छपी-अनछपी: ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ से ‘इंडिया’ का मुकाबला, स्कूलों में छुट्टी नए सिरे से तय होगी

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन से परेशान होकर सरकार ने इंडिया के लिए अब भारत शब्द का प्रयोग शुरू किया है। राष्ट्रपति की ओर से जारी निमंत्रण पत्र में ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखे जाने को लेकर राजनीति गरमा गई है। इस खबर को सभी अखबारों में प्रमुखता दी गई है। स्कूलों में छुट्टी कितने दिन होगी, इसको लेकर विभाग नए सिरे से विचार विमर्श करेगा। इसकी खबर भी सभी जगह है।

हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी सुर्खी है: इंडिया और भारत पर महाभारत। जागरण की पहली खबर है: ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ पर राजनीति गरमाई। जी20 शिखर सम्मलेन के दौरान राष्ट्रपति की ओर से दिए जाने वाले रात्रिभोज के निमंत्रण पत्र में प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखे जाने पर राजनीतिक ‘महाभारत’ छिड़ गई है। मंगलवार को विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार देश के दोनों नामों इंडिया और भारत में से इंडिया को बदलना चाहती है। वहीं, कई केंद्रीय मंत्रियों ने सवाल किया कि भारत कहने में आखिर क्या आपत्ति है। अटकलों को बल देते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एक्स पर विश्व नेताओं के रात्रिभोज का निमंत्रण पत्र साझा किया। भास्कर ने 18 सितंबर 1949 और 18 सितंबर 2023 की तुलना करते हुए लिखा है कि 74 साल पहले संविधान सभा की बैठक में बहस हुई थी कि देश का नाम भारत हो या इंडिया। अखबार लिखता है कि आज से 13 दिन बाद संसद का विशेष सत्र होने वाला है लेकिन देश का नाम इंडिया की जगह भारत की बहस अभी से शुरू हो गई है।

किसने क्या कहा

  • पूरी दुनिया हमें इंडिया के नाम से जानती है। अचानक ऐसा क्या हो गया कि देश का नाम बदलने की जरूरत पड़ गई: ममता बनर्जी
  • देश का नाम बदलने का अधिकार किसी को भी नहीं है। आखिर सरकारी दल देश से जुड़े एक नाम को लेकर क्यों परेशान है: शरद पवार
  • इंडिया गठबंधन ने यदि अपना नाम भारत रख लिया तो क्या भारत का नाम भी बदल देंगे: अरविंद केजरीवाल
  • निमंत्रण पत्र पर भारत नाम है तो किसी को परहेज क्यों? भारत का विरोध कौन कर रहा है: अनुराग ठाकुर
  • हमें गर्व है कि हम इंडियन हैं, यह कहां-कहां नाम बदलेंगे: तेजस्वी यादव

स्कूलों की छुट्टी

जागरण की खबर है: प्राथमिक विद्यालय में न्यूनतम 200 और मध्य विद्यालयों में 220 दिन होगी पढ़ाई।  शिक्षा विभाग ने कहा है कि स्कूलों में घोषित और आकस्मिक छुट्टियों पर पुनर्विचार किया जाएगा। जल्द ही इस पर निर्णय लिया जाएगा। मंगलवार को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर विभाग ने कहा है कि शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के तहत राज्य सरकार प्रतिबद्ध है कि प्राथमिक विद्यालयों में साल में कम-से-कम 200 और मध्य विद्यालयों में 220 दिन कक्षाएं चलेंगी। पर, वर्तमान समय में विभिन्न कारणों से साल में 190 दिन से अधिक कक्षाएं नहीं चल पा रही हैं। आकलन के अनुसार शैक्षणिक सत्र 2023-24 में पटना में 185, मुजफ्फरपुर में 181, पूर्वी चंपारण में 186 दिन की कक्षाएं साल में चल सकेंगी। विभाग ने यह भी कहा है कि मुख्य समस्या घोषित अवकाश नहीं, बल्कि अघोषित अवकाश हैं।

बिना पूर्व घोषणा की छुट्टियां

बिना पूर्व घोषणा स्कूल बंद होने के कारण हैं: बाढ़ के चलते स्कूलों में पानी लग जाना, शीतलहरी के कारण विद्यालय बंद किया जाना, स्वतंत्रता दिवस व अन्य विधि व्यवस्था संबंधी पुलिस बल की प्रतिनियुक्ति के चलते पुलिस का विद्यालयों में रुकना आदि।

बिहार गवर्नर का दर्द

जागरण की दूसरी सबसे बड़ी खबर बिहार के गवर्नर का बयान है: अधिकारी करते हैं अपमान तो कैसे करें आग्रह पर विचार। पटना विश्वविद्यालय में शिक्षक दिवस पर आयोजित समारोह के मंच पर पिछले दिनों शिक्षा विभाग और राजभवन के बीच हुए पत्राचार से उभरी खटास राज्यपाल के संबोधन में सामने आ गई। मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में राज्यपाल सह चांसलर से पटना विश्वविद्यालय के कुलपति को सेवा विस्तार व पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने की पहल करने का आग्रह किया। इस पर राज्यपाल में कहा कि अधिकारी अपमान करते हैं, आपके आग्रह पर कैसे विचार करें। वे यही नहीं रुके और कहा कि शिक्षा विभाग चांसलर के अधिकारों को चुनौती देता है, ऑटोनॉमी के बारे में पूछते हैं ऐसा साहस उन्हें कहां से मिलता है? जब कुलपति का इतना सम्मान करते हैं तो कुलपति और शिक्षक का कितना करते होंगे?

…तो फ़ंड बंद कर देंगे: ममता

भास्कर की खबर है: अगर कुलपतियों ने राज्यपाल का आदेश माना तो संस्थाओं का फंड बंद कर देंगे: ममता। पश्चिम बंगाल में विश्वविद्यालय में अस्थाई कुलपतियों की नियुक्ति के मुद्दे पर राज्यपाल व आनंद बस और ममता बनर्जी सरकार के बीच टकराव बढ़ गया है। मंगलवार को सीएम ममता ने राज्यपाल पर शिक्षा व्यवस्था ठप करने की साजिश रचने का आरोप लगाया। उन्होंने इसके खिलाफ राज भवन के सामने धरना देने और विश्वविद्यालयों को मिलने वाले फंड को रोकने की भी चेतावनी दी। ममता ने कुलपतियों को भी चेतावनी दी कि अगर राज्यपाल के निर्देश माने तो राज्य सरकार से कोई धन नहीं मिलेगा।

गेल में 50 लाख की रिश्वत

हिन्दुस्तान के अनुसार सीबीआई ने 50 लाख रुपये की कथित रिश्वत मामले में गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) के एक कार्यकारी निदेशक और मुख्य महाप्रबंधक को तीन अन्य के साथ गिरफ्तार किया। दो पाइपलाइन परियोजनाओं के अनुबंध में वडोदरा स्थित कंपनी को लाभ दिया गया। अधिकारियों ने मंगलवार को बताया कि सीबीआई ने गेल के कार्यकारी निदेशक (परियोजना) केबी सिंह को रिश्वत की रकम की संभावित डिलीवरी के बारे में जानकारी मिलने के बाद जाल बिछाया। तलाशी के दौरान एजेंसी ने सिंह के पास से कथित रिश्वत की रकम बरामद की। सीबीआई प्रवक्ता ने कहा, वडोदरा स्थित एडवांस इंफ्रास्ट्रक्चर के निदेशक सुरेंद्र कुमार, गेल के मुख्य महाप्रबंधक दविंदर सिंह और दो अन्य व्यक्तियों हर्ष यादव और सूर्यवेश को भी गिरफ्तार किया गया है।

अडानी ने साल भर में गंवाए 5 लाख करोड़

भास्कर ने खबर दी है: साल भर में अडानी की संपत्ति 5 लाख करोड़ घटी, अंबानी की 65 हज़ार करोड रुपए बढ़ी। दुनिया भर में चल रहे आर्थिक संकट महंगाई और ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी के बीच भारतीय उद्योगपतियों की संपत्ति 133 प्रतिशत तक बड़ी है। मंगलवार को जारी फॉर्च्यून इंडिया रिपोर्ट में देश के 157 सबसे धनी उद्योगपति की मौजूद कुल संपत्ति और पिछले साल यानी 2022 के मुकाबले उसमें कमी और वृद्धि का ब्योरा दिया गया है। सूची में शामिल इन उद्योगपतियों की कुल संपत्ति 69.30 लाख करोड रुपए है। यही नहीं देश के 10 सबसे अमीर लोगों के पास कुल संपत्ति का 41.6 पर 5% है। सूची में रिलायंस इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष मुकेश अंबानी पहले नंबर पर हैं।  उनकी संपत्ति 8.19 लाख करोड रुपए है जो 2022 की तुलना में 9% अधिक है। एक साल में इसमें करीब 65000 करोड़ की वृद्धि हुई है। अडानी ग्रुप के अध्यक्ष गौतम अडानी की संपत्ति 49.57% कम हो गई है जो अब घटकर 5.2 लाख करोड़ रह गई है।

विश्व कप क्रिकेट के लिए भारतीय टीम

भारत में इस साल होने वाले एकदिवसीय विश्व कप के लिए टीम इंडिया का एलान कर दिया गया है। 15 सदस्यीय टीम में शुभमान गिल, श्रेयस अय्यर, ईशान किशन, सूर्यकुमार यादव, शार्दुल ठाकुर, मोहम्मद सिराज जैसे छह खिलाड़ी पहली बार विश्व कप खेलेंगे।

कुछ और सुर्खियां

  • गोपालगंज में खुलेगा मेडिकल कॉलेज, मुंगेर के लिए जमीन मिली
  • बिहार के सभी नगर निकायों में जीविका समूह का गठन होगा
  • अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की पत्नी को कोरोना हुआ
  • बिहार में 300 से अधिक लोग डेंगू से बीमार
  • सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित
  • सोलर मिशन आदित्य L1 पृथ्वी की तीसरी कक्षा में पहुंचा
  • शिक्षक भर्ती में B.Ed डिग्री धारी को लग सकता है झटका
  • सनातन धर्म की तुलना कोरोना से करने पर तमिलनाडु के सीएम के बेटे उदयनिधि पर कार्रवाई के लिए 260 हस्तियों ने पत्र लिखा

अनछपी: यह सोचकर ताज्जुब होता है कि विपक्षी इंडिया गठबंधन के नाम से सरकारी दल भाजपा को इतनी परेशानी होगी कि वह इंडिया नाम से ही परहेज़ करने लगेगी। मंगलवार को जब राष्ट्रपति के निमंत्रण पत्र पर प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा हुआ देखा गया तो यह अटपटा लगा। आमतौर पर माना जाता है कि जब अंग्रेजी लिखा जाएगा तो भारत का नाम इंडिया ही लिखा जाएगा लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि विपक्षी गठबंधन के इंडिया के नाम से परेशान होकर सरकार ने इंडिया की जगह भारत लिखना शुरू कर दिया है। यही नहीं प्रधानमंत्री के आधिकारिक पत्र पर भी प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया की जगह पर प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत लिखने की बात सामने आई है। कहा तो यह भी जा रहा है कि 18 सितंबर से संसद का विशेष सत्र बुलाने का एक कारण यह भी है कि देश के नाम को सिर्फ भारत कर दिया जाए और इससे इंडिया हटा दिया जाए। जहां तक संविधान का मामला है यह सब को पता है कि उसमें इंडिया दैट इज़ भारत लिखा गया है। इसी वजह से मोटे तौर पर यह माना जाता है कि देश के नाम को हिंदी में भारत और अंग्रेजी में इंडिया लिखा जाएगा। सरकार के समर्थकों का कहना है कि इंडिया चूंकि अंग्रेजों का दिया गया नाम है, इसलिए इसे हटा देना चाहिए लेकिन उन्हें संविधान में दर्ज इंडिया शब्द का ख्याल रहता तो वह ऐसी बात नहीं करते। अंग्रेजों के दी हुई किन-किन चीजों को हटाया जा सकता है? इसे हटाने का एक सकारात्मक कारण होना चाहिए। उदाहरण के लिए अंग्रेजों ने ही क्रिकेट का खेल भारत को दिया तो क्या अब क्रिकेट भी भारत में नहीं खेला जाएगा? इसी तरह रेल जैसी सुविधाएं भी भारत को अंग्रेजों की देन है तो क्या हम ट्रेनों पर सफर करना बंद कर देंगे? असल बात यह है कि सरकार असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए नाम परिवर्तन और दूसरे अगंभीर मुद्दे सामने लाती रहती है। विपक्षी गठबंधन को भी इस मुद्दे पर ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है और वह असली मुद्दे पर सरकारी दलों को घेरने में मजबूती से लगा रहे तो उसी में उसका भला है। आने वाले दिनों में हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट का नाम भी सुप्रीम कोर्ट आफ भारत रख दिया जाए। अगर यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचता है तो उसका फैसला भी सुनना बहुत दिलचस्प होगा।

 

 

 

 

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