बिहार में 15 लाख इराक़ी आबादी की नहीें की गई गिनती, धार्मिक पहचान खत्म करने की साज़िश या चूक?

सैयद जावेद हसन

Patna: बिहार में 15 लाख इराक़ी आबादी का मामला अब चर्चा का विषय बन गया है। इराक से आई और शराब तैयार करने के पारंपरिक कारोबार में लगी यह आबादी अब इतनी बदहाल हो चुकी है कि जातीय सर्वेक्षण में इसे गिनने लायक भी नहीं समझा गया। हाल ही में प्रकाशित बिहार जातीय गणना रिपोर्ट 2022 में इसका जिक्र तो है लेकिन इसकी तादाद कितनी है, इसका अलग से कोई आंकड़ा पेश नहीं किया गया है।

सर्वेक्षण में कुल 215 जातियों की गणना की गई है।

मामला ऐेसे आया प्रकाश में 
जातीय गणना रिपोर्ट में गिनी गई धार्मिक जातियों की सूची दी गई है। सूची के क्रमांक 122 में ‘बनिया’ और उसकी उपजातियों के नाम इस तरह दिए गए हैं-
बनिया (सूड़ी, मोदक/मायरा, रोनियार, पनसारी, मोदी, कसेरा, केशरवानी, ठठेरा, कलवार (कलाल/एराकी), ब्याहुत कलवार), कमलापुरी वैश्य, माहुरीवैश्य, बंगी वैश्य (बंगाली बनिया), बर्नवाल, अग्रहरी वैश्य, वैश्य पोद्दार, कसौधन, गंधबनिक, बाथम वैश्य, गोलदार (पूर्वी/पश्चिमी चम्पारण हेतु)
इन तमाम जातियों की आबादी 30 लाख 29 हजार 912 बताई गई है।
जब कलाल/एराकी जाति के लागों ने अलग से अपनी गिनती नहीं देखी तब वे चौंक पड़े। दरअसल कलाल/एराकी आबादी को हिन्दू जाति ‘कलवार’ में merge कर दिया गया। इससे उनकी धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान ही खत्म कर दी गई।

कौन हैं कलाल/एराकी
2017 में टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, पटना सेंटर ने Fieldnotes on Caste Practices among Muslims of Nohsa Panchayat से खुर्शीक अकबर का एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया था। इस रिपोर्ट में खुर्शीद लिखते हैं:
Kalal is an occupational biradari which lives in Bihar, West Bengal, Uttar Pradesh and Rajasthan. They are also known as Iraqis or Rankis. This biradari has traditionally been associated with distilling of liquor. It is believed that kalal is derived from the Sanskrit word ‘kakyapla’, meaning ‘a distiller of liquor’ (Samuiddin and Khanam, 2008). It is also believed that Kalals are mostly Persian immigrants, but Crooke describes them as a sub-caste of Kalwar, who embraced Islam (Samuiddin and Khanam, 2008).

पश्चिम बंगाल में कलाल/इराक़ी
पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग ने 2013 में कलाल/इराक़ी वर्ग को पश्चिम बंगाल राज्य की अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) की सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी। इसके साथ ही कलाल/इराक़ी वर्ग को ओबीसी कटेगरी-बी का दर्जा देने की भी सिफारिश की थी।

आयोग को बताया गया कि ‘कलाल’ उस व्यक्ति को कहते हैं जो शरार का कारोबार करता है। वहीं, ‘इराक़ी’ शब्द ‘अर्क़’ से आया है जिसका अर्थ ‘रस’ या ‘जूस’ होता है।

कहते हैं, पारंपरिक रूप से शराब चावल, महुआ और अंगूर के रस से ही बनाई जाती थी।

सिफारिश से पहले आयोग ने ‘वेस्ट बंगाल कलाल/इराक़ी वेलफेयर सोसायटी’ के प्रतिनिधियों के साथ गहन चर्चा की थी। चर्चा के दौरान जो तथ्य प्रकाश में आए वो इस तरह थे-

– कलाल/इराक़ी वर्ग का ताल्लुक मूल रूप से बिहार सेंट्रल बिहार से है जो वर्षों पहले पलायन करके पश्चिम बंगाल आया और यहां विभिन्न स्थानों पर रहने लगा।
– इनकी मुख्य भाषा उर्दू है लेकिन ये बंगला, हिन्दी और भोजपुरी भी बोलते हैं।
– कलाल/इराक़ी सुन्नी मुसलमान हैं।
– इनके पूवर्ज हिन्दू ‘कलवार’ थे जिन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया था।
– हिन्दुओं की ‘कलवार’ जाति की तरह कलाल/इराकी भी अलग-अलग सरनेम का इस्तेमाल करते हैं। इनमें अखतर, आलम, अहमद और हैदर शामिल हैं।
– बिहार और आंध्रप्रदेश जैसे विभिन्न राज्यों में कलाल/इराक़ी वर्ग ओबीसी के रूप में अधिसूचित है।
– कलाल/इराक़ी वर्ग का पुशतैनी कारोबार शराब तैयार करना और बेचना रहा है।
– इस्लाम में शराब हराम है इसलिए शराब का कारोबार करने की वजह से मुस्लिम समाज में उनकी पहचान निचले दर्ज के कारोबारी वाली रही। इसलिए उनकी रिहाइश आम मुस्लिम आबादी से अलग-थलग रहती थी।
– गुजरते वक्त के साथ वे अन्य पेशा भी अख्तियार करने लगे। इनमें खेत मजदूरी, दैनिक मजदूरी, ठेले पर चावल और सब्जी फरोशी, दर्जी, ताड़ और खजूर के पेड़ ‘ताड़ी’ तैयार करना, टूटे हुए सामानों की मरम्मी, चप्पल जूता पॉलिश और घरेलू कामकाज शामिल हैं।
– पश्चिम बंगाल में 2013 में कलाल/इराक़ी की आबादी तकरीबन 1 लाख 25 हजार बताई गई थी। इनमें 66 हजार पुरुष और 59 हजार महिलाएं थीं।
– आर्थिक रूप से ये गरीब और शैक्षिक रूप से महज 25 प्रतिशत साक्षर थे।
– इनकी आबादी पश्चिम बंगाल के 9 जिलों- कोलकाता, नॉर्थ 24 परगना, साउथ 24 परगना, हावड़ा, हुगली, बर्दवान, बीरभूम, पुरुलिया और उत्तर दीनाजपुर के ग्रामीण इलाकों में बस्स्ती है।

बिहार में कलाल/इराक़ी
भारत सरकार के बिहार राज्य की फेहरिस्त में कलाल/कलवार/कलार जाति ओबीसी के रूप में 124 बी पर दर्ज है। वहीं, बिहार सरकार की ओबीसी लिस्ट में कलाल या कलाल के नाम से 52 बी पर दर्ज है।

पांच-छह साल पहले बिहार मुस्लिम कलवार/कलाल/एराकी मिल्लत कमिटी ने इराकी बिरादरी का सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण कराया था। यह वैज्ञानिक मापदंडों पर आधारित सर्वेक्षण नहीं था बल्कि कुछ जिलों में किया गया सैम्पल सर्वे था। इकसे आधार पर बिहार में कलाल/इराकी बिरादरी की आबादी तकरीबन 15 लाख बताई गई थी।

एराकी मिल्लत कमिटी के पूर्व सचिव और कार्यकर्ता तमीमुद्दीन हंबल बिहार लोक संवाद से बातचीत करते हुए कहते है, ‘कलाल/इराकी बिरादरी को बिहार में ओबीसी एनेक्सचर 2 का दर्जा हासिल है। हमलोग एनेक्सचर 1 की मांग बरसों से करते आ रहे हैं। इस आबादी का 40 फीसद से ज्यादा हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) जिंदगी गुजार रहा है। अत्यंत पिछड़ा वर्ग आयोग की मांग पर कमिटी ने अपने तौर पर आंकड़े जुटाए थे। लेकिन जातीय गणना की रिपोर्ट आने के बाद से इराकी बिरादरी के तमाम लोग खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं।’

मगध प्रमंडल को कलाल/इराक़ी बिरादी का गढ़ माना जाता है जिसमें पुराना गया और नवादा शामिल है। नवादा में ही, 1980 में, इराकी उर्दू गर्ल्स इंटर स्कूल कायम हुआ था। बिहार सरकार के अनुदान पर चलने वाले इस स्कूल में बड़ी संख्या में मुस्लिम लड़कियां तालीम हासिल कर रही हैं।

इराकी उर्दू गर्ल्स इंटर स्कूल

तमीमुद्दीन हंबल कहते हैं, ‘10 अगस्त को दूसरे चरण की गणना के वक्त प्रगणक से फार्म लेकर मैंने खुद अपने हाथों से भरा था। धर्म के कॉलम में इस्लाम लिखा था। जाति में कलाल/इराकी लिखा था। लेकिन जातीय गणना रिपोर्ट में मुस्लिम कलाल/इराकी नाम से कोई आंकड़ा ही नहीं है। हमलोग जल्द ही सरकार से मिलेंगे और मांग करेंगे कि कलाल/इराक़ी जाति का आंकड़ा अलग से प्रकाशित किया जाए।’

कमिटी के महासचिव और सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता हरीष अहमद मिनहाज कहते हैं, ‘स्वतंत्र भारत में आज तक इस समाज का कोई व्यक्ति न तो संसद सदस्य बना और ही विधायक, विधान पार्षद, मेयर, जिला परिषद या किसी बोर्ड-आयोग का अध्यक्ष हुआ। यहां तक कि सदस्य भी नहीं हुआ। राजनीतिक क्षितिज पर कलाल/इराकी समाज षून्य है। शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति जीर्ण-ष्ीर्ण है। वे हर रोज कुआं खोदो और पानी पियो की तर्ज पर जिंदगी गुजार रहे हैं।

मौजूदा हालात पर बैठक करते हुए इराकी बिरादरी के सदस्य

जवाहरलाल नेहरु यूनीवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ सेन्ट्रल एशिया स्टडीज के शेख मोहम्मद जकी ने बिहार लोक संवाद को फोन पर बताया कि बिहार में कलाल/इराक़ी आबादी का महज 3 प्रतिशत ही खुशहाल रहा है। इसकी वजह बताते हुए जकी कहते हैं, ‘कुछ बड़े कलाल/इराक़ी लोगों के के हाथों में ही शराब का कारोबार रहा है। ऐसे ही लोगों को सरकारी टेंडर भी मिलता था। इसके अलावा, एक जमाने में बिहार में सोमरस, शक्तिरस के रूप में खुले आम अंग्रेजी शराब बिकती थी।’

जकी के मुताबिक जहानाबाद, पटना, औरंगाबाद, कटिहार, मधुबनी, सीतामढ़ी, सीवान, शिवहर और भागलपुर में भी इराकी बिरादरी की अच्छी-खासी तादाद है। इनमें से ज्यादातर छोटे-मोटे कारोबार से जुड़े हैं। कुछ की हालत तो बहुत ही दयनीय है।

पत्रकार सेराज अनवर कहते हैं, ‘कलाल/इराक़ी बिरादरी के साथ पूरी तरह नाइंसाफी बरती गई है। इस बिरादरी का सर्वेक्षण में नामोनिशान मिट गया है जबकि अंसारी के बाद यह दूसरी बड़ी मुस्लिम आबादी है। सरकार को चाहिए कि कलाल/इराकी जाति को मुस्लिम धर्म के कॉलम में रखते हुए गणना का आंकड़ा प्रकाशित करे।’

बिहार में मुस्लिम आबादी 19.20 फीसद!
जातीय गणना सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख है। इसमें हिन्दुओं की आबादी 81.99 फीसद के साथ 10,71,92,958 है। मुसलमानों की तादाद 2 करोड़, 31 लाख, 49 हजार, 925 है। प्रदेश की कुल आबादी का यह 17.70 फीसद है। हिन्दुओं के बाद आबादी के लिहाज से मुसलमान दूसरे नंबर पर हैं।

कलाल/इराक़ी बिरादरी के लोगों का दावा है कि उनकी तादाद कम से कम 15 लाख है यानी 1.5 फीसद। अगर इसे 17.70 में जोड़ दें तो बिहार में मुसलमानों की कुल आबादी 19.20 फीसद हो जाएगी।

बिहार लोक संवाद से विशेष बातचीत करते हुए एआईएमआईएम से अमौर के विधायक अखतरुल ईमान कहते हैं कि सरकार ने साजिश के तहत कलाल/इराकी बिरादरी के आंकड़ों को छिपा लिया है। वो कहते हैं, ‘जम्हूरियत में एक खास वर्ग की आबादी को घटा कर पेश किया जाता है ताकि उस वर्ग को अपनी सही ताकत का एहसास न हो।’

अखतरुल ईमान ने सरकार से कलाल/इराकी बिरादरी के साथ हुई गलती को ठीक करने की मांग की।

इस बारे में जब बिहार लोक संवाद ने अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहम्मद जमां खां से बात की तो उन्होंने हैरत का इज्हार किया। उन्होंने कहा कि वो इस मामले को हाईकमान के सामने उठाएंगे और भूल सुधार की कोशिश करेंगे।

हिन्दुओं में छिड़ा घमासान
हिन्दुओं की कई जातियों और उपजातियों के लोग जातीय गणना के आंकड़ों को लेकर सवाल उठा रहे हैं। भाजपा सांसद और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘कुछ चुनिंदा जाति-धर्म के लोगों की गिनती में सरकार ने एक साजिश के तहत उपजाति-जोड़ो फार्मूला लगाया तो कई अन्य जातियों के लिए उपजाति-तोड़ो फार्मूला लगाया।’

सुशील मोदी कहते हैं कि सर्वे में ग्वाला, अहीर, गोरा, घासी, मेहर, सदगोप जैसी दर्जन भर यदुवंशी उपजातियों को एक जातीय कोड ‘यादव’ देकर इनकी आबादी 14.26 फीसद दिखाई गई। कुर्मी जाति की आबादी को भी घमैला, कुचैसा, अवधिया जैसी आधा दर्जन उपजातियों को जोड़ कर 2.87 फीसद दिखाया गया।

सुशील मोदी सवाल करते हैं, ‘क्या यह संयोग है कि मुख्यमंत्री (नीतीश कुमार) और उपमुख्यमंत्री (तेजस्वी प्रसाद यादव) की जाति को उप जातियों में सहित गिना गया जबकि वैश्य, मल्लाह, बिंद जैसी जातियों को उपजातियों में बांट कर आबादी इतनी कम दिखाई गई कि इन्हें अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास नहीं हो?’

सुशील मोदी कहते हैं कि बनिया (वैश्य) की आबादी मात्र 2.31 प्रतिशत दिखाने के लिए इसे तेली, कानू, हलवाई, चौरसिया जैसी 10 उपजातियों में तोड़ दिया गया। अगर उपजातियों को जोड़ कर एक कोड दिया गया होता तो यह संख्या 9.56 प्रतिशत होती। मल्लाह को 10 उपजातियों में तोड़ कर 2.60 प्रतिशत बताया गया। उपजातियों को जोड़ने पर मल्लाह जाति की आबादी 5.16 प्रतिशत होती है। नोनिया जाति की आबादी 1.9 प्रतिशत दर्ज हुई जबकि इनकी बिंद, बेलदार उपजातियों को जोड़ कर इनकी संख्या 3.26 प्रतिशत होती है।

इस बीच, कुछ जातियों की संख्या कम बताए जाने का आरोप लगाते हुए संबंधित छत्रप गोलबंद होने लगे हैं। चंद्रवंशी समाज के लोगों ने भाजपा एमएलसी डॉ. प्रमोद चंद्रवंशी के नेतृत्व में धरना दिया। वहीं, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. भीम सिंह चंद्रवंशी ने दस साल में अपनी जाति की संख्या 10 लाख से अधिक घटने को लेकर सवाल खड़ा किया है। उन्होंने कहा, ‘सामान्य प्रशासन विभाग ने एएन सिंहा सामाजिक अध्ययन संस्थान से 2013 में चंद्रवंशी जाति की नृजातीय (इथनोग्राफी) अध्ययन कराया था। उस समय की रिपोर्ट में चंद्रवंशी कहार-कमकर की आबादी 30 लाख, 32 हजार, 800 बताई थी। अब जाति आधारित गणना की रिपोर्ट में चंद्रवंशी की आबादी 21 लाख, 55 हजार, 644 कर दी गई है। ऐेसे में किस रिपोर्ट को सही माना जाए?’

नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यू) के सीतामढ़ी से सांसद सुनील कुमार पिंटू तेली समाज की सही गिनती नहीं होने का हवाला देते हुए अपनी ही पार्टी और सरकार के खिलाफ मुखर हो गए हैं। उन्होंने अपनी जाति की गिनती फिर से कराने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि इस मांग को लेकर वो मुख्यमंत्री से मुलाकात करेंगे।

भाजपा नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद कायस्थ समाज की आबादी के साथ हेराफेरी को लेकर कानूनी लड़ाई की चेतावनी दे चुके हैं।

मल्लाह/निषाद समाज से ताल्लुक रखने वाले विकासशील इंसाफ पार्टी (वीआईपी) प्रमुख मुकेश सहनी मछली के टुकड़ों की तरह अपनी जाति को 9 खानों में बांट देने का आरोप लगाया है।

अब आगे क्या?
वैज्ञानिक आंकड़े की अहमीयत हमेशा होती है। लेकिन दिक्कत यह है कि अपनी 15 लाख की आबादी साबित करने के लिए बिहार की कलाल/इराकी बिरादरी के पास पहले से कोई सामाजिक-आर्थिक आंकड़ा नहीं है। इस बिरादरी की सही आबादी तभी पता चलेगी जब जातीय गणना के दौरान कलाल/इराकी जाति के आंकड़ों को इस्लाम धर्म के तहत अलग से प्रकाशित किया जाए।

इसके लिए मुसलमानों की बड़ी जातियों शेख (3.82 फीसद के साथ 49,95,897 आबादी), अंसारी (3.54 फीसद के साथ 46,34,245 आबादी), सुरजापुरी (1.87 फीसद के साथ 24,46,212 आबादी), मुस्लिम धुनिया (1.42 फीसद के साथ 18,68,192 आबादी) और कुंजड़ा/राईन (1.39 फीसद के साथ 18,28,584 आबादी) को अपना दिल बड़ा करना होगा। इन्हें एक प्लेटफार्म पर आकर संगठित होते हुए कलाल/इराक़ी बिरादमी के साथ हुई नाइंसाफी के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। धरना-प्रदर्शन करना चाहिए। सीएम, डिप्टी सीएम को मेमोरंडम देना चाहिए।

यह इसलिए जरूरी है कि आज बिहार में पूरी एक बिरादरी की धार्मिक-सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान खतरे में है। मुस्लिम जनप्रतिनिधियों और उलेमा को समझना होगा कि उनके समर्थन में फिलहाल हिन्दुओं का कोई नेता नहीं आएगा क्योंकि वे खुद अपनी-अपनी जाति और उपजाति को लेकर आवाज उठा रहे हैं। ऐसे में मुस्लमानों को खुद ‘मिल्ली इत्तेहाद’ का मुजाहरा करते हुए एक प्लेटफार्म पर आना होगा। अभी ही वक्त है सत्ता को अपनी ताकत और तादाद का एहसास कराने का।

वैसे, कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए यह एक ‘फिट केस’ है।

syedjawaidhasan8@gmail.com/9931098525

 

 

 

 

 

 2,709 total views

Share Now

Leave a Reply