जब मौलाना ने कज्जाफी से बराबर की तनख्वाह ठुकराकर कहा था- जामिया रहमानी के लिए सिर्फ एक वली है

समी अहमद
बिहार लोक संवाद डाॅट नेट
मौलाना मुहम्मद रहमानी हमारे बीच नहीं रहे। अल्लाह जन्नत नसीब करे। इसी साल पंद्रह फरवरी को इमारत-ए-शरिया के एक प्रोग्राम मे मैं उन्हें सुनने गया था। प्रोग्राम उलेमा के ताल्लुक से था। पूरे बिहार-झारखंड और उड़ीसा से आलिम जमा थे। मौलाना रहमानी ने एक-एक करके सबकी बात सुनी। फिर शुरू हुए- बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम।
उनकी आवाज कड़क थी- बिल्कुल साफ। मैंने उन्हें बैठे हुए देखा था। इसलिए कहीं से बीमार नहीं लग रहे थे। मगर जब उठकर जाने लगे तो ऐलान हुआ कि कोई उनसे हाथ नहीं मिलाएगा। मुझे अफसोस हुआ। मैं हसरत भरी निगाह से उन्हें देख रहा था। एक बाॅडीगार्ड उन्हें सहारा देकर ले जा रहा था। वो लिफ्ट से नीचे उतरे। सबको सलाम किया। वो आगे बढ़े तो मैं भी आगे बढ़ा। सोचा कि माइक निकालकर इंटरव्यू ले लूं लेकिन उनकी हालत देखकर हिम्मत नहीं हुई। थके-थके से लग रहे थे। लेकिन तकरीर के वक्त ऐसी कोई बात नजर नहीं आयी थी।
वह अपनी कार में बैठ गये। मैं फिर उनकी कार से आगे निकला क्योंकि कार धीमी थी। मैंने सोचा कि उनसे गुजारिश कर लूं कि उन्होंने तालीमी तरक्की के लिए जो प्रोग्राम लांच किया है उसके बारे में एक इंटरव्यू दे दें। मगर फिर हिम्मत नहीं हुई। गाड़ी जब करीब आयी तो उन्होंने हाथ उठाकर सलाम किया। मेरी कोई जान पहचान नहीं थी। फिर भी उनका इस तरह सलाम करना दिल को छू गया।
अब लगता है कि वह छोटी सी देखा-देखी मेरे लिए कितनी बड़ी बात है। उनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातें भी थीं जो नागवार गुजरी थीं। खासकर उनसे जुड़ी सियासी बातें। खैर, उसका अभी मौका नहीं। मैंने उनकी बात सुनी। मैं चाहता था कि वीडियो बना लूं लेकिन इजाजत नहीं मिली। मैं उनसे कोई पचास मीटर दूर बैठकर उनकी बात को अपने फोन में रिकार्ड करता गया।
उनकी गुफ्तगू कोई घंटे भर की थी। बात करने का क्या अंदाज था। गुस्सा भी, हंसी भी, मजाक भी और तंबीह भी। मैं उससे अभी एक बात दोहराना चाहता हूं जो कर्नल मुअम्मर कज्जाफी से जुड़ी है। तो हुआ यह कि किसी आलिम ने यह कह दिया कि उन्हें माद्दियत की तरफ भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि इससे अखलास आता है।
मौलाना वली रहमानी ने इस बात पर सख्त तंबीह की और जो कहा मैं उनकी जबान में पेश करना चाहता हूं। खुलासा यह है कि उन्हें कर्नल कज्जाफी ने अपनी तनख्वाह से एक दीनार कम पर लीबिया में काम करने की दावत दी जिसे मौलाना ने एहतेराम के साथ ठुकरा दिया।
तो सुनिए मौलाना रहमानी ने उस दिन क्या कहा थाः
’’जो आदमी बोल रहा है आपके सामने उसे लीबियिा के अन्दर बहुत बड़ी पेशकश की गयी। लीबिया क सफर के मौके पर एक तीन रोजा काॅन्फ्रेंस हुई। और उस काॅन्फ्रेंस के अन्दर मुअम्मर कज्जाफी खुद आये। तकरीर की। और फिर देर तक बैठे रहे। तीन-चार घंटे और फिर आखिर में उससे मुलाकात करायी जो हमारे हिसाब से वहां के वजीरे तालीम थे और मुअम्मर कज्जाफी के उस्ताद थे। अमरीका में पढ़ाया करते थे और लीबिया को तालीमी लिहाज से बढ़ाने की बात कर रहे थे।
बढ़े एहतेमाम के साथ मेरी दावत हुई। उसके बाद उन्होंने कहा कि शेख क्या किया जा सकता है इस्लाम की भलाई के लिए। तीन दिन में नक्शा बनाकर दीजिए।
मैंने नक्शा बनाकर दिया। फिर हमारी मुलाकात हुई। उस मुलाकात मंें भी बड़ा एहतेमाम। वह नक्शा पूरा पढ़ चुके थे। उन्होंने कहा कि शेख तुम्हें इस एदारे को कायम करना है। जितने तुम्हारे शागिर्द यहां आ सकते हैं, मंगा लो और मेरी तनख्वाह है उससे एक दीनार तुमको कम मिलेगा। जैसी इमारत चाहो, जो गाड़ी चाहो, जो मांगो- सब हम देंगे। इस नक्शे को जमीन पर उतारो।
मैंने कहा- दक्तूर लीबिया को तो एक सौ वली रहमानी मिल जाएगा, जामिया रहमानी के लिए सिर्फ एक वली रहमानी है। यह तो हो सकता है कि दो-तीन महीने में दो-चार दिन के लिए मैं आ जाऊं लेकिन मुस्तकिल रहना मेरे लिए मुमकिन नहीं है।
उन्होंने कहा मैं एक दिन तुमको देता हूं। कल फिर हमारी मुलाकात खाने पर होगी।
अगले दिन उन्होंने फिर वही बात कही। बहुत मायूस हुए। कहा कि जिंदगी में इतना बड़ा मौका नहीं आएगा। हमने कहा कि आप शायद समझ नहीं रहें। मुझे जो मौका मिला हुआ है हिन्दुस्तान में वह इससे बहुत बड़ मौका है। वहां रेतीली जमीन के ऊपर ट्रैक्टर चलाना पड़ता है। यहां तो सिर्फ हलवा खाना होगा। मैंने यह बात अरबी में कही।’’

इसके बाद मौलाना ने और कई अहम बातें कहीं। वह आइंदा।

 

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