अच्छी सड़कों पर एंबुलेंस दौड़ा कर अस्पतालों में भर्ती होइए और लुटकर बेमौत मर जाइए
बिहार लोक संवाद डाॅट नेट पटना
मशहूर सामाजिक कार्यकत्र्ता कंचन बाला ने बिहार लोक संवाद डाॅट नेट से अपना एक आलेख साझा किया है। इसमें उन्होंने बताया है कि इन दिनों कोरोना मरीजों पर क्या गुजर रही है। जबकि सत्ता में बैठे लोग बड़ी आसानी से दावा कर रहे हैं कि कहीं कोई दिक्कत नहीं है। दवा से लेकर बेड तक उपलब्ध है।
कंचन बाला लिखती हैं- असत्य बयानबाजों के सरदार मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने एक और हवाई बयान दिया है कि बिहार में आॅक्सीजन और जरूरी दवाओं की कमी नहीं है। मेरे पड़ोस में कोविड के एक मरीज हैं। उन्हें कल पूर्वाह्न में अस्पताल से इसलिए जाने को कहा गया क्योंकि वहां आॅक्सीजन उपलब्ध नहीं था। उनकी स्थिति खतरनाक थी। आॅक्सीजन लेवेल 60 पर चला गया जबकि 90 के नीचे नहीं होना चाहिए। मजबूरी में परिवार के लोग घर लेकर आए और किसी तरह बारह बजे रात को मार्केट से आॅक्सीजन सिलिंडर की व्यवस्था हो सकी। लगभग बारह घंटे तक उनकी स्थिति क्या होगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।
यह तो हुई आॅक्सीजन की वास्तविक स्थिति। जहां तक जरुरी दवाइयों का सवाल है, रेमडिसिवर कोविड की एक अनिवार्य दवा है। मेरे एक मित्र ने अपने व्हाट्सएप पर लिखा कि उनके एक दोस्त का साला कोविडग्रस्त है, उसे रेमडिसिवर इंजेक्शन की जरूरत थी। हमलोग सब जगह खोज कर हार गये। अंत में 24 हजार की जगह तीन लाख रूपए देकर छः इंजेक्शन खरीदना पड़ा।
मुजफ्फरपुर के 74 आंदोलन और छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के वरिष्ठ साथी श्री रमेश पंकज भी मुजफ्फरपुर में ही एक प्राइवेट नर्सिंग होम में भर्ती हैं, उन्हें भी दवा काफी मशक्कत के बाद ब्लैक से खरीदनी पड़ी।
इस सच्चाई को जानने के बाद गरीब तो दूर सामान्य मध्यवर्ग के मरीजों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। अच्छी सड़कों पर तेजी से एंबुलेंस दौड़ा कर अपने मरीज परिजनों को सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती कराइए और लुटकर बेमौत मर जाइए। सुशासन बाबू के विकास की असली सच्चाई तो यही है। शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य को विकास का असली पैमाना होना चाहिए था जो नीतीश जी के दिमाग से ये तीनों गायब है।
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