बकवास है ‘एक बिहारी सबपर भारी’ का दावा, बीपीएससी शिक्षक नियुक्ति ने खोल दी कलई

सैयद जावेद हसन

‘एक बिहारी, सबपर भारी‘ जैसा दावा आप बरसों से सुनते आ रहे हैं। लेकिन अभी हाल ही में बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन की सिफारिश पर हुई शिक्षकों की नियुक्ति ने इस दावे की पोल खोल कर रख दी है। अगर आप विज्ञापन में दर्ज सीटों, चयनित शिक्षकों और बिहार से बाहर के लोगों के परफॉर्मेंस का विश्लेषण करेंगे तो आप को कुछ चौंकाने वाले तथ्य मिलेंगे।

जैसा कि आप जानते हैं, पहले चरण की शिक्षक नियुक्ति के तहत बीपीएससी ने कुल 1 लाख, 70 हजार, 461 पदों के लिए वैकेंसी निकाली थी। इनमें प्राथमिक शिक्षक पदों की संख्या 79 हजार, 943, माध्यमिक शिक्षक पदों की संख्या 32, 916 और उच्च माध्यमिक शिक्षक पदों की संख्या 57 हजार, 602 थी।

लगभग साढ़े 8 लाख उम्मीदवार एक्जाम और इंटरव्यू में शरीक हुए। सरकारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद बीपीएससी ने कुल 1 लाख 20 हजार, 336 शिक्षकों की नियुक्त की सिफारिश की।
इनमें कामयाब प्राथमिक शिक्षकों की संख्या 70 हजार, 545, माध्यमिक शिक्षकों की संख्या 26 हजार, 89 और उच्च माध्यमिक शिक्षकों की संख्या 23 हजार 702 है।

2 नवंबर को राजधानी पटना से लेकर तमाम राज्यों में पूरे तामझाम के साथ नियुक्ति पत्र वितरण समारोह का आयोजन किया गया। सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी प्रसाद यादव से लेकर प्रभारी मंत्रियों ने एक साथ इतनी बड़ी शिक्षक नियुक्ति को अपनी सरकार की ऐतिहासिक उपलब्धि करार दिया।

अब आते हैं एक दूसरे पहलू पर। शिक्षक नियुक्ति से पहले और अब भी पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और आरएलजेडी चीफ उपेंन्द्र कुशवाहा इस बात के लिए सरकार की आलोचना कर रहे हैं कि बिहार से बाहर के लोगों को शिक्षक बनने का मौका क्यों दिया गया। उनका कहना है कि डोमिसाइल नीति लागू करके सिर्फ बिहारियों को ही मौका दिया जाता। हालांकि सरकार कह रही है कि 88 फीसद बिहार के लोग शिक्षक बने हैं जबकि सिर्फ 12 फीसद लोग ही बिहार से बाहर के शिक्षक बने हैं।

यहीं पर हम आपका ध्यान एक अहम बिन्दु की तरफ आकृष्ट करना चाहेंगे। दैनिक प्रभात खबर की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने बाहरी लोगों के लिए 16 हजार सीट रिजर्व की थी। यह कुल सीट 1 लाख, 70 हजार, 461 का 12 फीसद ही होता है। इस रिजर्व्ड 16 हजार में से 14 हजार, 440 सीटों पर बाहरी नौजवान क्वालिफाई कर गए। सिर्फ 1 हजार 560 सीट ही खाली रह गई। इस तरह बाहरी लोगों का सक्सेस रेट 91 परसेंट होता है।

अब बिहारी की बात करते हैं। बिहारियों के हिस्से में शेष 1 लाख, 54 हजार, 461 सीट आई। इनमें से सिर्फ 1 लाख, 5 हजार, 895 लोग ही कामयाब हुए जबकि 48 हजार, 565 सीट खाली रह गई। इस तरह बिहारियों का सक्सेस रेट 68 परसेंट है। एक बार फिर बता दें कि बाहरी लोगों का सक्सेट रेट 91 परसेंट था। इस तरह बिहारियों का सक्सेस रेट बाहरी लोगों के मुकाबले 23 परसेंट कम है। क्या आप अब भी कहेंगे- एक बिहारी सब पर भारी?

एक बात और। अगर पूरी सीट को देशभर के उम्मीदवारों के लिए ओपेन कर दिया जाता और 88 परसेंट बिहारी और 12 परसेंट बाहरी जैसी कोई कैद नहीं हाती तो अंदाजा लगाइये क्या होता। 91 परसेंट सक्सेस रेट के हिसाब से 1 लाख, 70 हजार, 461 सीट में से 1 लाख, 55 हजार, 119 सीट पर बाहरी क्वालिफाई कर जाते। और, 68 परसेंट सक्सेस रेट के हिसाब से बिहारियों के हिस्से में सिर्फ 15 हजार, 341 सीट आती। यानी जितनी संख्या में बाहरी हैं कमोबेश उतनी ही संख्या में बिहारी होते। क्या आप अब भी कहेंगे- एक बिहारी, सब पर भारी?

इस शिक्षक नियुक्ति से पता चलता है कि बिहारी भारी नहीं, बल्कि बाहरी लोगों के मुकाबले में शैक्षिक रूप से हलके हैं। यह स्वीकार कर लेने में कोई बुराई नहीं है। बुरी बात तब होगी जब हम खोखले, खुशनुमा और सियासी नारे लगाते रहें और अपनी पीठ आप थपथपाते रहें। यह विश्लेषण बताता है कि शिक्षा के क्षेत्र में ठोस तरीके से काम करने की जरूरत है। तभी हम राष्ट्रीय स्तर के मुकाबले में बेहतर परफॉर्मेंस कर सकते हैं।

इस बीच, बिहार लोक सेवा आयोग से शिक्षक नियुुक्ति के दूसरे चरण के लिए 5 नवंबर से आवेदन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इस चरण में कुल 70 हजार, 622 शिक्षक नियुक्त किए जाने हैं। देखना है, इस चरण में बिहारियों का सक्सेस रेट कितना रहता है।

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