उर्दू के ताबूत में ठोकी जा रही है आखि़री कील, बिहार का शिक्षा विभाग और बीपीएससी कटघरे में
बिहार लोक संवाद
हाल के दिनों में उर्दू पर सबसे बड़ा हमला संस्थागत रूप से बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन और शिक्षा विभाग ने किया है। बीपीएससी ने टीचर बहाली के दूसरे फेज में वर्ग 11 से 12, 9 से 10 और 6 से 8 के उम्मीदवारों को उर्दू लैंग्वेज का सवालनामा ही नहीं दिया। वहीं, शिक्षा विभाग द्वारा वर्ग 1 से 5 के लिए तैयार किए गए रूटीन में उर्दू की घंटी का कहीं कोई जिक्र नहीं है।
सिर्फ वर्ग 1 से 5 के एक्जाम में ही क्वालिफाइंग लैंग्वेज उर्दू के सवाल दिए गए। इसपर आपत्ति दर्ज किए जाने के बाद समस्या के समाधान के लिए बीपीएससी ने जो तरीका अपनाया, वो अपने आपमें अजूबा था। नीतीश्वर कॉलेज, मुजफ्फरपुर में उर्दू के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कामरान गनी कहते हैं कि बीपीएससी से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती।
भाषा अर्हता के इस खंड में 30 में से 9 मार्क्स लाना अनिवार्य था। इसके बिना टीचर उम्मीदवार क्वालिफाई ही नहीं करता। जिन उम्मीदवारों ने इस खंड के लिए उर्दू का चयन किया था, जब उन्होंने उर्दू के 22 सवालों को नदारद पाया तो उनके होश उड़ गए।
उर्दू उम्मीदवारों के विरोध पर बीपीएससी चेयरमैन ने 10 दिसंबर को एक्स पर एक संदेश भेजा। इसमें उन्होंने कहा कि ‘क्वालिफाइंग लैंग्वेज पेपर में गैर हिन्दी उम्मीदवार जिन मुश्किलात का सामना कर रहे हैं उससे हम वाकिफ हैं। इसमें घबराने की कोई बात नहीं है।’
उम्मीदवारों की घबराहट दूर करने के लिए बीपीएससी ने एक नायाब तरीका ढूंढ़ निकाला। 18 दिसंबर को एक ‘आवश्यक सूचना’ जारी करके कहा गया कि वर्ग 1 से 5 को छोड़कर अन्य सभी वर्गाें के विषयों की परीक्षा में भाग-1 भाषा अर्हता के अंक को शून्य किया जाता है। इसका मतलब ये हुआ कि उस 30 नंबर की परीक्षा का कोई मतलब नहीं रह गया। अब कुल 150 में से 120 सवालों के मार्क्स की बुनियाद पर मेरिट लिस्ट तैयार होगी। इसका सबसे ज्यादा फायदा गैर उर्दू उम्मीदवारों को हो गया। इसपर कटाक्ष करते हुए कामरान गनी अपने फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि लैंग्वेज क्वालिफाइंग में उर्दू और बंग्ला के सदके हिन्दी और अंगेजी वालों को भी राहत।
ये अलग बात है कि बीपीएससी जैसी संस्था से कामयाब होने वाले शिक्षकों की भाषायी काबिलियत जीरो होगी। इस लॉट के शिक्षकों की सबसे बड़ी मेरिट यही होगी। इसमें उर्दू शिक्षक भी शामिल होंगे।
अब बात करते हैं शिक्षा विभाग की। इस विभाग को मंत्री डॉ. चंद्रशेखर कम आईएएस केके पाठक ज्यादा चला रहे हैं। पाठक के सबऑर्डिनेट अफसर ने हाल के दिनों में स्कूलों के लिए ऐसा रूटीन जारी कर दिया, जो उर्दू की जड़ पर हमला करता है।
वर्ग 1 से 5 के लिए तैयार किए गए रूटीन में उर्दू की घंटी का कहीं कोई जिक्र नहीं है। इससे ज्यादातर स्कूलों में उर्दू की पढ़ाई ठप हो गई है। इस सवाल के जवाब में कि इससे उर्दू जबान और उर्दू आबादी के बच्चों पर क्या असर पड़ेगा, एक टीचर ने अपनी पहचान छिपाने की शर्त पर बिहार लोक संवाद से कहा कि प्रामरी स्कूलों में उर्दू की पढ़ाई नामुमकिन हो जाएगी।
एआईएमआईएम के विधायक अखतरुल ईमान उर्दू के ताल्लुक से शिक्षा विभाग और बीपीएससी के रवैये को एक साजिश करार दिया।
बिहार में दूसरी सरकारी जबान के दिन-पर-दिन सिमटने-सिकुड़ने का नजारा पटना बुक फेयर में देखा गया। उर्दू किताबों की खरीक-बिक्री के सिलसिल में बिहार लोक संवाद ने मकतबा इस्लामी और इमारत शरीया के स्टॉल संचालकों से बात की।
उर्दू की मौजूदा सूरते हाल से परे अदीबों और शायरों की एक ऐसी दुनिया है भी है जहां न तो उर्दू खतरे में है और न ही इस बात का खतरा कि आने वाली नस्ल को रदीफ और काफिया, मतला और मकता और नज्म और नस्र का मतलब भी समझ में आएगा या नहीं।
पूरी रिपोर्ट के लिए देखिये ये रिपोर्ट।
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