सीएए को लेकर शाहीनबाग का प्रदर्शन गलत तो राजस्थान-पंजाब में रेल रोको आंदोलन सही कैसें?
राजस्थान में गुर्जर आंदोलन और पंजाब में कृषि बिल के विरोध में रोज करीब 160 ट्रेनें प्रभावित हो रही हैं। लाखों लोग जहां-तहां फंसे हुए हैं। ये हाल तब है, जब सुप्रीम कोर्ट सीएए, एनआसी को लेकर दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में लंबे दिनों तक चले धरना-प्रदर्शन को लेकर साफ लफ्जों में कह चुका है कि सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शन नहीं किए जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी वजह बताते हुए कहा कि इससे आम लोगों के लिए मुसीबतें पैदा हो जाती हैं। राजस्थान में पिछले पांच दिन में 300 से ज्यादा ट्रेनों के रूट बदलने पड़े हैं और लगभग एक हजार से ज्यादा बसें रोकनी पड़ी हैं।
इस मामले पर दैनिक भास्कर ने एक सवाल उछाला है। पूछा है कि ‘‘बड़ा सवाल ये है कि अगर दिल्ली में शाहीन बाग का प्रदर्शन गलत है, तो राजस्थान और पंजाब में चल रहे रेल रोको आंदोलन सही कैसे हो सकते हैं?’’
रेलवे ट्रैक रोकना कानूनन अपराध है। इसमें 5 साल या इससे अधिक की सजा व जुर्माने का प्रावधान है। रेलवे की सम्पत्ति यानी ट्रैक आदि को नुकसान होने पर सम्पत्ति की कीमत का दोगुना से अधिक जुर्माना चुकाने का प्रावधान शामिल है। चुंकि प्रदेश में रासुका लागू है, इसके तहत भी सजा का प्रावधान है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि रेल रोकने वाले आंदोलनकारियों पर अभी तक कोई कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं की गई? अब तक कलेक्टर नथमल डीडेल सिर्फ सरकार और गुर्जर समाज के बीच समझौता कराने की कड़ी के रूप में काम कर रहे हैं। वहीं, एसपी, डा. अमनदीप सिंह कपूर को भी रेलवे ट्रैक पर बैठे ये लोग दिखाई नहीं दे रहे हैं। इस मामले में जिला प्रशासन और जिला पुलिस का खुफिया तंत्र पूरी तरह फेल रहा, जबकि रेलवे ट्रैक रोकने की घोषणा कई दिन पहले ही की जा चुकी थी, फिर भी कुछ नहीं किया गया।
यहां एक और बात की चर्चा जरूरी लगती है कि उत्तरप्रदेश में सीएए, एनआरसी को लेकर जब हंगामा और हिंसा हुई तो योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सरकारी सम्पत्ति को हुए नुकसान की भरपाई प्रदर्शनकारियों से वसूलने की घोषणा की। इसके तहत मुकदमे और गिरफ्तारियां भी हुईं। इनमें से अधिकांश मुसलमान थे।
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