छ्पी-अनछ्पी: ईडी की चार्जशीट में राबड़ी व दो बेटियां, एएमयू को केंद्र ने अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। लैंड फॉर जॉब के कथित मनी लॉन्ड्रिंग केस में दाखिल पहली चार्जशीट में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और उनकी दो बेटियों का नाम शामिल है। इस खबर को सभी अखबारों में प्रमुखता मिली है। सुप्रीम कोर्ट में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक चरित्र को लेकर बहस चल रही है जिसकी कवरेज जागरण में है।

हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी सुर्खी है: राबड़ी, मीसा व हेमा समेत 7 पर चार्जशीट दाखिल। जागरण की पहली खबर है: राबड़ी, मीसा व हेमा समेत अन्य पर आरोप पत्र दायर। प्रभात खबर की मेन हेडलाइन है: राबड़ी, मीसा व हेमा सहित सात के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल। भास्कर की पहली खबर है: ईडी की पहली चार्जशीट में लालू नहीं, राबड़ी-हेमा समेत सात आरोपी। ईडी ने रेलवे में जमीन के बदले नौकरी के मामले में दिल्ली स्थित राउज एवेन्यू कोर्ट परिसर स्थित पीएमएलए विशेष न्यायालय में पहली चार्जशीट दायर की। इसमें लालू प्रसाद की पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, उनकी बेटी सांसद मीसा भारती और हेमा यादव के अलावा इनके सीए अमित कात्याल और जमीन देकर रेलवे में नौकरी पाने वाले हृदयानंद चौधरी समेत 7 लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया है। हालांकि तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद और उनके बेटे बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव को नामजद अभियुक्त नहीं बनाया गया है।

एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं?

जागरण की खबर है: एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं केंद्र। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल लिखित दलीलों में संविधान सभा में हुई बहस और कानून का हवाला देते हुए कहा कि सबको देखने से साफ होता है कि एएमयू अल्पसंख्यक चरित्र का संस्थान नहीं है, यह राष्ट्रीय महत्व का शैक्षणिक संस्थान है। उनके अनुसार कोई भी विश्वविद्यालय जिसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है, वह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता भले ही शुरुआत में इसकी स्थापना या प्रशासन अल्पसंख्यकों द्वारा क्यों न किया गया हो। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार से प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ में एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुनवाई शुरू हुई। पहले एएमयू की ओर से बहस शुरू की गई जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं मानने के 2006 के फैसले का विरोध किया गया। एएमयू के वकील राजीव धवन ने केंद्र द्वारा 2006 के फैसले के विरुद्ध पहले दाखिल की गई विशेष अनुमति याचिका को वापस ले जाने पर भी सवाल उठाया। मनमोहन सरकार में एएमयू के अलावा केंद्र ने भी हाई कोर्ट के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की थी लेकिन बाद में मोदी सरकार ने यह याचिका वापस ले ली। यानी सरकार बदलने के बाद सरकार का स्टैंड भी बदल गया।

फुलवारी शरीफ में दो बच्चियों से गैंग रेप की आशंका

यह खबर सभी अखबारों में है लेकिन गैंग रेप की बात पर अलग-अलग रिपोर्ट है। किसी ने गैंग रेप लिखा है तो किसी ने गैंग रेप की आशंका लिखा है। हिन्दुस्तान के अनुसार फुलवारीशरीफ के हिंदुनी गांव के समीप दो बच्चियों के साथ दरिंदो ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं। दोनों में एक को पीट-पीटकर मार डाला गया। जबकि दूसरी बुरी तरह से घायल है। मृतका आठ जबकि उसकी घायल सहेली की उम्र दस साल है। दोनों बच्चियां सोमवार सुबह 8 बजे घर से जलावन की लकड़ी लाने आलमपुर गांव की ओर निकली थीं। तब से दोनों गायब थीं। परिजन उन्हें तलाश रहे थे। इधर, मंगलवार की सुबह जब कुछ लोग जमीन की मापी करवाने बाउंड्री के भीतर बधार में पहुंचे तो एक मासूम को जमीन पर गिरा देखा जबकि दूसरी उसी जगह बैठकर रो रही थी।

भागलपुर में ऑनर किलिंग

भास्कर ने पहले पेज पर खबर दी है: भागलपुर में ऑनर किलिंग: पिता ने बेटी दामाद व नतिनी की गोली मार कर हत्या कर दी। भागलपुर के नवगछिया के गोपालपुर के नवटोलिया गांव में गांव के ही लड़के से प्रेम विवाह करने से नाराज पिता और भाई ने सरे राह बेटी, दामाद और नतिनी की गोली मारकर हत्या कर दी। घटना मंगलवार शाम 4:00 बजे नवगछिया पुलिस जिला में हुई। मृतकों की पहचान गोपालपुर के नवटोलिया निवासी चंदन कुमार, उनकी पत्नी चांदनी कुमारी और दंपति की 2 वर्षीय बच्ची रोशनी कुमारी के रूप में की गई। यह शादी 2021 में हुई थी।

झारखंड में समन पर सीधे पेश नहीं होंगे अफसर

झारखंड सरकार के पदाधिकारी अब राज्य के बाहर की एजेंसियों (ईडी, सीबीआई, एनआईएस, आयकर समेत अन्य) के समन या नोटिस पर सीधे उपस्थित नहीं होंगे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में मंगलवार को मंत्रिमंडल की बैठक में इस संबंध में फैसला लिया गया है। मंत्रिमंडल ने इस संबंध में एसओपी को मंजूरी दी है। अब अगर राज्य सरकार के पदाधिकारियों को राज्य के बाहर की किसी भी एजेंसी से समन या नोटिस मिलता हो तो इसकी सूचना अपने विभागीय प्रधान को देनी है। विभागीय प्रधान का यह दायित्व होगा कि बिना किसी विलंब के ऐसे मामलों की तथ्यपरक सूचना मंत्रिमंडल सचिवालय व निगरानी विभाग को उपलब्ध कराएं।

हरिद्वार के मदरसों में हिन्दू बच्चे

भास्कर की खबर है: हरिद्वार में मदरसों में पढ़ रहे हैं 623 हिंदू बच्चे, वजह- सरकारी स्कूल दूर। उत्तराखंड की मदरसा शिक्षा परिषद की रिपोर्ट के अनुसार वहां कुल 412 मदरसे हैं जिनमें 18000 बच्चे पढ़ रहे हैं। इनमें से 30 मदरसे ऐसे हैं जिनमें पढ़ने वाले 7399 बच्चों में से 749 बच्चे हिंदू या गैर मुस्लिम हैं। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग को शिकायत मिली थी कि उत्तराखंड के मदरसों में हिंदू बच्चे पढ़ रहे हैं और शिक्षा की आड़ में धर्मांतरण चल रहा है। हालांकि मदरसा शिक्षा परिषद ने धर्मांतरण से इनकार किया है। मदरसों में हिंदू बच्चों के पढ़ने के आंकड़े सामने आने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर हिंदू बच्चे मदरसे में क्यों पढ़ रहे हैं। हिंदू अभिभावकों ने बच्चों को मदरसे में पढ़ने की दो बड़ी मजबूरी बताई है। पहली क्षेत्र में सरकारी स्कूल नहीं है, अगर है तो वह काफी दूर है। दूसरी प्राइवेट स्कूलों की फीस ज्यादा है।

कुछ और सुर्खियां

  • क्रिकेटर मोहम्मद शमी समेत 26 खिलाड़ी अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित
  • महिला किसानों के लिए सम्मान निधि की राशि 12000 करने की तैयारी
  • रेलवे बोर्ड के पेपर लीक मामले में बक्सर समेत 12 जगह पर सीबीआई का छापा
  • स्मृति ईरानी आज पटना में, 18 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का होगा दौरा
  • राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का अयोध्या से टाइम्स स्क्वायर तक होगा सीधा प्रसारण
  • मालदीव के राष्ट्रपति संबंध सुधारने आ सकते हैं भारत

अनछ्पी: भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकार को संविधान के आर्टिकल 29 और 30 में साफ तौर पर बताया गया है। इन अधिकारों में अल्पसंख्यक समुदाय के लिए अलग से शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना भी शामिल है। ऐसे ही एक शिक्षण संस्थान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक चरित्र पर इस समय सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही है। इस बहस की मूल वजह कोर्ट का वह फैसला है जिसमें एएमयू के अल्पसंख्यक चरित्र को अस्वीकार कर दिया गया था। अब इस मामले को संविधान की सात सदस्यों की बेंच सुन रही है। इस बहस का फैसला जो भी आए लेकिन अफसोसनाक पहलू यह है कि वर्तमान केंद्र सरकार खुद एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं मान रही है जबकि मनमोहन सिंह की सरकार ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दिया था। सरकार बदलते ही उसके रुख में बदलाव आ गया। एक सेक्यूलर लोकतांत्रिक सरकार से यह उम्मीद की जाती थी कि वह अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी हैं जो राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी में मुख्य अतिथि होंगे तो दूसरी तरफ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी है जिसके नाम से ही उसके अल्पसंख्यक संस्थान होने का पता चलता है लेकिन केंद्र सरकार ही उसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं मान रही। भारत के सेक्यूलर संविधान में प्रधानमंत्री को इतनी छूट है और अल्पसंख्यकों के लिए इतनी संकीर्णता क्यों है? अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं मानना वास्तव में सरकार का अत्याचारपूर्ण कदम है। ऐसा नहीं है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में गैर मुस्लिम या हिंदू छात्र नहीं पढ़ते हैं लेकिन इसका अल्पसंख्यक चरित्र अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए जरूरी माना जाता है। भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों की साक्षरता दर वैसे ही कम है और उच्च शिक्षा में तो इसका प्रतिनिधित्व और भी कम है। ऐसे में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का माइनॉरिटी स्टेटस बहुत जरूरी है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी उन इक्का दुक्का संस्थानों में है जो अल्पसंख्यकों के लिए आकर्षण का केंद्र है लेकिन सरकार उसे भी अल्पसंख्यक चरित्र से वंचित करना चाहती है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद की जाती है कि वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक चरित्र को स्वीकार कर इंसाफ करेगा।

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