बिहार में मिट रही है उर्दू, स्कूल बन रहे हैं भूत बंगले, नीतीश सरकार को अल्टीमेटम

बिहार लोक संवाद

बिहार में 1980-81 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र के कार्यकाल में उर्दू को दूसरी सरकारी जबान का दर्जा दिया गया था। मकसद था, उर्दू को बड़े पैमाने पर लिखने-बोलने की जबान बनाना, हर जगह उर्दू का नजर आना, तालीम से जोड़ना और इस जबान को कमर्शियालाइज करते हुए रोजगार और मुलाजमत के अवसर पैदा करना। लेकिन 2023 आते-आते हालात इस कदर चिंताजनक हो गए कि उर्दू का वजूद कायम रखने के लिए उर्दू एक्शन कमिटी के बैनर तले उर्दू बेदारी हफ्ता मनाने जैसी मुहिम चलानी पड़ गई। हालांकि एक जमाना ऐसा था जब उर्दू को दूसरी सरकारी जबान का दर्जा दिलाने के लिए अभियान चलाया गया था। मौजूदा उर्दू बेदारी मुहिम चलाने के कारणों को लेकर बिहार लोक संवाद ने डॉ. रेहान गनी से बात की। रेहान गनी उर्दू के सीनीयर सहाफी और उर्दू एक्शन कमिटी के नाएब सद्र हैं।

उर्दू की बदहाली की एक अहम वजह उर्दू का स्कूलों से रिश्ता खत्म होते जाना है। हम आपको पटना के एक ऐसे उर्दू स्कूल के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका वजूद ही खत्म हो गया। सौ साल से भी ज्यादा अरसा पहले एक पेड़ के नीचे कायम हुए इस स्कूल का नाम है – राजकीय उर्दू प्राथमिक विद्यालय, कर्बला, झुग्गी झोंपड़ी, महेन्दू्र। 2019 में इस स्कूल को बगल के राजकीय मध्य विद्यालय, दरगाह, सुल्तानगंज, महेन्द्रू में मर्ज कर दिया गया। मर्ज हुए स्कूल का अब सिर्फ नाम ही बाकी रह गया हैज4ख् इस सच को उजागर करने के लिए ऑल इंडिया तंजीमे इंसाफ के स्टेट सेक्रेटरी गुलाम सरवर आजाद ने बिहार लोक संवाद का भरपूर सहयोग किया।

बिहार स्टेट सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन मो. इर्शादुल्लाह इन दिनों उर्दू बेदारी हफ्ता में मसरूफ हैं। वो उर्दू एक्शन कमिटी के सरपरस्त भी हैं। उर्दू के फरोग में वक्फ बोर्ड के रोल से मुतल्लिक पूछे गए सवाल के जवाब में वो कहते हैं कि उर्दू की तरक्की की जिम्मेदारी सभी की है।

अब हम आपको एक ऐसे उर्दू स्कूल की बदहाली दिखाने ले जा रहे हैं जो भूत बंगला से कम नजर नहीं आता है। पटना के खानमिर्जा इलाके का यह राजकीय उर्दू मध्य विद्यालय सौ साल पहले, 1917 में कायम हुआ था। ब्लैक बोर्ड पर दर्ज तारीख के मुताबिक यहां आखिरी बार 20 अगस्त 2019 को पढ़ाई हुई थी। इसकी हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि इस स्कूल को पास के मध्य विद्यालय बक्सरिया टोला महेन्दू्र में शिफ्ट कर दिया गया है। इन दिनों लगातर सुखिर्यों में रह रहे शिक्षा विभाग के एडीशनल चीफ सेक्रेटरी केके पाठक प्रदेशभर में स्कूलों का दौरा करके वहां की सूरते हाल का जायजा ले रहे हैं। बेहतर होता, नामो निशान मिटने के कगार पर आ चुके इस स्कूल की भी खैरियत दर्याफ्त कर लेते।

सामान्य स्कूलों के मुकाबले उर्दू स्कूलों में ज्यादा छुट्टी दे दिए जाने के बारे में जब हाल ही में कुछ अखबारों ने शरारतपूर्ण तरीके से खबर प्रकाशित की थी तब भाजपा से जुड़े नेताओं ने काफी हंगामा मचाया था। उन्हें पूरा बिहार इस्लामी स्टेट नजर आने लगा था। हालांकि शिक्षा विभाग ने अगले ही दिन नोटिफिकेशन जारी करके स्पष्ट कर दिया था कि उर्दू और सामान्य स्कूलों के लिए 60-60 की छुट्टियों घोषित की गई हैं। न हिन्दू धर्म की छुट्टियां घटाई गई हैं और न ही मुस्लिम धर्म की छुट्टियां बढ़ाई गई हैं।

लेकिन इन नेताओं को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उर्दू दिन पर दिन अपने ही घर में सिकुड़ती-सिमटती जा रही है। ऐसे में दीनी-मिल्ली जमाअतों की कोशिशें कुछ उम्मीद पैदा करती हैं।

सबसे बड़ी विडंबना बिहार के उर्दू अखबारों के साथ है। उर्दू को फरोग देने के नाम पर प्रकाशित होने वालं ये अखबारात हिन्दी में सरकारी विज्ञापन छापते हैं। वहीं, सरकारी विज्ञापन कम न हो जाए, इस डर से तल्ख लहजे में कुछ छापते भी नहीं।

डॉ. रेहान गनी कहते हैं कि उर्दू से जुड़ी समस्याओं से सरकार को वाकिफ कराया जाएगा औ अगर समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो आंदोलन चलाया जाएगा।

अच्छी बात ये है कि उर्दू आबादी को भी उसके फराएज याद दिलाए जा रहे हैं और बताया जा रहा है कि उर्दू के फरोग के लिए उन्हें क्या-क्या करना चाहिए ताकि आने वाली नस्ल इस जबान से महरूम न रह जाए।

 

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