छपी-अनछपी: नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने पर विचार, ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे से रोक हटी

बिहार लोक संवाद डॉट नेट, पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन के नेताओं के साथ इस बात पर विचार करने के लिए बैठक करने वाले हैं कि क्या चार लाख नियोजित शिक्षकों को राज्य कर्मी का दर्जा दिया जा सकता है। भास्कर की पहली खबर यही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे पर लगी रोक हटा दी है। इसकी खबर सभी जगह प्रमुखता से ली गई है।

भास्कर की सबसे बड़ी सुर्खी है: चार लाख नियोजित शिक्षकों को मिल सकता है राज्य कर्मी का दर्जा। राज्य सरकार के लगभग चार लाख नियोजित शिक्षकों को राज्य कर्मी का दर्जा दिलाने के मामले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शनिवार को महागठबंधन दलों के नेताओं के साथ बैठक करेंगे। माना जा रहा है कि इस बैठक में ही राज्य कर्मी का दर्जा देने संबंधी निर्णय पर सहमति बन जाएगी। अभी जो नियोजित शिक्षकों को वेतन मिल रहा है और राज्य कर्मी का दर्जा दिए जाने के बाद वेतन मद में बहुत अधिक भार नहीं पड़ेगा। राज्य कर्मी का दर्जा दिए जाने के बाद राज्य सरकार के बजट पर लगभग 15 सौ करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ेगा।

ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे

जागरण की सबसे बड़ी खबर है: ज्ञानवापी में जारी रहेगा वैज्ञानिक सर्वे। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में एएसआई के सर्वे को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की याचिका गुरुवार को खारिज दी। कोर्ट ने जिला अदालत के 21 जुलाई के आदेश को बरकरार रखा है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुक्रवार से परिसर का सर्वे शुरू हो जाएगा। मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर ने फैसले में कहा, वैज्ञानिक सर्वे न्याय के हित में आवश्यक है। इससे वादी एवं प्रतिवादी को समान रूप से लाभ होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिका खारिज होने से एएसआई द्वारा की जाने वाली वैज्ञानिक जांच के समय मुकदमे के पक्षकारों के उपस्थित रहने के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। कोर्ट ने कहा एएसआई के हलफनामे पर अविश्वास का कोई आधार नहीं है। वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। दूसरी तरफ, हाईकोर्ट के फैसले के मद्देनजर हिंदू पक्ष ने शीर्ष न्यायालय में कैविएट दाखिल की है।

दिल्ली विधेयक लोकसभा से पास

जागरण की दूसरी सबसे बड़ी खबर है दिल्ली के बारे में सोचे विपक्ष, गठबंधन के बारे में नहीं: शाह। हिन्दुस्तान के अनुसार लोकसभा ने गुरुवार को दिल्ली सेवा विधेयक को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। राज्यसभा में इसे सोमवार को पेश किया जा सकता है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ‘राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक, 2023’ पर चर्चा का जवाब देते हुए विपक्ष पर जमकर प्रहार किया। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी दलों को लोकतंत्र, देश और जनता की चिंता नहीं है। उन्हें सिर्फ गठबंधन बचाने की चिंता है। उधर, विपक्षी दलों ने विधेयक को संघीय ढांचे पर हमला बताया। यह विधेयक दिल्ली में अधिकारियों के स्थानांतरण और पदस्थापना के लिए प्राधिकार के गठन के लिहाज से लागू अध्यादेश का स्थान लेगा।

एमएच किनारे रेस्त्रां खोलने में सरकारी मदद

पर्यटन स्थलों को जोड़ने वाले राजमार्गों के किनारे रेस्तरां (सुविधा संपन्न सत्कार केंद्र) खोलने पर राज्य सरकार पचास लाख रुपये तक की मदद देगी। हिन्दुस्तान की खबर है कि रेस्तरां के साथ ही यहां पार्किंग, वाहन चार्जिंग स्टेशन, गैराज, पेजयल, शौचालय की सुविधा भी मुहैया करानी होगी। पर्यटन विभाग ने इसके लिए राज्यभर के 23 राजमार्गों का चयन किया है। सभी सुविधा संपन्न सत्कार केंद्रों की चार श्रेणियां तय की गई हैं। इसके लिए आवेदन सात अगस्त से शुरू होगा। पर्यटन सचिव अभय कुमार सिंह ने गुरुवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बिहार मार्गीय सुविधा प्रोत्साहन योजना के तहत यह मदद दी जाएगी। सत्कार केंद्र खोलने वाले व्यक्ति को योजना का पचास फीसदी या अधिकतम पचास लाख रुपये तक की मदद प्रोत्साहन राशि के रूप में दी जाएगी।

स्कूल पर दबंग का क़ब्ज़ा

जागरण की खास खबर है: स्कूल के 4 कमरों में दबंग का कब्जा, 2 में 5 कक्षाओं की होती पढ़ाई। 2011 में बेगूसराय जिले के तेघड़ा प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय रात गांव करारी के निर्माण के बाद से ही उसके चार कमरों पर दबंग के कब्जे का बड़ा मामला सामने आया है। इन चारों कमरों को एक दबंग सपरिवार आवास की तरह प्रयोग करता आ रहा है। शेष दो कमरों में किसी तरह पहली से पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई कराई जा रही है। गुरुवार को विद्यालय का निरीक्षण करने पहुंचे तेघड़ा एसडीएम राकेश कुमार यहां पर आवासी व्यवस्था देख कर हैरत में रह गए। अलग-अलग कक्षाओं में बेडरूम से लेकर पूजा घर तक बना लिए गए थे पूर्ण राम उन्होंने तत्काल चारों कमरों को खाली करवाकर उसमें ताला लगवाया और चाबियां प्रधानाध्यापिका को सौंपी।

डेटा संरक्षण विधेयक पेश

विपक्षी दलों के विरोध और अध्ययन के लिए संसदीय समिति को भेजने की मांग के बीच सरकार ने गुरुवार को डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक लोकसभा में पेश किया। विपक्षी सदस्यों की आशंकाओं को दूर करते हुए केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि यह वित्तीय विधेयक के तौर पर नहीं, बल्कि सामान्य विधेयक के तौर पर सदन में पेश किया गया है। संसद में डेटा संरक्षण बिल पेश करने का विरोध करते हुए कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि इसके जरिए केंद्र आरटीआई और निजता के अधिकार को कुचलने का प्रयास कर रहा है। इसलिए, पार्टी सरकार के इसका पुरजोर विरोध कर रही है। उन्होंने विधेयक संसद की स्थायी समिति या किसी और समिति को भेजने का आग्रह किया।

कुछ और सुर्खियां

  • बिहार में जातीय गणना की हाईकोर्ट से मंजूरी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील
  • मुजफ्फरपुर के आशुतोष हत्याकांड में शूटर और मुख्य आरोपी तमिलनाडु से गिरफ्तार
  • घरेलू बाजार को बढ़ावा देने के लिए कंप्यूटर, लैपटॉप और टैब के आयात पर अंकुश
  • प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के एनडीए सांसदों से कहा- 9 साल में हुए विकास को जन-जन तक पहुंचाएं
  • सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- अनुच्छेद 370 रद्द करने की क्या व्यवस्था है
  • मणिपुर में हिंसा और तनाव जारी, मैतेई और सुरक्षा बल आमने-सामने
  • पोशाक व पुस्तक खरीदने की शर्त रखी तो सीबीएसई स्कूलों की मान्यता खत्म की जाएगी

अनछपी: लोकसभा में पेश डेटा संरक्षण बिल सुनने में तो अच्छा लगता है लेकिन ऐसी आशंकाएं जताई जा रही है कि दरअसल यह डेटा संरक्षण नहीं बल्कि डेटा का सरकारी दुरुपयोग करने वाला बिल है। अफसोस की बात है कि सरकार को ऐसे बिल पेश करने में ज्यादा दिक्कत का एहसास इसलिए नहीं होता कि आम जनता को यह बात बहुत महत्वपूर्ण नहीं लगती कि डेटा संरक्षण उनके लिए कितना जरूरी है और सरकार का इस पर नियंत्रण कितना खतरनाक हो सकता है। सच्चाई यह है कि हमारे समाज को डेटा लीक होने के बारे में जितना सजग होना चाहिए, वह नहीं है। कोई भी सरकार जनता की निजी जानकारी प्राप्त करना चाहती है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर इसका सबसे ज्यादा आरोप लगता है कि वह जनता की निजी जानकारी को सुरक्षित रखने में असफल रही है या वह खुद इसका इस्तेमाल करती है। इसलिए विपक्षी दलों का इस विधेयक के विरोध में बोलना समझ में आने वाली बात है। एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक का विरोध करते हुए मतविभाजन की मांग की। तृणमूल कांग्रेस सांसद सौगत राय ने भी विधयेक को स्थाई समिति को भेजने की मांग की। इस बिल के जरिए सरकार जो दूसरा काम करने जा रही है वह वास्तव में सूचना के अधिकार को समाप्त करने जैसा है। क्योंकि यह बिल लोकसभा में पेश हो चुका है इसलिए धीरे-धीरे इसके बारे में भी आम लोगों को जानकारी होगी लेकिन सूचना का अधिकार अगर इस बिल के जरिए समाप्त करने की साजिश की जा रही है तो उसका सख्त विरोध होना चाहिए। यह बेहद रोचक बात है कि एक तरफ सरकार आम जनता के निजी जानकारी इकट्ठा करना चाहती है तो दूसरी और वह जनता को सूचना के अधिकार के तहत जानकारी नहीं देने के लिए कानून बना रही है। यह बात फिर दोहराना पड़ेगा कि अफसोस है कि सरकार की ऐसी चाल के प्रति आम लोगों की न तो जागरूकता है और ना ही दिलचस्पी है। ऐसे में विपक्षी दलों और मीडिया की यह जिम्मेदारी है कि वह आम लोगों को डाटा बिल के बारे में पूरी जानकारी दे।

 

 

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