छपी-अनछपी: जातीय गिनती पर बहस पूरी, ‘पीएम मोदी पर गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी राजद्रोह नहीं’

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। बिहार की महत्वपूर्ण समझे जाने वाली जातीय गणना के बारे में पटना हाई कोर्ट में बहस पूरी हो चुकी है और अब फैसले का इंतजार रहेगा। अखबारों ने इस खबर को काफी अच्छी कवरेज दी है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी पर की गई टिप्पणी गैर जिम्मेदाराना थी, लेकिन इसे राजद्रोह नहीं कहा जा सकता है। इसकी एक छोटी सी खबर छपी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मोदी सरनेम मामले में हाई कोर्ट से भी राहत नहीं मिलने की खबर भी लीड बनी है।

हिन्दुस्तान की पहली खबर है: हाईकोर्ट में जातीय गणना पर सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित। जाति आधारित गणना पर पांच दिन तक चली लंबी बहस के बाद पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इसके पूर्व राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही और अपर महाधिवक्ता अंजनी कुमार ने जाति आधारित गणना को लेकर जारी सभी गजट की प्रति हाईकोर्ट में पेश की। महाधिवक्ता पीके शाही ने शुक्रवार को पटना हाईकोर्ट में कहा कि यह सर्वे आम नागरिकों के हित के लिए आंकड़ा एकत्रित के लिए किया जा रहा है। इससे किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। लेकिन, कुछ लोगों ने इसे कोर्ट में चुनौती दे दी है। मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ ने इस मामले पर सुनवाई की।

जवाबी दलील

महाधिवक्ता की ओर से पेश दलील का जवाब देते हुए आवेदक के अधिवक्ता दीनू कुमार ने पटना हाईकोर्ट को बताया कि सर्वेक्षण कराने का अधिकार राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है। सर्वे असंवैधानिक है और समानता के अधिकार के खिलाफ है। आखिर राज्य सरकार जातियों की गणना और आर्थिक सर्वेक्षण क्यों करा रही है। इसका जिक्र कहीं नहीं किया गया है। कानूनी प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है।

टिप्पणी गलत मगर राजद्रोह नहीं: कोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक स्कूल प्रबंधन के खिलाफ राजद्रोह का मामला खारिज करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपशब्द अपमानजनक और गैर जिम्मेदाराना था लेकिन इसे राजद्रोह नहीं कहा जा सकता है। जागरण के अनुसार हाईकोर्ट की कलबुर्गी शाखा के जस्टिस हेमंत नंदन गौर ने शुक्रवार को बीदर के न्यू टाउन पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर को खारिज करते हुए बीदर के शाहीन स्कूल के प्रबंधक के सभी आरोपितों अलाउद्दीन, अब्दुल खालिद, मोहम्मद बिलाल इनामदार और मोहम्मद महताब को क्लीन चिट दे दी है। कोर्ट ने कहा है कि विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच सद्भावना बिगड़ने की धारा 153 ए को इस केस में उपयुक्त नहीं पाया गया है

राहुल को राहत नहीं

जागरण की सबसे बड़ी खबर हाई कोर्ट की टिप्पणी है: मानहानि के मामले में राहुल के पास सजा पर रोक का वैध आधार नहीं। मोदी सरनेम को लेकर टिप्पणी से जुड़े आपराधिक मानहानि मामले में सूरत की अदालत द्वारा सुनाई गई 2 वर्ष की सजा पर रोक की मांग संबंधी कांग्रेस नेता राहुल गांधी की याचिका को गुजरात हाईकोर्ट ने भी शुक्रवार को खारिज कर दिया। राहुल के पास सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देने के लिए 90 दिन का वक्त है। कोर्ट ने कहा कि राजनीति में शुचिता समय की जरूरत है साथ ही उनकी सजा पर रोक लगाने का कोई ठोस व तर्कसंगत आधार नहीं है। गुजरात हाई कोर्ट के न्यायाधीश हेमंत प्राच्छक ने 125 पेजों के फैसले में सूरत की सत्र अदालत के निर्णय में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए कहा कि राहुल के विरुद्ध देश में 10 आपराधिक मामले चल रहे हैं। न्यायाधीश ने कहा कि यह व्यक्ति केंद्रित मानहानि का मामला नहीं है बल्कि कुछ ऐसा है जो समाज के बड़े वर्ग को प्रभावित करता है।

मणिपुर में कमांडो समेत 4 कई हत्या

मणिपुर में जातीय हिंसा की घटनाएं थम नहीं रही हैं। हिन्दुस्तान के अनुसार राज्य के बिष्णुपुर जिले में शुक्रवार तड़के अज्ञात बंदूकधारियों ने एक पुलिस कमांडो और एक किशोर समेत चार लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी। आधिकारिक जानकारी के मुताबिक, दो समूहों के बीच देर रात करीब डेढ़ बजे अवांग लेईकी और कांगवई इलाके में गोलीबारी शुरू हुई। कुछ लोग अपने घरों से निकलकर सुरक्षित स्थानों की ओर जाने लगे। इसी दौरान ड्यूटी पर तैनात कमांडो के अलावा तीन लोगों को गोली लग गई।

अमेरिकी राजदूत के बयान का विरोध

जागरण ने कंग्रेस नेता जयराम रमेश के बयान पर सुर्खी लगाई है: अमेरिकी राजदूत एरिक गारसेटी को तलब कर कड़ा विरोध जताए केंद्र। अमेरिकी राजदूत एरिक गारसेटी के मणिपुर पर दिए गए बयान को लेकर कांग्रेस के विरोध का स्वर बुलंद हो गया है। गारसेटी ने गुरुवार को कोलकाता में मणिपुर में जारी हिंसा पर चिंता जताते हुए उसे भारत का आंतरिक मामला बताया था लेकिन यह भी कहा था कि भारत अगर समस्या के निदान के में किसी भी तरह की मदद मांगेगा तो अमेरिका मदद देने के लिए तैयार है। इस बयान पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि मणिपुर में शांति बहाल करना केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है इसमें किसी अन्य की भूमिका स्वीकार नहीं की जा सकती है। इससे पहले कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने राजदूत के बयान को भारत के आंतरिक मामले में अमेरिका का हस्तक्षेप बताया था।

सिसोदिया की संपत्ति जब्त

दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को ईडी से एक और झटका लगा। हिन्दुस्तान के अनुसार जांच एजेंसी ने शुक्रवार को सिसोदिया, उनकी पत्नी और अन्य आरोपियों की 52 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति कुर्क की। एजेंसी ने बताया कि 7.29 करोड़ की दो संपत्ति मनीष, पत्नी सीमा की हैं। वहीं, अन्य आरोपी चैरियट प्रोडक्शंस के निदेशक राजेश जोशी और मीडिया प्राइवेट के मालिक गौतम मल्होत्रा के जमीन और फ्लैट शामिल हैं। गौरतलब है कि मनीष सिसोदिया को दिल्ली आबकारी नीति से जुड़े धनशोधन मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया था।

कुछ और सुर्खियां

  • बालासोर ट्रेन हादसे में तीन रेलवे कर्मचारी गिरफ्तार
  • सितंबर में कार्यकाल पूरा कर रहे पांच वीसी के नीतिगत निर्णय पर रोक
  • मधुबनी में डेंटिस्ट ने कराया प्रसव जच्चा-बच्चा की मौत
  • गया की वार्ड पार्षद लाछो देवी हेरोइन और गांजा के साथ गिरफ्तार
  • शिक्षक भर्ती के पोर्टल पर आवेदन का लोड बढ़ा तो सरवर हुआ डाउन
  • रायपुर की रैली में प्रधानमंत्री का बयान: जो डर जाए वह मोदी नहीं हो सकता

अनछपी: हमारे समाज में इस बात पर कम चर्चा की जाती है कि देश में सबसे अधिक मुकदमे सरकारें करती हैं। कर्नाटक के एक स्कूल में एनआरसी के खिलाफ एक नाटक प्रस्तुत किया गया था जिसमें कथित तौर पर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की गई थी लेकिन पुलिस ने इस मामले में राजद्रोह का केस दर्ज कर दिया जिसे अब वहां के हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। राजद्रोह का कानून कैसे अपने विरोधियों को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है इसका एक अच्छा उदाहरण यह मामला भी है। कोर्ट ने कहा कि बच्चों ने ऐसा कोई शब्द नहीं कहा जिससे हिंसा का संदेश जाए या अशांति फैले। आजकल सरकार के साथ-साथ सरकारी पार्टी भी केस करने में आगे आगे रहती है। इसी कड़ी में नेहा सिंह राठौर का नाम भी शामिल है जिन पर मध्यप्रदेश के भाजपा नेता ने केस किया है। राठौर यूपी में का बा और बिहार में का बा जैसे गीत को लेकर नाम कमा चुकी हैं। यह मामला मध्य प्रदेश के सीधी जिले के पेशाब कांड से जुड़ा हुआ है। राठौर ने एमपी में का बा शीर्षक से ट्वीट किया था। इसके साथ जो मीम लगाई गई है उसमें एक व्यक्ति किसी दूसरे पर पेशाब करता दिख रहा है। पेशाब करता व्यक्ति काली टोपी पहने हुए है, बगल में खाकी निक्कर भी दिख रही है। सरकार और उसकी सहयोगी पार्टियों द्वारा विरोध के स्वर को दबाने के लिए ऐसे केस इतनी आसानी से क्यों हो जाते हैं? इस तरह के केस से लोगों को महीनों मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है और जब तक कोर्ट ऐसे केस को खारिज करते हैं तब तक काफी देर हो चुकी होती है। हमारे नेता भारत को जनतंत्र की जननी कहते हैं और जब कोई कहता है कि यहां बोलने-लिखने पर पाबंदी है तो वे तिलमिला जाते हैं। लेकिन क्या ऐसे विरोध के स्वर को दबाने के लिए किए जा रहे केस इसका उदाहरण नहीं है कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कितनी सीमित है? अच्छी बात यह है कि केस मुकदमों के बावजूद लोगों ने अपनी हिम्मत बना रखी है और विरोध के स्वर को बुलंद कर रहे हैं।

 

 

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