुख्यमंत्री शामिल नहीं होंगे। नीतीश कुमार के अलावा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के सीएम भगवंत मान, तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक में हिस्सा न लेने का ऐलान किया है। केजरीवाल ने पीएम को पत्र लिखकर कहा कि नीति आयोग का उद्देश्य पूरे देश के लिए विजन तैयार करना और सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह गैर भाजपा सरकारों को गिराया जा रहा है, यह सहकारी संघवाद नहीं है। इसलिए बैठक में नहीं जाएंगे।

अफसर के फोन की कहानी

भास्कर की खबर है: डेढ़ लाख का फोन ढूंढने के लिए बांध का पानी बहा देने वाला अफसर सस्पेंड, आदेश देने वाले को भी शो-कॉज़। छत्तीसगढ़ के एक फ़ूड इंस्पेक्टर ने कांकेर जिले के परलकोट स्थित वीयर (जलाशय) में मोबाइल फोन गिरने के बाद 41 लाख लीटर पानी निकाल बहा दिया। इस अफसर को पिछले सप्ताह के अंत में पानी की भारी बर्बादी के लिए निलंबित कर दिया गया है। एक अधिकारी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। पखांजौर क्षेत्र में तैनात खाद्य निरीक्षक राजेश विश्वास 21 मई को अपने दोस्तों के साथ जलाशय में घूमने गए थे। सेल्फी लेते समय उनका मोबाइल फोन फालतू पानी को बहा ले जाने वाले नाले में गिर गया। राजेश विश्वास ने ग्रामीणों को अपनी बातों में फंसाया और मोबाइल फोन मिलने तक बांध से पानी खाली करने के लिए डीजल पंप लगवाए। मामला सामने आने के बाद कांकेर कलेक्टर प्रियंका शुक्ला ने खाद्य निरीक्षक अधिकारी को निलंबित कर दिया।

सेंगोल क्या है और इस पर बहस क्यों?

जागरण की एक खबर है: कांग्रेस ने सेंगोल के साथ जुड़े तथ्यों को बताया झूठा, भाजपा बोली- राजदंड को बनाया वाकिंग स्टिक। अख़बार लिखता है कि नए संसद भवन और उसमें स्थापित किए जा रहे सेंगोल को लेकर राजनीतिक खींचतान थमने का नाम नहीं ले रही है। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने शुक्रवार को ट्वीट कर सेंगोल के संबंध में कोई दस्तावेजी सबूत नहीं होने की बात कहते हुए सत्ता हस्तांतरण से इसके जुड़ाव के हाल के सामने आए तथ्यों को झूठा बताया जिस पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तीखा पलटवार किया। रमेश ने ट्वीट में लिखा कि माउंटबेटन राजा जी और पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा सैंगोल को ब्रिटिश राज से सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया से जोड़ने का कोई लिखित साक्ष्य नहीं है। उन्होंने लिखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ तमिलनाडु में उनका गुणगान करने वाले अपने राजनीतिक फायदे के लिए सेंगोल का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि तत्कालीन मद्रास प्रांत में एक धार्मिक प्रतिष्ठान द्वारा मद्रास शहर में तैयार राजदंड अगस्त 1947 में नेहरू को प्रस्तुत किया गया था लेकिन सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में इसके वर्णन की कोई लिखित जानकारी उपलब्ध नहीं है।

कुछ और सुर्खियां

  • बिहार के 90 असंबद्ध डिग्री कॉलेजों में बिना मान्यता प्राप्त किए 254000 विद्यार्थियों का नामांकन लेने का मामला उजागर
  • मणिपुर में कर्फ्यू के बीच केंद्रीय मंत्री के आवास पर धावा बोला
  • 629 अंक उछलकर सेंसेक्स 62500 के पार
  • समस्तीपुर में सवा घंटे में बैंक व पेट्रोल पंपों से 7.37 लाख लूटे
  • छात्रों का आंकड़ा नहीं देने वाले 4026 निजी स्कूलों को नोटिस
  • गो फर्स्ट ने 28 मई तक उड़ानें रद्द कीं
  • कोर्ट ने दिल्ली के पूर्व मंत्री बीमार सत्येंद्र जैन को अंतरिम जमानत दी

अनछपी: बिहार के 90 डिग्री कॉलेजों के ढाई लाख विद्यार्थियों का रिजल्ट फंसने की खबर मामूली नहीं है। बिहार में उच्च शिक्षा की खराब हालत की चर्चा लगातार होती रही है लेकिन बिना अनुमति छात्रों का एडमिशन लेना, उनका रजिस्ट्रेशन कर देना और उन्हें परीक्षा भी दिलवा देना एक बड़ी बीमारी का संकेत है। ऐसी गड़बड़ी करने वाले विश्वविद्यालयों में आरा का वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर स्थित बीआरए बिहार विश्वविद्यालय और मधेपुरा का बीएन मंडल विश्वविद्यालय शामिल हैं। परीक्षा लेने के बाद रिजल्ट जारी करने के समय गड़बड़ी पकड़ी गई। इन विश्वविद्यालयों ने अपनी जान बचाने के लिए यह मामला शिक्षा विभाग को सौंप कर मार्गदर्शन मांगा है। इधर शिक्षा विभाग इस बात की कानूनी सलाह ले रहा है कि ढाई लाख विद्यार्थियों का रिजल्ट कैसे निकाला जाए। सोचने की बात यह है कि अगर उनका रिजल्ट निकाल भेज दिया जाए तो जब वह उस रिजल्ट के आधार पर कहीं आवेदन देंगे तो उनकी डिग्री की मान्यता का क्या होगा? बिहार में उच्च शिक्षा प्राप्त करना एक जोखिम भरा काम हो गया है। यहां किस विश्वविद्यालय के किस कॉलेज में कौन सा कोर्स मान्यता प्राप्त है या नहीं है इसकी जानकारी विद्यार्थियों को नहीं हो पाती है और तीन-चार साल गंवाने के बाद उन्हें इसका नतीजा भुगतना पड़ता है। यह काम बिना बड़े पैमाने पर साजिश के मुमकिन नहीं है। सरकार को चाहिए कि इस मामले की गंभीरता से जांच कराए और संबंधित लोगों को सजा दिलवाए क्योंकि अक्सर होता यह है कि ऐसे मामलों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। जब तक दोषी लोगों पर कड़ी कार्रवाई नहीं होगी ऐसी हरकतें बंद नहीं होने वाली हैं।

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