छपी-अनछपीः बक्सर में किसानों के नाम पर उत्पात, अमेरिका में जहाजों ने क्यों पकड़ ली धरती?

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। बक्सर के चौसा में किसानों और पुलिस के बीच झड़प के दौरान भारी उत्पात की खबर सभी अखबारों में प्रमुखता से छपी है। तकनीक के राजा अमेरिका में बुधवार को तकनीक के कारण ही सारी *फ्लाइट्स* थम गईं जिसे अच्छी कवरेज मिली है।

बिहार में जाति आधारित गणना शुरू हो चुकी है लेकिन इसके खिलाफ अब एक अर्जी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए मंजूर कर ली गई है। यह खबर भी अहम जगह पर है।

भास्कर की सबसे बड़ी खबर है: मुआवजे में घपला, लीज की बात कह कर कब्जाई जमीन, नतीजा किसानों ने आक्रोश में फूंकी ऑफिस, गाड़ियां। बक्सर जिले के चौसा में केंद्र सरकार के 1320 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट में जा रही जमीनों के मुआवजे में घपले और जमीनों पर जबरन कब्जे को लेकर किसानों का प्रदर्शन उग्र हो गया। मंगलवार की रात पुलिस द्वारा महिलाओं और बच्चियों की पिटाई से आक्रोश भड़क उठा। आक्रोशितों ने पहले तो पुलिस को पीटा, फिर हजारों की संख्या में एसजेवीएन पावर प्लांट पर हमला कर दिया कंपनी के गार्ड को खदेड़ दिया।

हिन्दुस्तान के अनुसार: चौसा में निर्माणाधीन थर्मल पावर प्लांट के लिए जमीन अधिग्रहण के उचित मुआवजे की मांग पर 85 दिनों से धरना दे रहे किसानों का प्रदर्शन उग्र हो गया। बुधवार सुबह ग्रामीणों ने लाठी-डंडे से लैस होकर पावर प्लांट पर धावा बोल दिया। देखते ही देखते 11 गाड़ियां फूंक डालीं। इनमें पुलिस बसें, फायरब्रिगेड और एंबुलेंस शामिल हैं। आगजनी के कारण पावर प्लांट के उपकरण धू-धूकर जलने लगे। आरोप है कि चौसा के बनारपुर गांव के किसानों के घरों में मंगलवार को आधी रात में पुलिस ने पुरुष, महिलाओं और बच्चों की लाठी-डंडे से पिटाई की थी। इसके बाद तीन लोगों को उनके घर से उठा लिया था।

जाति आधारित गणना को चुनौती

जागरण की सबसे बड़ी खबर है जाति आधारित गणना के खिलाफ याचिका स्वीकृत। भास्कर ने लिखा है: बिहार की जातीय गणना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका मंजूर, 13 जनवरी को होगी सुनवाई। हालांकि जागरण ने सुनवाई की तारीख 20 जनवरी लिखी है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में बिहार में हो रही जाति आधारित गणना को चुनौती देते हुए कहा गया है कि जनगणना कराने का अधिकार केंद्र सरकार को है। राज्य सरकार को जनगणना कराने का अधिकार नहीं है। बुधवार को याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार की ओर से पेश वकील वरुण कुमार सिन्हा ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष याचिका का जिक्र करते हुए मामले के शीघ्र सुनवाई की मांग की।

इधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्पष्ट किया है कि बिहार में जनगणना नहीं बल्कि जातियों की गिनती की जा रही है।

अमेरिका की फ्लाइट्स ने धरती पकड़ी

हिन्दुस्तान मैं पहले पेज पर खबर है: अमेरिका में विमान सेवा घंटों ठप। भास्कर ने लिखा है: एयर सिस्टम फेल, जमीं पर अमेरिका। अमेरिका में बुधवार को फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (एफएए) के सर्वर में खराबी के बाद आसमानी आपातकाल जैसी स्थिति बन गई और घंटों विमान सेवाएं ठप रहीं। अमेरिकी इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ। हवाई अड्डों पर पूरे दिन अफरा-तफरी का माहौल रहा। इससे 550 से अधिक घरेलू-अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को रद्द करना पड़ा। एफएए के नोटम (नोटिस टू एयर मिशन) सिस्टम में गड़बड़ी के बाद विमान यातायात ठप हो गया। खामी का पता अमेरिकी समयानुसार सुबह करीब नौ बजे लगा। इसके बाद सभी विमानों को देरी से उड़ाने का आदेश दे दिया। बता दें कि नोटम सिस्टम देश भर के हवाई अड्डों पर सुविधाओं में देरी के बारे में पायलटों और अन्य कर्मियों को सचेत करता है।

यूरिया की कमी किसकी ज़िम्मेदारी

हिन्दुस्तान की एक अहम सुर्खी है; बिहार को रबी मौसम में केंद्र से 32 फीसदी कम यूरिया मिली। राज्य में यूरिया की किल्लत बनी हुई है। कई जिलों में यूरिया के लिए मारामारी मची है। इस बीच कृषि सचिव डॉ. एन सरवण कुमार ने कहा कि बिहार को रबी सीजन में केंद्र से 32 फीसदी कम यूरिया मिली है। कृषि विभाग में आयोजित पत्रकार वार्ता में उन्होंने बताया कि मंजूरी के बावजूद 68 फीसदी यूरिया ही दी गई है। केंद्र की ओर से अक्टूबर से 11 जनवरी तक दस लाख तीस हजार मीट्रिक टन यूरिया स्वीकृत की गई। इसकी तुलना में 7 लाख 105  टन ही आपूर्ति हुई है। अक्टूबर-नवंबर में यूरिया की मांग ज्यादा थी, बावजूद दोनों माह में 40-40 फीसदी कम यूरिया भेजी गई।

रामचरित मानस से नफरत फैलती है?

जागरण में पहले पेज पर खबर है: मनुस्मृति, रामचरितमानस व बंच ऑफ थॉट्स नफरत फैलाने वाले। हिन्दुस्तान ने लिखा है कि शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने धार्मिक ग्रंथ रामचरितमानस को लेकर विवादित बयान दिया है। कार्यक्रम के दौरान रामचरितमानस से कई दोहों को पढ़ते उन्होंने कहा कि यह ग्रंथ समाज में नफरत फैलाने वाला है। उनके अनुसार यह दलितों, पिछड़ों और महिलाओं को न सिर्फ लड़ाई से बल्कि उन्हें हक दिलाने से भी रोकता है।

राज्य के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने नालंदा खुला विश्वविद्यालय के 15 में दीक्षांत समारोह के दौरान कहा कि देश में जाति ने समाज को जोड़ने के बजाए तोड़ा है। इसमें मनुस्मृति, गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक माधव सदाशिव गोलवलकर लिखित बंच ऑफ थॉट्स ने 85% लोगों को सदियों तक पीछे रखने का काम किया है। उनके अनुसार इन्हीं के कारण देश में राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री को मंदिरों में जाने से रोका गया। उन्होंने आरोप लगाया कि ये ग्रंथ नफरत फैलाते हैं।

कुछ अन्य सुर्खियां

  • दक्षिण बिहार में राहत, उत्तर में छूटी कंपकंपी
  • सभी अर्द्धसैनिक बलों के जवान पुरानी पेंशन के हकदार: हाईकोर्ट
  • एंटीबायोटिक, सर्दी, खांसी व सांस से जुड़ी दवाएं सबसे ज्यादा बिक रहीं
  • टॉप 20 परसेंटाइल वाले को भी एनआईटी में प्रवेश
  • मंत्रिमंडल में राजद कोटे से बनेंगे दो मंत्री, कांग्रेस को भी मिलेगी जगह
  • बिहार के 272 अंगीभूत कॉलेजों में से 26 ही एक्रिडेटेड
  • छात्रवृत्ति घोटाला जिनका अस्तित्व नहीं उन्हें भी अनुदान… औरंगाबाद के 19 स्कूलों पर केस
  • अनाज घोटाले में सीबीआई के 50 जगह छापे, डीजीएम गिरफ्तार

अनछपी: बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने हिंदू धार्मिक ग्रंथों के बारे में जो बयान दिया है उससे विवाद होने का खतरा है। मनुस्मृति और बंच ऑफ थॉट्स के बारे में तो पहले भी विरोध दर्ज कराया जाता रहा है लेकिन ऐसा लगता है कि इस कड़ी में शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने रामचरितमानस का भी नाम जोड़कर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। ध्यान रहे कि उन्होंने यह बात रामायण के बारे में नहीं बल्कि रामचरितमानस के बारे में कही है। उनके इस बयान के बाद जरूरी है कि इस पर गंभीर चर्चा हो कि क्या इन पुस्तकों द्वारा समाज में नफरत फैली है। शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर एक गंभीर व्यक्ति माने जाते हैं और उनका यह बयान सोच समझ कर ही दिया गया होगा, ऐसा माना जा सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारा समाज धार्मिक पुस्तकों के शिक्षकों से प्रभावित होता है और इस समाज में दलितों और सवर्णों के बीच गहरी खाई रही है। यह बात भी जगजाहिर है कि दलितों को लंबे समय तक अधिकारों से वंचित रखने के लिए सवर्ण वर्ग विशेषकर ब्राह्मणों को जिम्मेदार माना जाता है। आधुनिक भारत में जहां समाज संविधान से भी चलता है वहां यह देखने की जरूरत है कि क्या दलितों के साथ दुर्व्यवहार के लिए यही पुस्तके तो नहीं जिम्मेदार हैं। बंच ऑफ थॉट्स के बारे में यह आरोप भी लगता है कि इसमें अल्पसंख्यकों को हेय दृष्टि से देखा गया है।

 

 

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